बैजनाथ आनंद,
BNN DESK: अनोखेलाल बहुत दिनों बाद अपने गांव जा रहे थे. गांव में अपनी मातृभाषा की मधुर आवाज सुन कर उनका मन गदगद हो गया. सब लोग शाम को बगल के गांव के सत्संग में जा रहे थे, तो साथ में वह भी चले गए. वहां सत्संग की बातों से उन्हें बहुत अच्छा लगा, वह बहुत प्रभावित हुए, लेकिन सत्संग में बहुत कम लोग उपस्थित थे.
अनोखेलाल ने महात्मा जी से मिल कर पूछा- मैं पहली बार सत्संग में आया हूं और मुझे बहुत अच्छा लगा, लेकिन मैं यह देख कर परेशान हूं कि यहां लोग बहुत कम उपस्थित हैं, लोग अच्छी बातों को सुनने, समझने में रूचि क्यों नहीं लेते हैं ? उसमें सम्मिलित क्यों नहीं होते हैं ?
महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा- यहां बहुत कम लोग उपस्थित हैं. यह देख कर परेशान होने से अच्छा है कि आप यह देखें कि आपकों यहां आकर बहुत अच्छा लगा. हमेशा अपना दृष्टिकोण सजगतापूर्वक सकारात्मक बनाएं रखे. जीवन में यह आपको बहुत लाभान्वित करेगा.
जीवन के पुण्य प्रदायी शुभ कर्मों के फलस्वरूप हमारे जीवन में सुख का अनुभव होता है, सुखद स्थितियां निर्मित होती हैं. इसलिए हमें जीवन में पुण्य प्रदायी शुभ कर्मों अर्थात सेवा-सहयोग के कार्यों, परोपकार के कार्यों को सतत करते रहना चाहिए. इससे हमारा जीवन सुखमय बनता है.
पूर्व जन्मों के पुण्य प्रताप से हमें सत्संग मिलता है और परमात्मा की असीम अहैतुकि कृपा से सत्संग प्रिय लगता है, रूचिकर लगता है अन्यथा बहुत लोगों को सत्संग सुलभ होता है, लेकिन उन्हें सत्संग प्रिय नहीं लगता है, उन्हें उसका लाभ नहीं मिल पाता है, बहुत लोग मीठे झरने के पास आकर भी प्यासे रह जाते हैं. कर्मों की गति बहुत गहन है. अच्छी बातें भी हमेशा अच्छी नहीं लगती, सबको अच्छी नहीं लगती है.
हम जैसे होते हैं, हमें सारी दुनिया वैसी ही दिखायी पड़ती है. यह सारा जगत हमें वैसा ही दिखायी पड़ता है, जैसा हमारा मन होता है, स्वभाव होता है. भले लोगों को सारी दुनिया भली दिखायी पड़ती है और बुरे लोगों को सारी दुनिया बुरी लगती है. अन्तः करण को ही मन निरन्तर बाहर प्रक्षेपित करता रहता है.
भले लोग चाहते हैं कि सारी दुनिया भली हो जाए, अच्छी हो जाए, जिससे कि उनका जीवन भी सुखमय हो सके, आनन्दमय हो सके. इसलिए वे अच्छे विचारों का प्रचार-प्रसार करने, उसे समाज में स्थापित करने का प्रयास करते हैं.