नीता शेखर,
रुक जाना नहीं, चलते रहना ही जीवन का मकसद है, वक्त कभी नहीं रुकता चलते जाता है.
सूरज निकलने से कभी भी मना नहीं करता, उसे निकलना ही होता है. जिस तरह से रात आती है, फिर सवेरा. यह चक्र चलता ही रहता है चाहे इनके रास्ते में कुछ भी आए. बड़े बड़े तूफान आए, पर्वत हिल जाए, भूकंप आ जाए. सूरज और चांद को निकलना ही होता है तो फिर हम क्यों अपनी गलतियों से डर कर छुप जाते हैं. हम क्यों उनका सामना कर नहीं पाते हैं क्योंकि हम नादान हैं. हम कमजोर है मगर हमें अपनी कमजोरी को छोड़ना होगा. मजबूत बनना होगा.
अगर हम समय रहते नहीं सुधरे तो फिर समय निकल जाएगा और लौट कर कभी नहीं आएगा. मुझे अंधेरे से निकलना ही होगा. अपनी गलतियों को सुधारना ही होगा क्योंकि कहां तक भागूंगा. कभी ना कभी तो सच्चाई का सामना करना ही होगा. अपनी गलतियों को छोड़ना ही होगा. तभी मैं अपने जीवन को सुधार पाऊंगा.
अब मैं हर दिन एक नये जोश और वादे के साथ उठूंगा ताकि मैं सभी का सामना कर सकूं. यह सब सोचते हुए रूपेश को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.
दो भाइयों में सबसे बड़ा था. उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था. उसके साथी भी अच्छे नहीं थे. उनकी वजह से उसे ड्रग्स और शराब की आदत हो गई थी. उसके पापा हरदम उसको समझाया करते थे. कुछ वक्त ऐसा लगता मानो उसने बिल्कुल सब चीजों को छोड़ दिया और फिर दो दिन बाद वही हरकतें करता. अब तो लोगों ने उसे कहना ही छोड़ दिया था.
दो दिन पहले कुछ ऐसी घटना हो गई थी कि वह बुरी तरह से डर गया और अब इस जाल से निकलना चाह रहा था. उसके सामने ही उसके दोस्त ने अपने ही दोस्त को धोखाधड़ी के मामले में गोली मार दी थी. आज वह डर गया था. उसे लग रहा था पापा ठीक कहते थे. इसमें जो फंस जाता है उसका निकलना मुश्किल हो जाता है. वह दो दिनों से घर से बाहर भी नहीं निकला था. वक्त की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ रही थी. रुपेश भी इस वक्त की तरह धीरे-धीरे अपने गुनाहों के साए में से दूर जाने की कोशिश कर रहा था. वक्त तो लगेगा ही मगर मुश्किल नहीं है. अपने इर्द-गिर्द एक मकड़ी का जाल उसने बना लिया था. उस जाल में फंसता ही चला गया. नहीं जानता था कि उस जाल से निकलना इतना मुश्किल है.
मगर अब उसे जाल से निकलना ही होगा. उससे अपने अंदर सच का दीपक जलाना ही होगा. अगर ऐसा नहीं किया तो दीए की बाती ही की तरह जलते जलते एक दिन जल जाएगा. फिर मुझे बचाने वाला कोई नहीं होगा. इसलिए मैं हर दिन शिव बाबा से यही प्रार्थना करता हूं कि वह मुझे सही राह दिखाएं और अच्छे रास्ते पर चलने का रास्ता बताएं. अब मैं पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहता.
समझना चाहता हूं. गिरकर उठना चाहता हूं. अपने कदम को आगे बढ़ाना चाहता हूं ताकि फिर कभी मैं इन रास्तों पर ना जाऊं. गलतियां तो इंसान ही करता है. जानवर भी अगर गलती करने लगे तो फिर जानवर और इंसान में फर्क क्या रहेगा. क्योंकि इंसान गलती करके सुधर सकता है.
कहने का मतलब यह है कि मैंने जो गलती की उसको सुधार सकता हूं फिर से अपने जीवन की रेल गाड़ी को पटरी पर ला सकता हूं. माना कि रास्ता बहुत कठिन है मगर नामुमकिन भी नहीं है. इंसान टेढ़े मेढ़े रास्ते पर ही चलकर सही रास्ता जाता है. अगर जीवन में सब कुछ सरल हो जाए तो फिर रास्ता ही ना बने क्योंकि राहे इतना आसान नहीं होती. कभी आदमी गिरता है फिर चलता है फिर गिरता है मगर वह कोशिश करते रहता है और एक दिन वह अवश्य सफलता की सीढ़ी पार् कर लेता है.
मैं भी उसी तरह से गिरते पड़ते अपने आप को सफलता की सीढ़ी पर जरूर डालूंगा. मैं जानता हूं मैं बार-बार गिरुगा , लेकिन मैं कोशिश करता रहूंगा. करता रहूंगा और सच एक दिन ऐसा आया जब रुपेश आईआईटी से इंजीनियरिंग करके नासा में जगह पाली थी. आज वह बहुत खुश था आज उसने अपने जीवन में एक मकसद पा लिया था तभी कहते हैं.
” जब जागो तभी सवेरा.”