पूजा शकुंतला शुक्ला,
उधार!
कितना सरल शब्द
पर उतना ही
जटिल अर्थ
अगर अर्थ का
उधार हो
उतारना
बहुत ही आसान
अहसासों का हो
दाव पर लग
जाये मान – सम्मान
उधार का प्रेम
ले जाये
द्वार अपमान
उधार के स्वप्न
ना भर पायें
जीवन में रंग
तमाम
दो धारी तलवार
उधार
छीन कर चैन
कर दे बदनाम
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