रांची: नियोजन नीति को लेकर प्रदेश में सियासत गर्म हो गई है. इसे लेकर सरकार और विपक्ष आमने-सामने हैं. सरकार जहां अपनी नीति को जबरदस्त बता रही है, वहीं विपक्ष ने सरकार को ये कहकर कटघरे में खड़ा कर दिया है कि अगर उसकी नीति खराब तो थी, उसमें संशोधन करते, सुप्रीम कोर्ट क्यों चले गए?
दरअसल, हेमंत सरकार ने 3 फरवरी को रघुवर सरकार काल में बनाई गई नियोजन नीति को वापस लेने और इसे रद्द कर नई नीति नियोजन नीति लाने की घोषणा की है. इस फैसले पर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व CM रघुवर दास सरकार पर जमकर बरसे.
उन्होंने कहा कि नियोजन नीति में कोई त्रुटि थी तो संशोधन करते, आखिर सरकार ने उसे रद्द क्यों किया? क्या नियोजन नीति के माध्यम से बाहरी लोगों को नौकरियां मिल रही थीं? अगर नियोजन नीति सरकार की नजरों में गलत थी, तो उसे सुप्रीम कोर्ट जाने की क्या जरूरत थी? इसके पूर्व सरकार ने हाईकोर्ट में नियोजन नीति के पक्ष में मजबूत दलील क्यों नहीं पेश की?
रघुवर दास को जवाब देते हुए JMM महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि अब झारखंड को 11 और 13 जिलों में नहीं बांटा जाएगा. सभी 24 जिलों के लिए एक ही नियोजन नीति होगी. उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग आकर तृतीय और चतुर्थ वर्ग के पदों पर नौकरी नहीं पा सकेंगे.
उन्होंने कहा कि रघुवर सरकार ने युवाओं की भावानाओं के साथ छल किया है जो हेमंत सरकार में नहीं होगा. सुप्रियो भट्टाचार्य ने संकेत दिया है कि बजट सत्र में नई नियोजन नीति की घोषणा हो सकती है.
BJP के प्रवक्ता कुणाल षाडंगी ने सरकार से सवाल पूछा है कि नियोजन नीति गलत थी तो राज्य सरकार ने उसे हाईकोर्ट में डिफेंड क्यों किया? फिर हाइकोर्ट में हारने के बाद सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज क्यों किया? पहले कोर्ट से बिना स्टे ऑर्डर लिए नौ महीनों तक बहाली रोक की जाती है और साल भर के बाद खत्म कर दी जाती है, ये कैसा निर्णय है ? 11-13 जिलों के इतिहास, संस्कृत तथा संगीत के शिक्षक, PRT शिक्षक, पंचायत सचिव अभ्यर्थी, रेडियो ऑपरेटर, स्पेशल ब्रांच और उत्पाद सिपाही के हजारों अभ्यर्थी जिनका डॉक्यूमेंट वेरिफ़िकेशन होकर बस ज्वाइनिंग बाकी थी उनकी रोजी रोटी भी सरकार ने छीन ली है.
14 जुलाई, 2016 को राज्य सरकार की ओर से एक अधिसूचना जारी कर नियोजन नीति लागू की गई थी. नियोजन नीति के अंतर्गत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित कर दिया गया था. नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप C और D की नौकरियों में वहीं के निवासियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था. यानी कि अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए वही लोग अप्लाई कर सकते थे और नियुक्ति पा सकते थे जो इन जिलों के निवासी थे. इन जिलों की नौकरियों को यहीं के निवासियों के लिए पूरी तरह से आरक्षित कर दिया गया था, जबकि गैर अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए हर कोई अप्लाई कर सकता था. राज्य सरकार ने यह नीति दस साल के लिए बनाई थी.