नीता शेखर,
रांची: ट्रेन अपनी गति से अपने गंतव्य की ओर चली जा रही थी. सभी यात्री अपनी-अपनी सीटों पर सो रहे थे पर सुधा को नींद नहीं आ रही थी. आज जब साइंस कॉन्फ्रेंस से लौट रही थी तभी उसकी मुलाकात विजय से हो गई. पल भर को वह उसे पहचान नहीं पाई. विजय ने ही आगे बढ़कर कहा तुमने मुझे पहचाना नहीं. एक पल को सुधा देखती रही फिर उसके मुंह से निकला विजय तुम.कितने बरस हो गए. कहां थे ? अब तक तुम क्या कर रहे थे? उसके मुंह से कई सवाल निकलने लगे.
विजय ने कहा, अरे रुको भी. मैं तुम्हें सब बताता हूं. चलो कैंटीन चलते हैं. वहां बात भी हो जाएगी. सुधा विजय के साथ चल पड़ी. उसे उत्सुकता थी सब बातों को जानने की. सुधा और विजय एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. दोनों में दोस्ती भी काफी थी. कॉलेज के आखिरी दिनों में विजय ने सुधा को बताया वह दिल्ली जा रहा है.आईएएस की तैयारी करने क्योंकि उसके बाबूजी चाहते हैं वह आईएएस बने, पर विजय को म्यूजिक में इंटरेस्ट था. वह म्यूजिक कंपोजर बनना चाहता था, पहले यह नहीं था कि आप अपने मर्जी से कुछ भी बन जाए. पहले बाबूजी की बात को प्राथमिकता दी जाती थी. उन्होंने कहा था और उसे आईएएस बनने के लिए. फिर सब की परीक्षाएं खत्म हुई. सब अपनी मंजिल की ओर बढ़ चले. विजय भी आईएएस की तैयारी करने चला गया. उसके बाद उससे मुलाकात नहीं हुई. सुधा ने भी डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करके कॉलेज ज्वाइन कर लिया. फिर उसकी शादी हो गई. सब अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए.
आज अचानक मुलाकात हुई तो उसे पुरानी बातें याद आ गई. विजय ने उसे बताना शुरू किया. जब वह आईएएस की तैयारी में व्यस्त था, उसी समय उसकी मां का देहांत हो गया. बाबू जी बहुत ही शांत और चुप चुप से रहने लगे थे. विजय जो चूंकि घर का बड़ा लड़का था. सारी जिम्मेवारी उसके कंधों पर आ गई थी. जैसे छोटे दो भाई और एक बहन भी थी. फिर उसने आईपीएस तो पास कर लिया और उसकी पोस्टिंग भी हो गई. इसी बीच परिवार की जिम्मेदारी निभाते निभाते कब समय बीत गया पता ही नहीं चला. उसने दोनों भाइयों को सेटल करके शादी भी कर दिया. बहन की भी शादी कर दी. सब ने अपनी अपनी गृहस्थी बसा ली थी. बस अकेला रह गया विजय. फिर जिस परिवार की खातिर विजय ने अपनी जिंदगी को दांव पर लगा दी थी. आज वही परिवार उसे अकेला छोड़कर अपनी अपनी गृहस्थी में बस गए थे.
दोस्तों ने कहा तुम भी अपना घर बसा लो. इस उम्र में? उम्र कोई बंधन नहीं होता है. फिर उसने एक अच्छा सा परिवार और घर देख कर शादी कर ली. शादी करना ही उसके जीवन के लिए जी का जंजाल बन गया. जब भी काम से लौटता देखता उसके बीवी अपने दोस्तों को बुलाकर अपनी प्रतिष्ठा का रोब झाड़ा करती थी. अब हर दिन हर लम्हा यही होता रहा. विजय को चाय देने तक कोई नहीं था. उसकी पत्नि बस अपनी दोस्तों में व्यस्त हो गई थी. जिस अकेलेपन को दूर करने के लिए शादी की थी. आज वह और भी अकेला पड़ गया था. फिर एक दिन ऐसा हुआ कि उसकी पत्नी ने उसके जीवन को तार-तार कर दिया. उसकी पत्नी ने थाने में जाकर विजय के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर दी. खुद ही उसके ऊपर उसकी पत्नी ने दहेज और मारपीट का आरोप लगा दिया.
विजय ने किसी तरह अपने आप को बचा लिया. उसे उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी ,उसकी पत्नी ने पूरी प्रॉपर्टी, घर, बंगला, उसका बैंक बैलेंस सब कुछ अपने नाम कर लिया था. उसकी पत्नी ने उसे तलाक दे दिया. फिर विजय की जिंदगी उसी मोड़ पर आ गई थी.
यही सब सोचते-सोचते सुधा की आंख लग गई. शोर की आवाज सुनकर उसकी आंख खुली. उसका स्टेशन आ गया था. फिर अपने घर आ गयी. कुछ दिनों बाद सुधा को विजय की बहन का फोन आया. भैया ने आत्महत्या कर ली है. क्या? उसके मुंह से निकला.
अपनी खुशियां और दूसरों के लिए कुर्बानी देने वाला खुद कुर्बान हो गया. सदियों से कुर्बानी देने वाला ही कुर्बान हो जाता है. आज हमारे देश का कानून भी महिलाओं के पक्ष में गवाही देता है उसका फायदा महिलाएं भी खूब उठाती हैं. आखिर क्या कसूर था विजय का? कानून बनाना ठीक है फिर कानून का गलत फायदा मत उठाइए. यह कोई जरूरी नहीं कि पुरुष ही दोषी होते हैं ,दोषी होती हैं महिलाएं भी.
मगर कानून के हाथ बंधे हुए हैं. इसी का फायदा उठाती हैं महिलाएं. विजय तो खुद ही कानून का रखवाला था और अपनी रखवाली नहीं कर पाया.