रांची: सर्विस सीक्रेट फंड (Service Secret Fund) को लेकर झारखंड पुलिस अब सवालों के घेरे में हैं. क्योंकि सरकार ने इस फंड के पिछले 10 वर्षों के खर्च का हिसाब महालेखाकार को नहीं दिया है. इस फंड का इस्तेमाल पुलिस गुप्त सूचनाएं जुटाने के लिए करती है.
गुप्त सूचनाएं देने वालों की पहचान सार्वजनिक न हो इसके लिए महालेखाकार को इस फंड के ऑडिट का अधिकार नहीं दिया गया है. हालांकि इस गुप्त सेवा के नाम पर फंड का गलत इस्तेमाल व गड़बड़ी रोकने के लिए खर्च का प्रशासनिक ऑडिट करवाया जाता है. बताया जा रहा है कि पिछले दस साल से इसका हिसाब महालेखाकार को नहीं दिया गया है.
दरअसल प्रशासनिक ऑडिट के बाद एक सर्टिफिकेट विभाग को सौंपा जाता है, जिसे विभाग महालेखाकार के पास जमा करवाता है. यही सर्टिफिकेट अब तक जमा नहीं किया गया है. जबकि नियमानुसार वित्तिय वर्ष पूरा होने के बाद अगस्त महीने तक इसकी प्रक्रिया पूरी कर लेनी होती है. लेकिन सर्विस सीक्रेट फंड को लेकर ये प्रक्रिया 10 सालों से नहीं की गई है.
मिली जानकारी के मुताबिक, साल 2005-06 में करीब 8 करोड़ 30 लाख रुपयों का हिसाब पुलिस महानिदेशक ने नहीं दिया है. इसके अलावा अलग अलग वित्तिय वर्ष में दूसरे अफसरों ने भी करीब 28 करोड़ 30 लाख रुपयों के खर्च का हिसाब नहीं दिया है.
बता दें कि सर्विस सीक्रेट फंड का प्रशासनिक ऑडिट मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति करती है. बताया जा रहा है कि साल 2005-06 में काफी दबाव के बाद ऑडिट हुआ था, लेकिन समिति ने सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. इसके बाद से 10 सालों के खर्च का हिसाब नहीं सौंपा गया गया है.