ग्लोबल फोरम फॉर रिहैबिलिटेशन प्रैक्टिशनर का वेबिनार
रांची: राष्ट्रीय शिक्षा नीति में दिव्यांगजन सहित वंचित समुदायों के समावेश पर विशेष बल दिया गया है. दिव्यांग बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल करना और उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित करना इस नीति की सर्वोच्च प्राथमिकता है.
दिव्यांगता के सन्दर्भ में नीति के प्रमुख प्रावधानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए सार्वभौमिक प्रावधान सबके लिए अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा को यथाशीघ्र लागु करने का प्रावधान है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पहली कक्षा में प्रवेश पाने वाले सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के लिए पूरी तरह से तैयार हों. यह बिना शिक्षकों के संभव नहीं. नीति यह भी मानती है की विशेष शिक्षकों की कमी है और सर्वप्रथम शिक्षकों के रिक्त पदों को जल्द से जल्द और समयबद्ध तरीके से भरा जाएगा.
नीति के मानक अनुपात (25:1) के अनुसार, राज्य में कम से कम 3360 विशेष शिक्षक के तुलना में केवल 303 विशेष शिक्षक ही उपलब्ध हैं. जो परिस्थिति को विकत बनाती है. पुनर्वास के तमाम उल्लेखनीय प्रयासों के बावजूद आज भी दिव्यांगजन हाशिये पर, वंचित एवं अनसुने हैं.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कुछ कमियों के बावजूद दिव्यांगजनों के शिक्षा को सुगम बनाने हेतु अनेक उल्लेखनीय प्रावधान किए गए हैं. इस नीति में दिव्यांगजनों के संदर्भ में प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए इनकी जानकारी के साथ-साथ स्थानीय परिस्थिति और चुनौतियों का ज्ञान भी आवश्यक है. परन्तु दिव्यांगजनों को इसका लाभ तभी मिलेगा जब ये धरातल पर उतरेंगे.
इसके लिए सभी को सम्मिलित प्रयास करना होगा. यह बात झारखंड और बिहार के संदर्भ में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (दिव्यांगजनों) की शिक्षा पर ग्लोबल फोरम फॉर रिहैबिलिटेशन प्रैक्टिशनर और झारखंड विकलांग जन फोरम के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार में विशेषज्ञों के विचार से उभर कर आयी.
बेबिनार में विकलांगता और पुनर्वास क्षेत्र में देश के जाने-माने विशेषज्ञ सेंस इंटरनेशनल इंडिया के निदेशक अखिल पाल, पुनर्वास विशेषज्ञ राहुल मेहता, सेंस इंटरनेशनल के कार्यक्रम निदेशक उत्तम कुमार, सीआरसी रांची के निदेशक जितेंद्र यादव ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति और दिव्यांगजनों के शिक्षा के सन्दर्भ में अपने विचार रखें.
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि झारखंड के राज्य निशक्तता आयुक्त सतीश चंद्र और विशिष्ठ अतिथि बिहार के राज्य आयुक्त दिव्यांगजन डॉ. शिवाजी कुमार ने सरकार द्वारा की जा रही प्रयासों के बारे में जानकारी दी. सतीश चंद्र ने कहा कि झारखण्ड ने अनेक सकारात्मक पहल किये हैं. दिव्यांगजनों के नामांकन को कोई भी विद्यालय, सरकारी अथवा निजी इंकार नहीं कर सकता. ऐसा करने पर उनकी सहबद्धता संबंधित बोर्ड द्वारा रद्द की जा सकती है.
जीएफआरपी के अध्यक्ष राजेश रामचंद्रन ने सबका स्वागत किया जबकि सचिव अलेंद्र त्रिपाठी ने ग्लोबल फोरम फॉर रिहैबिलिटेशन प्रैक्टिशनर के बारे में प्रतिभागियों को अवगत कराया. कार्यक्रम का समन्वय अमेरिका में कार्यरत झारखंड के निवासी पुनर्वास विशेषज्ञ दशरथ कच्छप ने आस्था कुमारी के सहयोग से किया. डॉ. स्मिता तिवारी ने कार्यक्रम का संचालन किया. वेबिनर में 235 लोगों ने भाग लिया.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति और दिव्यांगजनों के शिक्षा के सन्दर्भ में प्रमुख बातें–
• शिक्षा व्यवस्था में किये जा रहे बुनयादी बदलाव के केंद्र में अवश्य ही शिक्षक होने चाहिए.
• दिव्यांग बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए, इससे संबंधित जागरूकता और ज्ञान को सभी शिक्षक प्रशिक्षणों का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए.
• दिव्यांगजनों के समावेश के लिए विशेष पाठ्यक्रम.
• भारतीय साइन लैंग्वेज को प्राथमिकता.
• दिव्यांगजनों के लिए विशेष विद्यालय, समावेशी और गृह आधारित शिक्षा का विकल्प.
• विशेष विद्यालय शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आएंगे या नहीं, स्पष्ट नहीं.