रांची :l राज्य सरकार के मंत्री स्टीफन मरांडी ने हूल दिवस के क्रांतिकारियों को नमन करते हुए कहा कि आजाद भारत की पटकथा सर्वप्रथम वर्तमान के झारखंड और एकीकृत बिहार के संथाल परगना से लिखी गई थी. उन्होंने राज्य की सवा तीन करोड़ जनता को हूल क्रांति दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि 1855 में झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाया था उस वक्त करो या मरो और और अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो के नारों से पूरे देश में आजाद भारत के क्रांति की नींव रखी गई थी.
स्टीफन मरांडी ने कहा कि 30 जून 1855 को सिद्धू कानू के नेतृत्व में मौजूदा साहिबगंज जिला के भोगनाडीह गांव से अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका गया . उस वक्त मौजूदा संथाल परगना का इलाका बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन पहाड़ियों और जंगलों से घिरा हुआ क्षेत्र हुआ करता था . इस इलाके के रहने वाले पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासी खेती बारी करके जीवन यापन करते थे और जमीन का किसी को राजस्व नहीं देते थे. ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व बढ़ाने के मकसद से जमींदारों की फौज तैयार की जो, पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासियों से जबरन लगान वसूलने लगेl लगान वसूलने के लिए उन लोगों को साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता था और साहूकार के भी अत्याचार का सामना करना पड़ता था. इससे लोगों में असंतोष की भावना मजबूत होती गई और सिद्धू कानू चांद और भैरव चारों भाइयों ने लोगों के असंतोष को आंदोलन में बदल दिया l आंदोलन का बिगुल भोगनाडीह गांव में फूंका गया जहां 400 गांव के करीब 50000 लोगों ने हूल क्रांति की घोषणा की.
स्टीफन मरांडी ने कहा कि कोरोना संक्रमण के दौर में हूल दिवस एक प्रेरणा बन सकता है और उसी प्रेरणा के आधार पर हम संक्रमण जैसी महामारी से एकजुट होकर लड़ सकते हैं. जिस तरह से हूल दिवस एक शौर्य गाथा है ठीक उसी तरह से हम सभी को झारखंड के हक और हुकूक के लिए आगे बढ़कर पूरे समर्पण भाव से राज्य के विकास की जमीन तैयार करनी होगी.