रांची: भारत में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कोई कमी नहीं है. सभी बड़े स्पोर्ट्स कोच यही कहते है लेकिन खिलाड़ी जब वर्ल्ड लेवल पर किसी चैंपियनशिप में भाग लेते है तो उनकी प्रतिभा मेडल में तब्दील नहीं हो पाती है. एथेलेटिक्स फेडरेशन का मानना है कि भारत के पास खिलाड़ियों पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं है, और देश के कोच के पास विशेष टेक्नीकल जानकारी ही नहीं है, ऐसे में देश के खिलाड़ी कैसे मेडल लायेंगे. अगले साल 24 जुलाई से टोक्यो में ओलंपिक का शुभारंभ हो रहा है. देश की निगाहें टोक्यो ओलंपिक पर रहेंगी इस आशा और उम्मीद के साथ कि कोई खिलाड़ी गोल्ड लाये खासकर एथलेटिक्स इवेंट में, लेकिन जिस देश में कोच ही क्वालिटी का नहीं हो, उस देश में क्वालिटी खिलाड़ी कहां से तैयार हो पायेगा.
यूके अपने एक-एक खिलाड़ी पर ढ़ाई सौ करोड़ रूपये खर्च करता है और मेडल लाने वाले खिलाड़ी को तैयार करने वाली टीम बीस हज़ार करोड़ खर्च करता है ,लेकिन देश के एथलेटिक्स का पूरा बजट सिर्फ 50 करोड़ है. इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशन के काउंसिल मेंबर और एथलेटिक्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आदिल जे सुमरीवाला ने कहा कि देश में उच्च क्वालिटी के कोच नहीं है. यहां विदेशी कोच की जरुरत है. दरअसल सुमरीवाला रांची में आयोजित 59 वीं नेशनल ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप के समापन कार्यक्रम के अवसर पर आये थे. इस मौके पर कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पूर्व और वर्तमान खिलाड़ी रांची आये है.
सुमरीवाला IAAF कॉउंसिल में पहले भारतीय
सुमरीवाला IAAF कॉउंसिल में चुने जाने वाले पहले भारतीय है. 1900 से लेकर अबतक समर ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों ने 28 मेडल जीता है ,जिसमें मात्र 9 गोल्ड है. एथलेटिक्स में पूरे ओलंपिक में सिर्फ दो सिल्वर मेडल ही भारत की झोली में अबतक आ पाया है. एथलेटिक्स एसोसिएशन ने दुनिया के नामी कोच जर्मनी के हरमन वॉकर को हाई परफॉरमेंस डायरेक्टर बनाकर भारतीय खिलाड़ी को मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है.
हरमन भी मानते है कि इतने बड़े देश में जहां टैलेंट की कोई कमी नहीं है. वहां मेडल नहीं आना दुःखद है. वे कहते है कि खिलाड़ियों को तकनीकी, मनोवैज्ञानिक, बायोमैकेनिक्स और पोषण से भरपूर करना होगा तभी वो वर्ल्ड लेवल पर मेडल पा सकते है.
पूर्व ओलंपियन बहादुर सिंह है चीफ कोच
देश के लिए शॉर्ट पुट में पहचान बनाने वाले एथलेटिक्स के चीफ कोच और चार प्रेसिडेंट अवार्ड विनर बहादुर सिंह ने भी माना कि देश और झारखंड में वर्ल्ड के बेस्ट एथेलीट है. लेकिन उनके लिये बेहतर माहौल और व्यवस्था के साथ -साथ अच्छी डायट और कोच होना जरुरी है. हर स्कूल में खेल के मैदान होना जरुरी है, जहां कम से कम दो घंटे हर बच्चे को खेलना अनिवार्य बनाना होगा.
पूर्व ओलंपियन बहादुर सिंह ने यह भी कहा कि बच्चों को यह बतलाना बहुत ही जरुरी है कि खेल में मेडल मिलने पर करोड़ों रूपये मिलेंगे. अब उनका ध्यान खेल पर होगा. 1900 में आयोजित पेरिस ओलंपिक गेम में एथलेटिक्स इवेंट में दो मेडल भारत की झोली में आये थे. उसके बाद से अभीतक देश मेडल के इंतज़ार में ही है. अब देखना दिलचस्प होगा कि टोक्यों ओलंपिक में क्या भारत के खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर मेडल प्राप्त कर पाएंगे.