पिछले 2 महीने से विश्व में कोरोना ने उत्पात मचा रखा है और उस पर अभी तक कोई औषधि नहीं मिली है. विशेषज्ञों का मत है कि कोरोना का टीका आने में अभी न्यूनतम 4 महीने लगेंगे.
इस कारण चीन के पश्चात इटली, स्पेन, अमेरिका तथा इरान को कोरोना ने बहुत त्रस्त कर रखा है. विश्वभर में 20 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं तथा 1 लाख 20 सहस्र से अधिक लोग इस विषाणु की बलि चढ चुके हैं.
कोरोना के कारण भविष्य में ‘वैश्विक महासत्ता’ के रूप में पहचानी जानेवाली अमेरिका की क्या स्थिति होगी, इस पर विश्व का ध्यान केंद्रित है. इसका कारण भी उचित है; इटली, स्पेन, चीन को पिछे छोड क्योंकि सर्वाधिक संक्रमित और सर्वाधिक मृतक इसी देश के लोग हैं. जहां इस आर्थिक महाशक्ति की यह स्थिति है, वहां अन्य देशों की क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती.
आजकल सभी राष्ट्रों द्वारा कोरोना के इस वैश्विक फैलाव पर केवल प्रतिबंधजन्य उपाय करने के ही प्रयास किए जा रहे हैं. इनमें से उपाय के रूप में सभी स्तरों पर जो स्वीकार किया जा रहा है, वे उपाय भारतीय संस्कृति में बताए गए नित्य आचरण अथवा अच्छी आदतों के भाग के रूप में अपनाए जा रहे हैं.
इससे सनातन संस्कृति की श्रेष्ठता स्पष्ट दिखती है. ‘कोरोना’ पर वैज्ञानिक उपाय जब निकलेगा तब; परंतु भारतीय संस्कृति का आचरण अर्थात धर्माचरण का भाग केवल कोरोना ही नहीं, अपितु महामारी, प्राकृतिक आपदाएं और अन्य संकटकालीन परिस्थितियों के उपाय भी हैं, यह निश्चित है.
नमस्कार: अभिवादन की परिपूर्ण पद्धति !
कोरोना के संक्रमण के कारणों में पश्चिमी देशों में प्रचलित हाथ मिलाने (शेक हैन्ड) की पद्धति भी एक कारण है. यह ध्यान में आने के पश्चात इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, फ्रान्स, आयरलैंड, इस्राईल, इटली, साथ ही अन्य देशों के प्रमुखों ने एक-दूसरे से मिलने पर हाथ जोडकर नमस्कार करने की भारतीय (अर्थात हिन्दू) पद्धति को अपनाया.
केवल हाथ मिलाने के विकल्प के रूप में ही नमस्कार की मुद्रा का महत्त्व नहीं है, अपितु अभिवादन की इस पद्धति में अन्यों के सामने विनम्र होना अथवा सामने के व्यक्ति में ईश्वर के अंश के सामने लीन होना, यह आध्यात्मिक अर्थ भी समाहित है.
पाश्चात्य विश्व भले ही उस भावना तक नहीं पहुंचा हो; परंतु क्रियान्वयन के स्तर पर ही क्यों, हाथ मिलाने की अपेक्षा भारतीय संस्कृति को नमस्कार कर रहा है, यह भी बहुत बड़ी बात है.
आयुर्वेद की देन !
जहां से कोरोना का आरंभ हुआ, उस चीन में कोरोना फैलने के पीछे पशुओं का ‘अधपका मांस खाना’, यह कारण सामने आया था. तत्पश्चात अनेक लोग मांसाहार से दूर भागे. हिन्दू धर्म में मांसाहार को तमोगुणी बताकर शाकाहार का समर्थन किया गया है.
आज भी भारत में अधिकांश लोग शाकाहारी हैं. भारतीयों के भोजन में हल्दी, अदरक, काली मिर्च तथा अजवाईन जैसे संक्रमणविरोधी तथा औषधीय गुणधर्म से युक्त पदार्थों का बड़ी मात्रा में उपयोग किया जाता है.
यहां के लोग भोजन आरंभ करने से पहले की जानेवाली प्रार्थना में ‘भोजन केवल जिव्हा की लालसा की आपूर्ति के लिए नहीं, अपितु एक यज्ञकर्म है’, ऐसा भाव प्रकट करते हैं. भारत में आज भी घरों में दहलीज होती है.
ये दहलीजें केवल वास्तुरचना का भाग नहीं हैं, अपितु घर के बाहर और अंदर क्या-क्या होना चाहिए, वे इसकी सीमारेखा हैं. यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में आंगन को गोबर से लीपने की पद्धति प्रचलित है.
यहां के अनेक स्थानों पर शुद्धीकरण हेतु गोबर और गोअर्क का उपयोग किया जाता है. ऐसे न जाने कितने सूत्र बताए जा सकते हैं. धर्माचरण के ये कृत्य व्यक्ति का जीवन आध्यात्मिक और स्वस्थ बनाते हैं.
इसके साथ ही 14 अप्रैल को देश को किए संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्टता के साथ आयुष मंत्रालय द्वारा (अर्थात आयुर्वेदादि वैकल्पिक चिकित्सकीय शास्त्रों को बल देने हेतु (Alternative Medical Sciences) नियुक्त मंत्रालय द्वारा) जारी नियमावली का आचरण करने की बात कही है.
अतः अपने नित्य आचरण में इन कृत्यों का आचरण किया गया, तो उससे व्यक्ति का व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन स्वस्थ रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है.
अग्निहोत्र !
इसके अतिरिक्त महामारी से बचने तथा वातावरण की शुद्धि हेतु प्रतिदिन ‘अग्निहोत्र’ करने की संकल्पना भी भारतीय संस्कृति में है. अग्निहोत्र की उपासना से वातावरण शुद्ध होकर एक प्रकार का सुरक्षाकवच तैयार होता है.
इस अग्निहोत्र में किरणोत्सर्जन से रक्षा करने का भी सामर्थ्य है. प्रतिदिन अग्निहोत्र करने से वातावरण में व्याप्त हानिकारक जीवाणुओं की मात्रा लक्षणीयरूप से घट जाती है. रामरक्षादि स्तोत्र में भी स्तोत्रों का श्रद्धापूर्वक परायण करने वाले की सभी प्रकार के संकटों से रक्षा होगी, इस प्रकार की फलश्रुति बताई गई है.
अनेक लोगों ने इसे अनुभव किया है. आज भी हिन्दू धर्म द्वारा निर्देशित सूत्र वैज्ञानिक स्तर पर भी उपयुक्त सिद्ध हो रहे हैं, कोरोना की पृष्ठभूमि पर पुनः यही अधोरेखित हो रहा है.
उत्पत्ति, स्थिति एवं लय एक महत्त्वपूर्ण नियम है. जिस प्रकार मध्यरात्रि समाप्त होने के पश्चात सूर्योदय होता ही है, उसी प्रकार से आपत्ति के उत्पात मचाने पर उसका लय भी होता है. अनेक द्रष्टा संत एवं भविष्यवेत्ताओं के बताए अनुसार वर्ष 2023 में पुनः एक बार रामराज्य का उषाकाल होनेवाला है. इसलिए इन आपत्तियों से पार होने हेतु चिकित्सकीय उपायों के साथ ही साधना और व्यक्तिगत उपासना का बल बढाना भी आवश्यक है.
‘अधर्माचरण’ ही सभी रोगों का मूल !
विगत कुछ वर्षों में नए-नए संक्रमणकारी रोगों का उद्भव हुआ है, उसके साथ ही प्राकृतिक आपदा की घटनाएं भी बढ़ी हैं. आयुर्वेद बताता है कि अधर्माचरण ही सभी रोगों का मूल है.
धर्माचरण क्रियान्वयन का शास्त्र है. श्रद्धापूर्वक उसका आचरण करने वाले को उसका फल मिलता ही है. आयुर्वेदिक एवं धर्माधिष्ठित जीवनप्रणाली को अपनाना ही स्वस्थ और आनंदमय जीवन का रहस्य है; परंतु विगत कुछ दशकों से समाज में ‘धर्माचरण का अर्थ पिछडापन’ मानने की धारणा प्रबल हुई है.
स्वयं को बुद्धिजीवी कहलाने वाले अनेक नास्तिकतावादी और आधुनिकतावादी संगठनों ने इस धारणा को बल ही दिया है. ये संगठन हिन्दू संस्कृति को लक्ष्य बनाने की एकमात्र रणनीति चला रहे हैं.
आज जहां संपूर्ण विश्व भारतीय संस्कृति की ओर बड़ी आशा के साथ देख रहा है, ऐसे में कथित विज्ञानवाद के भ्रम में रहकर भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को अस्वीकार करना परम दुर्भाग्य है.
भारत के ‘इलीट क्लास’ को छोड दिया जाए, तो सर्वसामान्य भारतीय समाज इन लोगों के दुष्प्रचार को पीठ दिखाकर महान भारतीय संस्कृति का आचरण करने लगा है. इसका एक उदाहरण है दूरदर्शन वाहिनी पर पुनः प्रसारित किए जा रहे धारावाहिक ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने टीआरपी के विगत 4 वर्षों में स्थापित सभी कीर्तिमान तोड़ दिए हैं.
कथित आधुनिकतावाद के नाम पर सनातन संस्कृति को अस्वीकार करने की अपेक्षा स्वयं को पुनः धर्म से जोड़ने में अर्थात धर्माचरण करने में ही व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का हित समाहित है, अब भारतीय लोगों ने यह पहचान लिया है.
अतः आज के इस लॉकडाउन के समय में धर्म के बताए श्रेष्ठ आचारों का पालन कर भारतीय समाज को उसके महत्त्व का अनुभव करना चाहिए.