सूर्यकांत कमल,
चतरा: तीन दिवसीय राजकीय इटखोरी महोत्सव के दौरान सेमिनार एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम होता है. सेमिनार के माध्यम से इटखोरी के इतिहास के महत्व को विशेषज्ञों के द्वारा सामने लाया जाता है. इस वर्ष भी इटखोरी महोत्सव में सेमिनार को लेकर जिला प्रशासन के द्वारा व्यापक तैयारी की गई है. महोत्सव में इस बार सेमिनार का विषय राष्ट्रीय पटल पर इटखोरी का पुरातात्विक महत्व रखा गया है. उपरोक्त विषय पर आयोजित होने वाले सेमिनार में बतौर वक्ता के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों के अलावा पुरातत्वविदोम एवं इतिहासकारों को निमंत्रण भेजा गया है.
बिनोवा भावे विश्वविद्यालय के साथ बिहार के मगध विश्वविद्यालय एवं नालंदा विश्वविद्यालय से भी विशेषज्ञ वक्ताओं को बुलाया जा रहा है. सेमिनार का आयोजन तीन दिवसीय महोत्सव के दूसरे दिन 20 फरवरी को दोपहर बारह बजे शुरू होगा. तीन घंटे तक चलने वाले इस सेमिनार में पुरातत्वविद तथा इतिहासकार जिले के विभिन्न महाविद्यालयों के विद्यार्थियों तथा स्थानीय लोगों के बीच इटखोरी के पुरातात्विक महत्व को अपने वक्तव्य के माध्यम से सामने लाएंगे. दरअसल पुरातत्व के क्षेत्र में इटखोरी का स्थान राज्य में काफी महत्वपूर्ण है. नौवीं-दसवीं शताब्दी काल के पुरातात्विक इतिहास को जीवंत रखने वाले इटखोरी के मां भद्रकाली मंदिर परिसर में पुरातात्विक खुदाई के दौरान महत्वपूर्ण पुरातत्वशेष, कलाकृतियां तथा प्रतिमाएं बरामद हुई है.
मंदिर परिसर के पुरातात्विक महत्व को देखते हुए वर्ष 2011 तथा वर्ष 2012 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने मंदिर परिसर में पुरातात्विक खुदाई कराई थी. जिसमें सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्म से जुड़ी कई प्रतिमाएं, कलाकृतियां तथा पूरावशेष प्राप्त हुए थे. पुरातात्विक खुदाई में मिले पुरातात्विक अवशेष तथा प्रतिमाएं फिलहाल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रांची कार्यालय में रखे गए हैं. जबकि स्थानीय ग्रामीणों के द्वारा प्राप्त किए गए पूरावशेष व प्रतिमाएं मंदिर के अस्थाई म्यूजियम में मौजूद है.
राज्य सरकार ने इटखोरी के पुरातात्विक महत्व को देखते हुए मां भद्रकाली मंदिर परिसर में साढ़े चार करोड़ की लागत से म्यूजियम निर्माण की स्वीकृति प्रदान कर दी है. मंदिर परिसर में निर्मित होने वाले अत्याधुनिक म्यूजियम का टेंडर भी राज्य के कला संस्कृति विभाग के द्वारा निकाला जा चुका है. म्यूजियम का निर्माण पूरा हो जाने के बाद देश दुनिया के पर्यटक इटखोरी के पुरातात्विक महत्व को और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे.