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बेटा खेले इसलिए मां ने बेच दिये सारे गहने
रांची: झारखंड में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कमी नहीं है. राज्य ही नहीं बल्कि विदेशों में जाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना इन खिलाड़ियों की मानो खून में है. चाहे वो हाॅकी हो, क्रिकेट हो या फिर थ्रो बाॅल. ऐसे ही एक खिलाड़ी से आपको रू-ब-रू करा रहा हूं. जिसने थ्रो बाॅल में देश के अंदर ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया और सोना लाकर राज्य और देश का नाम रौशन किया.
इस खिलाड़ी का नाम अमरदीप साहु है जिसने थ्रो बाॅल में अपना जलवा बिखेरा. वह जिस धरती पर गया वहां सोना पाया. अरगोड़ा के पास रहने वाले इस युवा खिलाड़ी आज बदहाली और तंगी के दौर से गुजर रहा है. आलम यह है कि उसका पूरा परिवार सब्जी बेचकर अपना गुजर बसर कर रहा है. अमरदीप और उसका पूरा परिवार आज सड़क पर सब्जी बेच रहा है. बीएनएन भारत से विशेष बातचीत के दौरान अमरदीप ने अपनी व्यथा को उजागर किया.
प्राइवेट में कार चला कर अपना कर्ज चुकायाः
अमरदीप प्राइवेट में कार चलाता था, लेकिन, कोरोना की वजह से उसकी नौकरी भी चली गयी. खेलने के लिए वो कर्ज भी लिया था. दूसरों की कार चलाकर अपना कर्ज चुकाया. लेकिन हौंसला नहीं तोड़ा. लगातार संघर्ष कर रहा है. सरकार का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है.
मां ने गहना गिरवी रख बेटे को भेजा खेलनेः
मां कलावती देवी की एक ही ख्वाईश थी कि उसका बेटा खिलाड़ी बने. अपनी चाहत को मां कलावती ने कभी मिटने नहीं दी. यहां तक की अपने बेटे को खेलने के लिए अपने गहने तक को गिरवी रख दी. अपनी बातें कहते-कहते अमरदीप की आंखें डबडबा गयी. वो बार-बार अपनी किस्मत को कोस रहा था.
मां, सिर पर 40 किलो वजन लेकर घर-घर सब्जी बेचती हैः
अमरदीप को अपनी मां और पिताजी का दुःख नहीं देखा जाता. वो कहता है कि मां अपने सिर पर 40 किलो लेकर घर-घर सब्जी बेचती है. पिताजी रामप्रसाद भी अहले सुबह तीन बजे सब्जी खरीदने नगड़ी चले जाते हैं उन्हें लौटने में आठ बज जाता है. अमरदीप बताते हैं कि वो शाम को सब्जी का बाजार लगाते हैं. क्योंकि, सुबह नहीं हो पाता है.
खूंटी से आकर रांची में बस गयेः
अमरदीप बताते हैं कि उनका परिवार खूंटी में रहता था, कुछ निजी परेशानियों की वजह से रांची में आकर बस गये है. यहां भाड़े के घर में रहकर अपना गुजारा करते हैं. उन्हें घर भाड़ा चार हजार रूपये देने पड़ते हैं.
सभी जगह गये पर कुछ नहीं हुआः
अमरदीप मायूस होकर कहते हैं कि कई बार सरकार के पास दौड़ लगायी पर कुछ नहीं हुआ. पिछली सरकार में मंत्री अमर बाउरी के पास कई बार गये, पर कोई सुनवाई नहीं हुई. यहां तक की राज्यपाल से भी गुहार लगायी, वहां भी कुछ नहीं हुआ.
वर्ष 2013 से खेलना शुरू कियाः
अमरदीप वर्ष 2013 से खेलना शुरू किया. कम समय में ही उसने मुकाम हासिल कर लिया. देश और राज्य को कई सोना दिलवाया. पर आज वो खुद तंगहाली में गुजर बसर करने को मजबूर है. उसने वर्ष 2015 में मलयेशिया के क्वालालंपुर में हुए जुनियर एशियन कप में सोना जीता, वहीं वर्ष 2017 में इंडोनेशिया में हुए चैंपियनशिप में गोल्ड लाया. इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर तीन गोल्ड अपने नाम कर चुके हैं.
मेरे बेटे को मदद मिल जायेः
अमरदीप के पिता राम प्रसाद की एक ही ख्वाईश है कि उसके बेटे को मदद मिल जाये. उसकी नौकरी हो जाये. ताकि, उसे सब्जी बेचने की जरूरत न पड़े.