रांची: एशिया का सबसे घना जंगल सारंडा वन क्षेत्र 700 से अधिक पहाड़ियों से घिरा है. मनोरम दृश्य तथा अपने गर्भ में अरबों-खरबों की अकूत खनिज एवं वन संपदा समेटे पश्चिमी सिंहभूम जिले के जगन्नाथपुर विधानसभा सीट से 2019 के विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा या उनकी सांसद पत्नी गीता कोड़ा चुनाव मैदान में है, लेकिन इस बार भी उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर है. जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र स्थित लौह अयस्क खदानों से देश-विदेश की कई फैक्ट्रियों की चिमनी जलती है और देश में स्टील उत्पादन के लिए 25 प्रतिशत लौह अयस्क का हिस्सा इसी क्षेत्र से जाता है.
निर्दलीय विधायक रह कर करीब दो साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहे मधु कोड़ा का यह निर्वाचन क्षेत्र देशभर में चर्चित रहा है और झारखंड के सबसे हाॅट सीटों में से एक माना जाता है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में सीमा से अधिक राशि खर्च करने के मामले में आयोग ने मधु कोड़ा के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी, जिसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी विधायक पत्नी गीता कोड़ा चुनाव लड़ी, लेकिन हार गयी, परंतु 2019 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर गीता कोड़ा चुनाव जीतने में सफल रही.
गीता कोड़ा जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र का भी दो बार प्रतिनिधित्व कर चुकी है, लेकिन सांसद बन जाने के बाद इस बार कांग्रेस ने कोड़ा दंपत्ति के करीबी सोनाराम सिंकू को उम्मीदवार बनाया है. लगातार 20 वर्षों से जगन्नाथपुर विधानसभा में कोड़ा दंपत्ति का ही राज चल रहा है , यहां कोड़ा दंपति का सिक्का चलता है. कहा जाता है कि मधु कोड़ा जिसको चाहे उसे सांसद और विधायक बना सकते हैं. इस बार 2019 के चुनाव में मधु कोड़ा के अभेध किला जगन्नाथपुर में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने सुधीर सुंडी को अपना प्रत्याशी बनाया है. सुधीर सुंडी अध्यापक रह चुके हैं इसके साथ ही वह जिला परिषद सदस्य का भी चुनाव जीत चुके हैं , परंतु पिछली बार जिला परिषद चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
कांग्रेस प्रत्याशी सोना राम सिंकू बेहद साधारण परिवार से आते है और वह निजी बस में एजेंट-कंडक्टर का काम कर किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे थे. सोनाराम सिंकू मधु कोड़ा और कोड़ा दंपति के खासम खास माने जाते हैं. यही कारण है कि कोड़ा दंपति ने महागठबंधन में कांग्रेस को मिली इस सीट पर सोनाराम सिंकू को चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं भाजपा में चुनाव की तैयारी कर रहे मंगल सिंह सुरेन ने टिकट नहीं मिलने पर आजसू पार्टी का दामन थाम थाम लिया है और आजसू पार्टी के चुनाव चिन्ह केला छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि पूर्व विधायक रहे मंगल सिंह बोबोगा जो झामुमो में थे. झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के कारण झामुमो छोड़कर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो में शामिल हो गए और झाविमो की कंघी लेकर चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरे हैं.
जगन्नाथपुर विधानसभा में वैसे तो राष्ट्रीय क्षेत्रीय और निर्दलीय सहित 13 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं और चुनावी दंगल में जोर आजमाइश कर रहे हैं. लेकिन भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों की के बीच सीधा मुकाबला होना माना जा रहा है , वहीं आजसू पार्टी से चुनाव लड़ रहे मंगल सिंह सुरेन और झाविमो के कंघी लेकर चुनाव मैदान में उतरे पूर्व विधायक मंगल सिंह बोबोगा चुनाव को चतुर्थकोणीय बनाने में जुटे हैं. सभी प्रत्याशियों द्वारा चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में पूरी ताकत झोंक दी गयी है. प्रत्याशी सुबह से लेकर देर रात्रि तक गांव-गांव घर-घर घूम रहे हैं और मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने में जुटे हैं. चुनाव जीतने के लिए हर तरह के राजनीतिक हथकंडे अपनाए जा रहे हैं साम-दाम-दंड-भेद ,खरीद-फरोख्त ,प्रलोभन तोड़फोड़ से भी गुरेज नहीं किया जा रहा है.
लाल पानी, गरीबी, बेरोजगारी पलायन रहा है प्रमुख मुद्दा
दर्जनों लोहा खदानों, वन संपदा के बावजूद जगन्नाथपुर विधानसभा में गरीबी, बेरोजगारी, पलायन आदि की समस्या प्रमुख है इसके साथ ही लाल पानी के आतंक से लोग परेशान हैं. लोएस्ट खदानों से निकलने वाले डस्ट और धूल कनसे पूरा वातावरण प्रदूषित और जल स्रोत नदी लाले लाल हो गए हैं. लोग लाल पानी, नदी नाले का गंदा पानी लोग पीने को विवश है. लाल पानी का आतंक, धूल प्रदूषण, बेरोजगारी -पलायन राजनीतिक मुद्दा बना है. जगन्नाथपुर विधानसभा का अधिकांश क्षेत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता है अधिकांश बूथ जंगल क्षेत्रों में है. सारंडा जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. पुलिस प्रशासन के लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्र में निष्पक्ष पारदर्शी और भयमुक्तत चुनाव कराना भी बड़ी चुनौती है.