रांची: कोरोना महामारी के दौर में हर तरफ दिल दहला देने वाला नजारा दिखाई दे रहा है. व्यवस्था दम तोड़ चुकी है. अस्पताल श्मशान घाट में तब्दील हो चुके हैं. कोई किसी को देखने वाला नहीं है. कोई किसी को पूछने वाला नहीं है.
अधिकारियों की भारी-भरकम फौज अस्पतालों के चक्कर काट रही है. गरीब मरीजों के लिए एक कदम सांस और एक बेड तक के लाले हैं.
अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मचारी, चिकित्सक से लेकर चिकित्सकीय उपकरणों का कहीं अता पता नहीं है. दर्जनों चिकित्सक, सैकड़ों स्वास्थ्य कर्मचारी खुद अस्पताल के बेड पर पड़े जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहे हैं. इस भयंकर विपदा की स्थिति में हर दिन प्रशासनिक दावे लंबे चौड़े वायदों के साथ जनता के बीच परोसे जा रहे हैं.
जमीनी हकीकत से इसका कहीं कोई लेना देना नहीं है. मरीज अस्पतालों की चौखट पर दम तोड़ रहे हैं. मंगलवार को सदर अस्पताल में आधे घंटे के अंतराल में दो मरीजों की मौत हुई.
पीड़ित परिवार अपने मरीजों को लेकर रोते चीखते चिल्लाते रहे. वहां कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं था. नेपाल हाउस से आए एक परिवार में बेटा अपनी कोरोना पॉजिटिव मां का सिर गोद में लेकर गाड़ी में बैठा था. अस्पताल पहुंचने के बावजूद मरीज को वाहन से उतारने के लिए न तो कोई स्वास्थ्य कर्मचारी आया. ना ही सिलेंडर उपलब्ध कराया गया. मां एक-एक सांस के लिए तड़प रहे थी. बेटे से मां की यह दशा देखी नहीं गई.
वह अपनी मां के मुंह में मुंह लगाकर अपनी सांस मां को फूंकने की कोशिश करता दिखा. मानव सभ्यता पर छाए संकट के दौर में यह नजारा देखने वालों की आंखों से आंसू आ गए.
परिवार की दूसरी महिला इस प्रक्रिया में बेटे की मदद करती हुई दिखी. दूसरी तरफ एक बेटा अपनी मां और पिता को एंबुलेंस में लेकर अस्पताल पहुंचा. मरीज को भर्ती करने की लंबी औपचारिकता पूरी करने के बीच मां को ऑक्सीजन की जरूरत थी. बेटा दौड़ते भागते जब तक सिलेंडर लेकर आया. तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
एंबुलेंस में लगा सिलेंडर निकालने और नया सिलेंडर लगाने के बीच गुजरे चंद मिनटों में ही कोरोना पीड़ित महिला की जान निकल गई. अस्पताल की चौखट पर उम्मीद टूटने से परिवार का व्यवस्था से भरोसा उठ गया. परिवार चीखने चिल्लाने के साथ सिस्टम को कोसता नजर आया.