देहरादून: उत्तराखंड सरकार को चुकाना है 40 हजार करोड़ रुपये. जी हां सरकार के दावों के उलट प्रदेश के लिए लिया जा रहा कर्ज अब मर्ज बनता जा रहा है. हाल यह है कि सरकार को कर्ज का ब्याज भुगतने तक के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. यही वजह है कि कर्ज का केवल 40 प्रतिशत ही विकास योजनाओं के काम आ रहा है.
कर्ज का वैसे तो राज्य के जन्म से ही नाता रहा है. राज्य गठन के समय प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय मात्र 15 हजार रुपये थी. राजस्व भी करीब साढ़े तीन हजार करोड़ था. उद्योग न के बराबर थे. अंतरिम सरकार को इस चुनौती का सामना करना था तो कर्ज ही एक तरीका बच गया था. इसके बाद पूर्व सीएम एनडी तिवारी के कार्यकाल में भी कर्ज से परहेज नहीं किया गया.
2008 में भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री बने तो सरकार का ध्यान कर्ज की ओर गया. इसके बावजूद कर्ज से परहेज नहीं किया गया. इतना जरूर रहा कि 2005 में लागू वित्तीय प्रबंधन अधिनियम के तहत कर्ज को जीडीपी के अनुपात में कम से कम रखने की कोशिश की जाती रही. अब भी प्रदेश में कर्ज मानक से अधिक नहीं है लेकिन इसका आकार बढ़ता ही जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक इस समय प्रदेश पर करीब 53 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है. यह इस बार के कुल बजट के बराबर है.
40 हजार करोड़ रुपये अगले दस साल में चुकाने होंगे
प्रदेश को कर्ज का मर्ज किस तरह से परेशान कर सकता है यह कैग की हाल ही में आई रिपोर्ट से भी साबित हो रहा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश सरकार को अगले दस साल के बकाया 26662 करोड़ रुपये में से 24180 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा. इसके साथ ही ब्याज के 15863 करोड़ रुपये भी हैं. यानी सरकार को करीब 40 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना है.
प्रदेश सरकार की ओर से लिए गए कर्ज का हिसाब देखा तो यह कर्ज भी प्रदेश की योजनाओं के खाते में कम ही जा रहा है. कैग रिपोर्ट के मुताबिक कर्ज का अधिकतम 40 प्रतिशत ही विकास योजनाओं के काम आ रहा है. बाकी का हिस्सा पूर्व में लिए गए उधार और ब्याज के भुगतान में जा रहा है. साफ यह कि नई संपत्ति न होने से इस कर्ज से सरकार को रिटर्न न के बराबर मिल रहा है.