रांची: डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान एवं झारखंड पर्यटन विभाग के द्वारा आयोजित प्रथम राष्ट्रीय जनजाति एवं लोक चित्रकला शिविर में देशभर के लोक चित्रकारों का जमावड़ा लगा हुआ है. नेतरहाट स्थित शैले हाउस में चित्रकार कहीं मिथिला की गोदना पेंटिंग तो कहीं केरल की मुरल पेंटिंग से अपनी लोक संस्कृति के रंग भर रहे हैं.
इसी क्रम में नेतरहाट के वादियों के बीच अपनी चित्रकारी से लोगों को आकर्षित कर रही हैं. स्वर्ण चित्रकार के नाम से दुनिया भर में मशहूर रुपवन. स्वीडन, वाशिंगटन, रोम, लंदन तथा इटली तक जाकर बंगाल के पट्टचित्र को मशहूर करने वाली रूपवन से बातचीत के पेश है कुछ अंश-
आपने यह पेंटिंग किससे और कहां से सीखा?
49 वर्षीय रूपवन ने कहा कि मैंने यह चित्रकला अपने बाबा (पिताजी) व काका (चाचा) से सीखी है. मेरे पूर्वज सदियों से पट्टचित्र को एक पहचान देने में जुटे हैं. इसी क्रम में उन्हीं के पदचिन्ह पर मैं इस कला को दुनिया भर में एक स्थान तथा प्रचलित करने में जुटी हुई हूं.
मैं आपसे इस पेंटिंग के इतिहास के बारे में कुछ जानना चाहती हूं?
पट्टचित्र, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के पूर्वी भारतीय राज्यों में स्थित पारंपरिक, कपड़ा आधारित स्क्रॉल पेंटिंग के लिए एक सामान्य शब्द है. पट्टचित्र कलाकृति अपने जटिल विवरणों के साथ-साथ पौराणिक कथाओं और इसमें वर्णित लोककथाओं के लिए जाना जाता है. यह एक प्राचीन बंगाली कथा कला का एक घटक हैं.
पट्टचित्र संस्कृति की शुरुआत के बाद से भगवान जगन्नाथ जो भगवान कृष्ण का अवतार थे. प्रेरणा का प्रमुख स्रोत थे. पट्टा चित्र का विषय ज्यादातर पौराणिक, धार्मिक कहानियां और लोक कथा है. देवताओं और देवी-देवताओं की व्यक्तिगत चित्रों को भी चित्रित किया जा रहा है.
यह पेंटिंग किस थीम पर आधारित है?
पौराणिक तथा सामाजिक कथाओं पर आधारित यह चित्रकला में मां दुर्गा मनसा देवी सहित अन्य देवी देवताओं को दर्शाया जाता है. समय के साथ-साथ इस चित्र कला में भी काफी बदलाव आया है. अभी के समय में सामाजिक मुद्दे जैसे- आतंकी हमले, भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा आदि को भी फोटो चित्र के तहत चिन्हित किया जाने लगा है.
इस चित्रकला में इस्तेमाल किए जाने वाले रंगों के बारे में कुछ बताएं
चित्रकार सब्जियों और खनिज रंगों का उपयोग इस चित्रकारी में किया करते हैं. सिंदूरा जिसे की आम भाषा में लटकन कहते हैं उसे लाल रंग अपराजिता के फूलों से नीला रंग, चुकंदर से गुलाबी, पान, सुपाड़ी ओर कत्थे को मिला के चार मैरून रंग बनाया जाता है. सफेद रंग के लिए हम चावल का इस्तेमाल करते हैं. वहीं कला रंग बनाने के लिए चावल को भुज कर पिसा जाता है, जिससे काला रंग तैयार होता है.
इस शिविर के विषय में आप क्या कहना चाहेंगे?
इस शिविर के माध्यम से देश भर से आये कलाकार एक दूसरे की कला को देख पा रहे हैं. एक दूसरे से मिल रहे हैं. हर दिन हमें कुछ नया सीखने को मिल रहा है. लोक चित्रकारों के लिए ऐसे शिविर का आयोजन समय समय पर किया जाना चाहिए. झारखंड सरकार द्वारा आयोजित प्रथम आदिवासी एवं लोक चित्रकारों के शिविर के लिए मैं झारखंड सरकार का तहे दिल से आभार प्रकट करती हूं.