◆ नागवंशी राजाओं का गढ़ नागफेनी करता है सैलानियों को आकर्षित
◆ गोबरसिल्ली पहाड़, रामायण काल मे सुग्रीव की थी गुफा
◆ डोइसागढ़ में था 9 मंजिला इमारत, ढह कर बचा है सिर्फ 2 मंजिला
गुमला: गुमला जिले में अनेक दार्शनिक स्थल है जो सैलानियों एवं लोकल लोगों को पिकनिक मनाने के लिए अपनी ओर आकर्षित करती है. आज BNN BHARAT की टीम आपको जिले के इन्ही ऐतिहासिक धरोहरों का नजारा प्रस्तुत कर रहा है.
नागफेनी नागवंशी राजाओं का गढ़ था. जिनके भवनों के अवशेष आज भी है. अब ये भवन उपेक्षित हैं. यहां जगन्नाथ मंदिर, शिवलिंग पर लिपटे अष्टधातु निर्मित नाग, अष्टकमल दल, पाट राजा, नागसंत्थ, अंबाघाघ, सात खाटी कुंआ, कुकुरकुंडी, मठ टोंगरी, पौराणिक मठ देखने लायक है. कोयल नदी के चिकने पत्थरों के बीच बहती नदी की धारा यहां की खूबसूरती बढ़ाती है. नागफेनी टाउन मुख्यालय से 16 किमी दूर है. यहां शाम तक रुककर आनंद लिया जा सकता है. दर्शनीय स्थलों पर साल भर सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है. नववर्ष हो, कार्तिक पूर्णिमा का दिन हो, आषाढ़ की रथयात्रा या फिर मकर संक्रांति का पर्व. यह गांव लोगों को अपनी ओर खींचता है, आकर्षित करता है.
1. सिसई: प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण नागफेनी गांव एनएच-43 के किनारे स्थित है. नागवंशी राजा जगरनाथ साय द्वारा विक्रम संवत् 1761 में प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की गयी थी. मंदिर की छत पर बने गुबंद व दीवार पर नक्काशी लोगों को देख लोग मंत्रमुग्ध रह जाते हैं. इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की काष्ठ से बनी विशाल मूर्तियां हैं. इनके अलावा सैकड़ों देवी-देवताओं की छोटी-बड़ी मूर्तियां भी हैं. गुमला शहर से नजदीक होने के कारण यहां नववर्ष में आराम से घूम सकते हैं. नागफेनी में जगन्नाथ मंदिर, शिवलिंग पर लिपटे अष्टधातु के नाग, अष्टकमल दल, पाटराजा व नागसंत्थ देखने योग्य है. वहीं, कोयल नदी की धारा पर खड़े हजारों चिकने पत्थर, अंबाघाघ जलप्रपात का सौंदर्य आपको अपनी ओर जरूर आकर्षित करेगा. सात खाटी कुआं, कुकुरकुंडी, मठ टोंगरी, पौराणिक मठ, पहाड़ी पर नागवंश काल के भग्नावशेष अपने इतिहास की कहानी कह रहे हैं.
2. पालकोट: गोबरसिल्ली पहाड़ पंपापुर को वर्तमान में पालकोट प्रखंड से जाना जाता है. यह गुमला से 25 किमी दूर है. एनएच के किनारे है. यहां आसानी से पहुंच सकते हैं. कई दर्शनीय स्थल हैं. सुग्रीव की गुफा साक्षात है. सुग्रीफ गुफा के अंदर निर्मल झरना है. गोबर सिल्ली पहाड़, काजू बगान, पहाड़ की चोटी पर तालाब, पहाड़ के बीच में मंदिर व झरना देखने लायक है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला में ठहर सकते हैं.
3. गुमला: आंजनधाम में अंजनी की गोद में हनुमान यह गुमला प्रखंड में है. शहर से 20 किमी दूर है. यहीं वीर हनुमान का जन्म हुआ था. अंजनी मां का निवास स्थान है. यहां देखने के लिए कई प्राचीन धरोहर हैं. पहाड़ की चोटी पर हनुमान का मंदिर है. कहा जाता है कि यह पूरे देश का पहला मंदिर है, जहां माता अंजनी की गोद में हनुमान बैठे हुए हैं. यहां की हसीन वादियां दिल को रोमांचित करती है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. डोइसागढ़ में प्राचीन किला यह सिसई प्रखंड में है. गुमला से 32 व रांची से 60 किमी दूर है. यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. यहां कई ऐतिहासिक धरोहर है, जिसे देख सकते हैं. प्राचीन किला आज भी विद्यमान है, जो अब जमींदोज हो रहा है. बगल में नगर गांव है. यहां घनी आबादी है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला व रांची में ठहरा जा सकता है. सिसई में खाने-पीने के अच्छे होटल है, एवं ठहरने की भी सुविधा उपलब्ध है.
4. चैनपुर: अपरशंख जलाशय जिले के सभी 12 प्रखंडों में जलाशय का जाल बिछा हुआ है. इनमें चैनपुर का अपर शंख डैम, गुमला का तेलगांव डैम, घाघरा का इटकिरी डैम, गुमला का कतरी डैम, बसिया का धनसीह डैम, पालकोट का दतली डैम व भरनो का पारस डैम शामिल है. यहां लोग पिकनिक मनाने जाते हैं, लेकिन अधिकतर डैमों में पानी लबालब है, इसलिए यहां संभल कर ही पिकनिक मनायें.
5. डुमरी: टांगीनाथ धाम यह डुमरी प्रखंड में है. गुमला से 75 किमी दूर मझगांव में पड़ता है. यह धार्मिक स्थल है, लेकिन लोग इसे पिकनिक स्पॉट के रूप में भी देखते हैं. यहां भगवान टांगीनाथ के त्रिशूल को देख सकते हैं. यहां कई प्राचीन स्रोत हैं, जो देखने लायक है. मझगांव में होने के कारण यहां आसपास के गांव भी देखने योग्य है. यहां ठहरने की व्यवस्था नहीं है. गुमला में ठहर सकते हैं. दक्षिणी कोयल नदी गुमला जिला नदियों से घिरा हुआ है. दक्षिणी कोयल नदी, शंख नदी, लावा नदी, बासा नदी व खटवा नदी है. इन सभी नदियों से कुछ न कुछ इतिहास जुड़ा हुआ है. नदी के किनारे पहाड़ है, जहां लोग पिकनिक मनाने जा सकते हैं. खास कर मांझाटोली व चैनपुर से बहने वाली शंख नदी में लोगों की आपार भीड़ उमड़ती है. वहीं, बसिया से गुजरने वाले कोयल नदी में भी लोग पहुंचते हैं.