रांची:- पत्र सूचना कार्यालय व रीजनल आउटरीच ब्यूरो, रांची तथा फील्ड आउटरीच ब्यूरो, दुमका के संयुक्त तत्वावधान में ’भारतीय संविधानः प्रगति एवं स्थिरता का आधार’ विषय पर आज एक वेबिनार परिचर्चा का आयोजन किया गया. इस परिचर्चा में कानून, शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र से जुड़े प्रमुख विशेषज्ञों ने भाग लिया. विशेषज्ञों की राय थी कि हमें अपने संविधान के प्रति सजग एवं प्रबुद्ध होना चाहिए
वेबिनार के मुख्य अतिथि वक्ता तथा झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश, जस्टिस एन. एन. तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा कि किसी भी देश का संविधान प्रजातंत्र का मुख्य आधार है. भारत का संविधान विश्व का लिखित रूप में सबसे विशाल संविधान है. आजादी पाने के बाद देश की सबसे बड़ी समस्या थी कि हम कैसे आगे बढ़ेंगे. ब्रिटिश साम्राज्य के अलावा देश में कई प्रिंसली स्टेट्स थे जो कि भाषाओं, विचारों में विभिन्न थे और इन सब को एक सूत्र में बांधना एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इसी को मद्देनजर रखते हुए यह तय किया गया कि एक दस्तावेज बनाया जाए जो रास्ता दिखाएं. महात्मा गांधी जी के कहने पर संविधान के ड्राफ्ट कमिटी के निर्देशन की जिम्मेदारी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को दी गई. भारत के संविधान में दूसरे संविधानों से अच्छी चीजें लिखी गई और 2000 संशोधनों के बाद पास किया गया. इसमें 284 हस्ताक्षर है जिसमें 15 महिलाओं के हस्ताक्षर हैं और यह दस्तावेज आज भी हस्तलिखित सुसज्जित संसद भवन के अंदर मौजूद है. देश के संविधान का मुख्य उद्देश्य यह है कि नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों की जानकारी के साथ-साथ गरीबी, बेरोजगारी एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों को हटाने की कोशिश की जाए. आज के दिन हम बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को संविधान के मुख्य शिल्पकार के रूप में याद करें और नागरिक सजग होकर संविधान के महत्व को समझें.
वेबिनार परिचर्चा की शुरुआत करते हुए अपर महानिदेशक पीआईबी- आरओबी, रांची अरिमर्दन सिंह ने बताया कि हमारे देश का संविधान हमारी प्रगति और स्थिरता का आधार है. जब भारतीय संविधान स्वीकार किया गया तो उसमें 395 अनुच्छेद, 22 खंड और 12 अनुसूचियां थीं. इसे तैयार करने के लिए 141 बैठकें हुई थी. संविधान को देश की विविधता को मद्देनजर रखते हुए बनाया गया है. देश की जनता की आकांक्षाओं को समाहित करते हुए और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार किया गया. संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों के साथ उनके कर्तव्य को जोड़ा गया. भारत के संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति में लिंग, जाति, धर्म भाषा, क्षेत्र आदि के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता, सबके पास एक तरह की न्यायपालिका उपलब्ध है.
सिदो कान्हु मुर्मू विश्व विद्यालय, दुमका के सहायक प्रोफेसर डॉ अजय सिन्हा ने कहा कि 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की 125 जयंती पर प्रधानमंत्री मोदी ने 26 नवम्बर 2015 को संविधान दिवस मनाने की घोषणा की. जिस समय आजादी की लड़ाई चल रही थी, उसी समय से देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने संविधान का प्रारूप तैयार किया था. उनका मानना था कि हमारा संविधान ब्रिटिश का तोहफा नहीं बल्कि जनता की आकांक्षाओं का प्रारूप होगा. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि संविधान का दायित्व यह होगा कि वह भूखे को खाना दे, नंगे को कपड़ा दे और सामाजिक बुराईयों को दूर करे. अपने अंतिम भाषण में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कहा कि यह संविधान नागरिकों को राजनीतिक आजादी देता है. यह महज शासन चलाने का दस्तावेज नहीं बल्कि हमारे लक्ष्यों एवं मूल्यों को अंकित करता है.
हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों के बारे में बात की गई है और अनुच्छेद 15 में सामाजिक समानता – जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो – संविधान के इस प्रावधान से सामाजिक विषमता को दूर करने का प्रयास किया गया है. साथ ही अवसर की समानता के बारे में बात की गई है ताकि हर व्यक्ति को उसकी योग्यता और क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने के अवसर प्राप्त हो. देश के पिछड़े वर्ग को न्याय दिलाने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है ताकि जो लोग मुख्यधारा से वंचित हैं वो जुड़ सकें.