नीता शेखर,
“वह छोड़ गए हमें न जाने उनकी क्या और मजबूरी थी,
खुदा ने कहा इनमें उनका कोई कसूर नहीं यह कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी.”
इंतहां हो गई… इंतजार की ? आई ना कुछ खबर मेरे यार की, इतना तो है यकीं बेवफा वो नहीं पिर वजह क्या हुई इंतजार की
सरिता और विजय की कहानी भी कुछ ऐसी ही है दोनों एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे कहीं भी जाते दोनों साथ साथ जाते. चाहे वह ड्रामा हो या कोई भी कंपटीशन हरदम दोनों साथ रहते थे.
कॉलेज में उनका नाम ही रख दिया गया था ” हिज और हर”! दोनों की जोड़ी भी बहुत अच्छी थी देखते देखते 4 साल कब गुजर गया कुछ पता ही नहीं चला. सब की नौकरी भी लग गई थी सरिता की नौकरी दिल्ली में तथा विजय की नौकरी मद्रास में लगी थी.
अब समस्या थी इतने सालों तक एक साथ रहने के बाद एकदम से नौकरी के सिलसिले में अलग होना. लेकिन सवाल जब नौकरी का हो तो जाना ही पड़ता है. फिर दोनों अपनी अपनी मंजिल पर चल पड़े जाने के पहले उन्होंने वादा किया कभी हम एक दूसरे को नहीं भूलेंगे और हर रविवार को हम बात किया करेंगे.
शुरू के महीने में तो यह नियम चलता रहा फिर व्यस्तता के कारण बात करने का सिलसिला थोड़ा कम हो गया.
देखते-देखते एक साल गुजर गया, अब सरिता के घरवालों भी परेशान हो रहे थे, बहुत कोशिश करने के बाद सरिता की विजय से बातचीत हुई विजय से बात करके सरिता को पता चला कि वह 2 साल के लिए अमेरिका जा रहा है. अब सरिता सोच नहीं पा रही थी करे तो करे क्या, फिर भी उसने बहुत सोच विचार कर विजय से शादी के बारे में बात की विजय ने उससे वादा लिया तुम सिर्फ दो साल इंतजार कर लो मैं जैसे ही अमेरिका से आऊंगा तुमसे शादी कर लूंगा.
सरिता ने भी घरवालों को समझा-बुझाकर शांत कर लिया देखते-देखते दो साल भी निकल गए पर विजय वापस नहीं आया अब सरिता के घर वाले भी परेशान हो चुके थे. फिर उन्होंने सरिता की शादी रोहित से करा दी. रोहित भी बहुत अच्छा लड़का था वह सरिता का खूब ख्याल रखता था पर सरिता के मन में जो गांठ पड़ गई थी उसे खोलना बहुत मुश्किल था उसे हर समय यही लगता विजय ने उसके साथ ऐसा क्यों किया और उसे जवाब समझ में नहीं आता था.
देखते-देखते सरिता की शादी को 5 साल बीत गया इसी बीच उन लोगों का ट्रांसफर पुणे हो गया. पुणे गए हुए उन्हें तीन चार महीने बीते थे कि अचानक एक दिन बाजार में उसकी दोस्त रूपा मिल गई. बहुत दिनों के बाद उनकी मुलाकात हुई थी दोनों ने कहा चलो कॉफी पीते हैं इसी बहाने हमारी बातचीत भी हो जाएगी. सरिता ने कहा हां चलो बहुत दिन हो गए गप्पे मारते है. दोनों कॉफी हाउस में बैठकर बीते दिनों की बातचीत करने लगी इसी बीच सरिता को पता चला कि विजय इस दुनिया में नहीं रहा.
क्या इतना सुनते उसका दिमाग चकरा गया उसने तो सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था की बातें सुनकर उसे यकीन नहीं हो रहा था थोड़ी देर के बाद उसने पूछा ऐसा क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ, मुझे तो कुछ भी पता नहीं चला रूपा ने बताया विजय ने जब नौकरी ज्वाइन की थी उसके 3 महीने के भीतर उसकी तबीयत खराब हो गई. एक दिन वह ऑफिस में बेहोश होकर गिर पड़ा जब डॉक्टर के पास ले गए तो उसे ब्लड कैंसर थ. यह बात उसे मालूम ही नहीं थी इसलिए उसने तुम से दूरी बनाना शुरू कर दिया था.
अमेरिका पढ़ाई करने जाना तो एक बहाना था दरअसल वहां वह इलाज करवाने गया था वहां से ठीक हो कर वापस भी आ गया था, पर वह अब काफी शांत रहने लगा था यह बीमारी ऐसी थी जो कभी भी फिर से हो सकती थी वही हुआ एक साल के अंदर ही अंदर उसको दोबारा बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया था एक दिन उसने रूपा और विराट को अपने पास बुलाया चुकी विराट भी उसका दोस्त था. वो भी साथ में पढ़ते थे उससे शादी कर ली थी. वहां पहुंचे तो उसने दर्द भरी कहानी सुनाई और वादा ले लिया जब तक मैं इस संसार से विदा ना हो जाऊ तुम लोग सरिता को कुछ भी नहीं बताना. ऐसा हुआ कि अभी 6 महीने पहले ही उसकी मृत्यु हो गई.
आज सरिता उसी शहर में आ गई थी जहां उसने अंतिम सांसे ली थी सरीता सब कुछ जान कर खुद को नहीं रोक पाई. रोते-रोते उसने कहा एक बार तो सच्चाई बताई होती. विजय नहीं चाहता था कि तुम्हारी दुखी देखे, वह तुम्हारे साथ बिताए हुए पल को ले जाना जाता था. उसने रूपा से कहा अगर तुम्हारी मुलाकात सरिता से हो तो कहना मैं उसको भूल तो नहीं पाऊंगा पर मर कर भी हमेशा उसके साथ रहूंगा.
सरिता के मन में जो गांठ थी वह अब सदा के लिए खुल गई थी. अब सरिता को विजय के साथ बिताए हुए एक-एक पल याद आ रहा था.
उसे आज सही में लग रहा था “आदमी मुसाफिर है आता है जाता है, आते जाते रस्ते में यादें छोड़ जाता है. विजय तो चला गया था पर हमेशा के लिए सरिता के दिल में यादें छोड़ गया था.