नीता शेखर,
कहानी क्या है? कहानी आती कैसे? लोग कहते हैं बहुत बढ़िया कहानी, कुछ लोग कहते हैं क्या बकवास कहानी, कहानी हम लिखते तो है पर कहानी से कहानी कैसे लिखते है?
यादों के झरोखे में बहुत सी ऐसी बातें जो दबी पड़ी रहती हैं. पहले तो हम कोशिश करते हैं उन्हें यादों के द्वारा जो कुछ भी है उसको शब्दों का रूप देते हुए कुछ लिखने की. फिर हम सोचते हैं, जो कुछ भी याद आता है हम सब इस कागज के पन्ने पर लिखते जाते है. फिर हमारे आसपास जो घटित होता है उसमें कुछ बातें ऐसी होती है जो अंदर तक छू जाती फिर हम उससे भी शब्दों के द्वारा कहानी का रूप देते हैं.
अगला चरण होता है समाज का. इस समाज में हर दिन कुछ घटित होता है. उसे भी हम शब्दों में उतारकर कहानी का रूप दे देते तो हमारा जीवन भी एक कहानी है उसी कहानी से हम कुछ शब्दों के मोती चुन कर कहानी करते रहते हैं.
अगर आप गहराई से सोचें तो हर एक इंसान अपने आप में एक कहानी है. हर एक किसी के जीवन में कुछ न कुछ घटित होता है चाहे वह अमीर हो या गरीब. हर एक कहानी किसी ना किसी व्यक्ति से जुड़ी हुई होती है चाहे वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो.
किसी की कहानी अच्छी होती, किसी की खराब, किसी की साधारण. सभी कहानी से जुड़े हुए पात्र है. हां यह सत्य है कि हर कोई कहानी को शब्द का रूप देकर कहानी नहीं लिख सकता पर हम सब इस सत्य को नकार भी नहीं सकते कि जीवन एक कहानी है. जैसे हम “रामायण” या “महाभारत” देखते हैं उसको भी हम कहानी के रूप में देखते हैं जैसे रामायण महाभारत हमने तो देखा नहीं है पर अप्रत्यक्ष रूप में हम उसकी कहानी देखते हैं.
शब्दों के रूप का तानाबाना बुन कर हम जो जाल बनाते हैं उस जाल से ही कहानी बन जाती है. हम जिससे मिले, नहीं मिले, जिनको जानते नहीं उनके बारे में सुनकर ही हम कहानी बना देते हैं. कुछ घटनाएं सामने दिख जाती है तो उसको भी हम प्रत्यक्ष रूप से कहानी बना देते हैं. कहानीकार खुद एक कहानी का पात्र होता है जो कहानी लिखता है. आज जीवन में जो कुछ भी हो रहा है. कल को एक कहानी का रूप ले लेगा.
जैसे आज ताजा हालात देखे कोविड-19. कुछ दिन बाद यह भी एक कहानी का रूप ले लेगी. फिर हम अगले से अगले जनरेशन के बच्चों को कहानी का रूप देकर ही बताएंगे. जैसे मुझे बचपन से ही लिखने का शौक था. कुछ भी लिखती थी चाहे वह विषय से संबंधित हो या ना हो या कोई बात हो मैं लिखती जरूर थी. अगर किसी ने मुझे कुछ कह दिया उसे भी मैं चुपचाप लिख लेती. हां पर लिखती बहुत थी. इतना नहीं सोचा था की कहानी लिख पाऊंगी. बीच में तो लिखना कम हो गया था पर अब मैं फिर से लिखना शुरु कर दिया. शुरू में तो बहुत डर लगता था पर मैंने देखा कि लिखने से बड़ा दोस्त कोई नहीं होता.
कभी-कभी कोई छोटी-सी घटना भी बड़ी कहानी का रूप ले लेती है. जो भी कहानी हम लिखते हैं पढ़ते हैं वह समाज में कहीं ना कहीं घटित होता ही है. यह जरूर है कि हर कहानी का पात्र और चरित्र अलग होता है. जैसे “जोकर”… जोकर दूसरे को हंसाता है पर उसका खुद का जीवन एक कहानी होता है. इस दुनिया में ऐसे कई कहानियां हैं जो अनाम और गुमनाम होकर रह जाते हैं बस हमें कोशिश यह करना चाहिए कि हम अपनी जिंदगी को ऐसी कहानी का रूप दे जिसे देखकर लोग कहे वाह क्या कहानी है………