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चेन्नई में हुई घोषणा
रांची: झारखंड की पारंपरिक सोहराय-कोहवर पेंटिंग को जीआई रजिस्ट्री चेन्नई द्वारा औपचारिक रूप से जीआई टैग प्रदान कर दिया गया है. इसकी घोषणा मंगलवार को चेन्नई में हुई. यह पेंटिंग हजारीबाग जिले के क्षेत्र में प्रचलित है. यह झारखंड राज्य का पहला जीआई है. इससे इस पारम्परिक पेंटिंग में शामिल आदिवासी समुदाय की समग्र आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा.
इस संबंध में सोहराय के लिए जीआई टैग प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रक्रिया नेशनल लॉ स्कूल, बैंगलोर के विशेषज्ञ डॉ सत्यदीप कुमार सिंह की टीम और उनके सहयोगी विवेक शुक्ला द्वारा झारखण्ड सरकार के साथ मिल कर शुरू की गई थी.
उपर्युक्त टीम ने इस संबंध में शोध करते हुए कई क्षेत्र सर्वेक्षण किए और अन्य सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरी कर 23 अगस्त, 2019 को झारखण्ड प्रदेश के लिए पहले जी आई (GI) के लिए आवेदन दिया.
प्रक्रिया की अंतिम सुनवाई जीआई रजिस्ट्री कार्यालय द्वारा 22 नवंबर 2019 को नई दिल्ली में हुई थी. हजारीबाग के तत्कालीन जिलाधिकारी रविशंकर शुक्ला के प्रयास से शुरू हुए इस कार्य मे प्राशनिक तौर पर तत्कालीन उद्योग सचिव (रवि कुमार) और वर्तमान (प्रवीण टोप्पो), निदेशक के एन झा का काफी सहयोग रहा.
आदिवासी कला 5000 वर्षों से भी अधिक का इतिहास रहा है:
“सोहराई” एक स्थानीय त्यौहार है. इन त्योहारों के दौरान स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं में दीवारों पर अनुष्ठानिक भित्ति चित्र बनाए जाते हैं. इस आदिवासी कला का 5,000 वर्षों से अधिक का इतिहास है और 7,000- 4,000 ईसा पूर्व के बीच इसका वर्णन मिलता है.
झारखंड के हजारीबाग जिले के पहाड़ी इलाकों में रॉक गुफा कला के रूप में प्रागैतिहासिक मेसोलिथिक रॉक (7000 ईसा पूर्व) में सोहराई-कोहवर कला परंपरा का प्रमाण मिलता है.
भारत के मशहूर एंथ्रोपोलोजिस्ट शरत चन्द्र रॉय और ब्रिटिश जमाने मे आसपास के इलाके में काम करने वाले प्रशिद्ध ऑफिसर डब्ल्यू जी. आर्चर ने अपने किताबों और लेखों में इस कला का जिक्र किया.
सोहराई-कोहवर पेंटिंग का प्रस्तावित लोगों, सोहराई पर्व में पूजे जाने वाले पशुपति को प्रतिबिम्बित करता है: डॉ सत्यदीप
इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी और ज्योग्राफिकल इंडिकेशन से सम्बंधित कानून के विशेषज्ञ डॉ सत्यदीप सिंह ने जानकारी दी है की सोहराई-कोहवर पेंटिंग का प्रस्तावित लोगों, सोहराई पर्व में पूजे जाने वाले पशुपति को प्रतिबिंबित करता है.
हजारीबाग के आदिवासी अपने मिट्टी के घरों पर सोहराई पर्व के समय में विभिन्न आकृतियों की पेंटिंग बनाते हैं जिनमें पशुपति, पुराणपत और कुछ ज्यामितीय आकृतियां प्रमुख हैं. सोहराई-कोहवर पेंटिंग हजारीबाग के इलाके में पाई जाने वाली मिट्टियों से बनाई जाती है. इसमें रंगों के तौर पर हजारीबाग में पाई जाने वाली विभिन्न रंगों की मिटटी का ही इस्तेमाल होता है.
स्थानीय मिट्टी के रंगों के हिसाब से सोहराई-कोहवर पेंटिंग में सिर्फ चार से पांच रंगों का ही इस्तेमाल होता है. प्रस्तावित लोगों के चयन और निर्माण में इस्तेमाल होने वाले रंगों में इस बारीकी को ध्यान में रखा गया है और पशुपति को प्रतिबिंबित करते इस लोगों में सिर्फ उन पांच रंगों का ही इस्तेमाल किया गया है.
उत्पादों के लिए भी जीआई टैग लेने का हो रहा है प्रयास:
डॉ सत्यदीप सिंह ने यह भी जानकारी दी है कि झारखंड सरकार के सहयोग से राज्य के अन्य प्रसिद्ध उत्पाद जिनमें राज्य के लिए रांची पपीता, देवघर का पेड़ा, पूर्वी सिंहभूम का पैटकर पेंटिंग, झारखंड का तसर सिल्क के लिए भी जीआई टैग प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है.
इस दिशा में नेशननल का स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलुरु से सम्बंधित डॉ सत्यदीप सिंह ने कुछ सर्वे का काम भी पूरा कर लिया है. पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त रविशंकर शुक्ला ने भी इसके मद्देनजर पैटकर चित्रकारी से जुड़े पूर्वी सिंहभूम के हेरिटेज विलेज आमादूबी का हाल में ही दौरा कर इस दिशा में उचित प्रबंधन का प्रयाश किया है.
झारखंड सरकार के उद्योग सचिव के रवि कुमार के प्रयास से झारखंड गवर्नमेंट टूल रूम, टाटीसिलवे में नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलुरु की साझेदारी से एक कार्यालय स्थापित किया गया है जो राज्य के विभिन्न प्रसिद्द उत्पादों के वास्ते जीआई टैग प्राप्त करने एवं राज्य में अन्य इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी के प्रति जागरूकता लाने और उसके संवर्धन की दिशा में कार्य करेगी.