रांची: लॉकडाउन की वजह से सभी स्कूल बंद है. बच्चे पास होकर अगले क्लास में गये है. 6 से 12 वर्ष के स्कूली छात्रों के साथ सबसे बड़ी समस्या है की निजी स्कूल इन दिनों सिलेबस पूरा करने के लिए व्हाट्सएप, विडियो, के जरिये बच्चों का क्लास ले रहें है.
क्लास लेने के बाद ऑनलाइन टेस्ट भी ले रहें है. इस प्रकार हर रोज बच्चे 4 से 5 घंटे कान में हैडफ़ोन लगाए मोबाइल स्क्रीन पर आंखे गड़ाए बिता रहें है.
इसके अलावा कुछ घंटे टेलीविजन और कुछ अतिरिक्त घंटे मोबाइल या कंप्यूटर पर गेम खेलने में भी बिता रहें है. कुल मिलाकर देखा जाए तो औसतन 7 से 8 घंटे बच्चे स्क्रीन देख रहें हैं.
3 घंटे से ज्यादा स्क्रीन देखना है खतरनाक
किसी भी स्क्रीन से निकला रेडिएशन बहुत खतरनाक होता है. लगातार कई घंटो तक मानव कोशिकाएं इन रेडिएशन को नहीं झेल सकती है, इससे बहुत खतरनाक बीमारी होने की संभावना बनी रहती है.
इन रेडिएशन से आंखों और मस्तिष्क पर बहुत बुरा असर पड़ता है.
यह कहना बहुत मुश्किल है कि बच्चे रोजाना कितनी देर तक मोबाइल का इस्तेमाल कर सकते हैं. कोशिश करें कि 3-4 साल तक बच्चों को मोबाइल से दूर ही रखें.
ऐसा करना मुमकिन न हो पा रहा हो तो भी इस उम्र के बच्चों को 30-60 मिनट से ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल न करने दें.
इसके अलावा, 5 साल से 12 साल तक के बच्चे को भी 90 मिनट से ज्यादा स्क्रीन नहीं देखना चाहिए. यह अवधि टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब मिलाकर है। इससे बड़े बच्चों (12 से 17 साल) के लिए जरूरी होने पर यह वक्त थोड़ा बढ़ा सकते हैं, लेकिन यह किसी भी कीमत पर दो घंटे से ज्यादा न हो.
स्क्रीन की लत के लक्षण
बर्ताव में बदलाव
- हमेशा मोबाइल से चिपके रहना
- मोबाइल मांगने पर बहाने बनाना या गुस्सा करना
- दूसरों के घर जाकर भी मोबाइल पर ही लगे रहना
- दूसरों से कटे-कटे रहना
- टॉइलट में मोबाइल लेकर जाना
- बेड में साइड पर मोबाइल रखकर सोना
- खेल के मैदान भी मोबाइल साथ ले जाना
- पढ़ाई और खेलकूद में मन न लगना
- पढ़ाई में नंबर कम आना
- ऑनलाइन फ्रेंड्स ज्यादा होना
- नहाने, खाने में बहानेबाजी करना
शारीरिक परेशानी
- नींद पूरी न होना
- वजन बढ़ना
- सिरदर्द होना
- भूख न लगना
- साफ न दिखना
- आंखों में दर्द रहना
- उंगलियों और गर्दन में दर्द होना
मानसिक समस्याएं
- ज्यादा संवेदनशील होना
- काम की जिम्मेदारी न लेना
- हिंसक होना
- डिप्रेशन और चिड़चिड़ापन होना
नोट: ये लक्षण दूसरी बीमारियों के भी हो सकते हैं. ऐसे में बर्ताव में बदलाव के साथ यह देखना भी जरूरी है कि बच्चा कितना वक्त मोबाइल पर बिताता है और क्या वाकई उसका असर बच्चे पर नजर आ रहा है ?