प्रमुख संवाददाता : उपेन्द्र सिंह
रांची : विश्वहिन्दू परिषद और RSS बैक ग्राउंड से ककहरा सीखने वाले बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो का वजूद संकट में दिखता नजर आ रहा है. खुद बाबूलाल के लगातार विधानसभा और लोकसभा में हार से उनका भी राजनीतिक भविष्य अधर में लटकता दिखाई दे रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में झाविमो को आठ सीटें मिलीं थी. इनमें से छह विधायक भाजपा में शामिल हो गये. बाकी बचे दो विधायक प्रकाश राम और प्रदीप यादव पार्टी के साथ रहे, लेकिन प्रकाश राम पर पार्टी विरोधी गतिविधि के आरोप लगा और उन्हें सस्पेंड कर दिया गया.
प्रदीप यादव, रिंकी झा मामले में फरार चल रहे हैं. उन पर यौन उत्पीड़न का केस दर्ज हुआ है. ऐसे में बाबूलाल के लिये पार्टी व खुद का वजूद बचाना मुश्किल हो गया है. हाल में हुए लोकसभा चुनाव में बाबूलाल को करारी हार मिली. उन्हें लगभग सवा चार लाख वोट से हार का सामना करना पड़ा.
जब बाबूलाल का भाजपा से हुआ मोह भंग
भाजपा ने जब अर्जुन मुंडा सरीखे आदिवासी चेहरा को खड़ा किया तो बाबूलाल का भाजपा से मोह भंग हो गया. अपने को भाजपा से किनारा करते हुये झारखंड विकास मोरचा की नींव रख दी. इस पार्टी में भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय, दीपक प्रकाश जैसे सरीखे नेता भी इस दल में शामिल हो गये. लेकिन इन नेताओं ने कुछ अंतराल में ही बाबूलाल की पार्टी को बाय़-बाय़ कह दिया. इसके बाद भी बाबूलाल संगठन को मजबूती देने के लिए डटे रहे. लगातार दो लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव में हार के बाद उनका विश्वास डिगा नहीं. पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी के आठ उम्मीदवार विजयी रहे. लेकिन यहां भी बाबूलाल की किस्मत दगा दे गई. छह ने पार्टी छोड़ दिया.
उजड़े चमन को बसाने की राह आसान नहीं
अब झाविमो उजड़े हुये चमन की स्थिति में है. बाबूलाल के पास उजड़े चमन को फिर से बसाने की बड़ी चुनौती है. पार्टी की लगातार हार से कार्यकर्ताओं का ना केवल मनोबल टूटा है बल्कि वे भी दूसरे दलों की ओर रुख करने लगे हैं. भले बाबूलाल ऊपरी तौर पर अपने को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन पीछे की भीड़ भागती नजर आ रही है. अब उनके पास विकल्प के तौर पर राष्ट्रीय दल भाजपा और कांग्रेस ही है.
बाबूलाल मरांडी की इससे पूर्व भी भाजपा के पाले में जाते -जाते रह गये, बात बनते बनते रह गयी. जो भी हो विश्व हिन्दू परिषद से राजनीतिक करियर की शुरूआत करने वाले झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी का वजूद संकट के दौर में है. यही वजह है कि उन्हें किसी राष्ट्रीय दल का दामन थामने को मजबूर कर रहा हैं. वह या तो वे अपनी पुरानी पार्टी भाजपा में शामिल हो कर दल में ऊंचा ओहदा प्राप्त करे या कांग्रेस में शामिल होकर झारखंड का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने सपने गढ़े।