नीता शेखर,
“रंग बिरंगी दुनिया में जिंदगी भी रंगीन हो यह जरूरी नहीं होता”. हर चीज जो पीला दिखती है वह सोना नहीं होता, पीतल भी पीला ही होता है.
अवनी भी काफी खूबसूरत थी. उसकी खूबसूरती के चर्चे चारों तरफ फैले हुए थे. सच भगवान भी कभी-कभी लगता है खुद से ही किसी को अपने हाथों से गढ़ देते हैं. खूबसूरत तो थी ही, उसका जन्म भी एक काफी रईस फैमिली में हुआ था. वहां पैसों की कोई कदर नहीं थी. भगवान ने सब कुछ दिया था पर नहीं दिया संस्कार.
उसके पापा को तो बिजनेस से फुर्सत नहीं थी. मां भी अपनी दुनिया में लगी रहती. जब देखो किटी पार्टी, क्लब इन सबकी वजह से अवनी बहुत घमंडी और बद जुबान हो गए थी. अपने आगे वह किसी को कुछ समझती नहीं थी. इसलिए क्लास में भी कोई अच्छी दोस्त नहीं थी. वह हमेशा अलग अलग रहती.
समय कैसे गुजर जाता है पता ही नहीं चलता. ऐसे ही अवनी कब बड़ी हो गई किसी को पता ही नहीं लगा. अब उसके मां बाप को भी ध्यान आया कि अवनी की शादी कर देना चाहिए. उन्होंने लड़का खोजना शुरू किया पर जो भी लड़का देखती वह उसे छांट
दिया करती थी, इतना ही नहीं कई बार तो लड़के वालों का अपमान भी कर दिया करती थी.
समय गुजरता जा रहा था पर वह किसी भी लड़के को पसंद ही नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसने तो सोचने समझने की शक्ति इस्तेमाल ही नहीं की ना ही उसे घर से कोई भी संस्कार मिला था.
यहां तो उसकी अपनी मर्जी चलती थी. उसे अपनी सुंदरता से बहुत प्यार था. इस चक्कर में दिन बीते जा रहे थे पर अभी भी वह सब को छांट दिया करती थी. देखते देखते छोटे भाई की भी शादी हो गई और अवनी के नखरे दिन पर दिन बढ़ते जा रहे थे.
आज उसकी मां को भी अपने आप पर शर्म आ रही थी कि पैसे की धुन में अंधे होकर घर परिवार को संभाल नहीं पाई थी पर “अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.
समय बीतता गया अवनी अपने घमंड के नशे में चूर होते गई. आज भी उसके जीवन में कोई बदलाव नहीं आया था. देखते देखते 40 साल की हो गई शादी नहीं हुई. मां बाप ने भी लड़का खोजना बंद कर दिया. अब अवनी काफी चिड़चिड़ी और बदतमीज हो गई थी. वह किसी को भी कुछ भी बोल देती. अपने छोटे भाई की बीवी से भी उसकी नहीं पटती थी. उसके साथ हमेशा अनबन रहने लगी. वक्त गुजरता जा रहा था, किसी भी अवस्था में शादी के लिए तैयार नहीं हो रही थी.
वक्त ना रुका है ना किसी के लिए रुकता है. देखते देखते अवनी के माता-पिता का भी देहांत हो गया. अवनी अकेली हो गई थी, अब बिजनेस और पैसे पर भाई का हक हो गया था. भाई की पत्नी से तो पटता ही नहीं था. अब उसके हाथ में चाबी थी. उसने अवनी को एक दिन खूब खरी-खोटी सुनाई और कह दिया तुम खुद खाना बनाओ और खाओ.
उसने सभी नौकरों से मना कर दिया. उनका काम कोई नहीं करेगा. जब तक मां पापा थे तब तक तो किसी की मजाल नहीं थी उनके जाते ही सब बदल गए थे. अब उम्र भी बढ़ चली थी जो अवनी इतनी खूबसूरत थी आज वह विलुप्त हो चली थी. आज उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गए थे जहां जब किसी के साथ की जरूरत होती है. अवनी का कोई अपना नहीं था उसने किसी को अपना बनाया ही नहीं था. हालात यह हो गए कि उसके छोटे भाई की पत्नी ने उसको आउट हाउस में रखवा दिया.
अवनी बीमार रहने लगी थी पर उसको देखने वाला कोई नहीं था. आज उसको महसूस हो रहा था खूबसूरती और पैसे ने कैसे उसको बर्बाद कर दिया था. आज उसे महसूस हो रहा था कि उसने कितने लड़कों अपमानित किया था. शायद उनकी ही आह लगी होगी पर अब सोचने से कुछ फायदा तो था नहीं एक दिन अवनी बेहोश होकर गिर पड़ी जब होश आया तो अपने आप को अस्पताल में पाया. उसका भाई उसको भर्ती कराकर जा चुका था. जब ठीक हो कर घर आई तो पता चला भाई ने उसको ऋषिकेश के आश्रम में भेजने की तैयारी कर ली थी. वह फिर यहां आ गई उसके बाद उससे मिलने आज तक कोई नहीं आया.
यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है , जब मैं ऋषिकेश गई थी. वहां मुझे 4 दिन रहने का मौका मिल. वहीं पर मैंने देखा एक बूढ़ी औरत दिनभर कुर्सी पर बैठ कर देखते रहती, फिर मुझे भी थोड़ी जिज्ञासा हुई. मैंने जाकर उनसे बात की. तभी उन्होंने अपनी कहानी बताई और झर झर उनकी आंखों से आंसू बह चले थे. अच्छा तो मुझे भी नहीं लग रहा था पर कहते हैं ना “जैसी करनी वैसी भरनी” इसलिए कहते हैं कि इस रंग बिरंगी दुनिया में कोई जरूरी नहीं कि सबकी जिंदगी रंगीन हो. जिंदगी भी बहुत मुश्किल से मिलती है उसका सम्मान करना चाहिए, अति किसी भी चीज के लिए अच्छी नहीं होती.