नीता शेखर,
भगवान, भगवान भगवान, भगवान, ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले, आश निराशा के दो रंगों से दुनिया तू ने बनाई नैया संग तूफान बनाया,” आज मनुष्य के जीवन की लाली पर कालिमा की परछाई पड़ गई है.
एक माह से बाजार में सामानों की आपूर्ति नहीं होने से स्थानीय कारोबार पूरी तरह से चरमरा गया है. जहां एक ओर आपूर्ति नहीं होने से वस्तुओं के मूल्य में अनाप-शनाप वृद्धि हो रही है, वहीं इनकी कमी और महंगाई की वजह से ग्राहक भी गायब नजर आ रहे हैं. आज बाजार सूना, गलियां सूनी दिखाई दे रही है. जिन बाजारों में पहले चहल-पहल दिखाई देती थी, आज हर जगह सन्नाटा है. एक तो लोग डरे हुए हैं, दूसरे बाजारों में राशन और फलों, सब्जियों की किल्लत हो गई है.
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इस किल्लत की वजह से बच्चे भी परेशान हैं. उनकी मनपसंद चीजें उपलब्ध नहीं हो पा रही है. कारोबार पूरी तरह से ठप पड़ा है. चीनी और सामानों की कीमत बढ़ गई है. मौसम बदलने के साथ ही अब गर्मी के कपड़ों की मांग भी बढ़ गई है, लेकिन लॉकडाउन के कारण सभी दुकानें बंद हैं. कारोबार पर असर भी पड़ रहा है. राज्य सरकार द्वारा राशन और जरूरी सामानों के साथ सब्जियों की आपूर्ति की पहल की गई थी, पर जब माल और सब्जियों की सप्लाई नहीं हो पा रही है, तब पूर्ति कहां से होगी.
अब तो धीरे-धीरे वायरस की मार की वजह से सारी गलियां, मुहल्ले, बाजारों की चहल-पहल खत्म है. कहते हैं जिंदा तो है लोग, पर डरे-डरे से. कुछ भविष्य की परेशानी, कुछ वर्तमान की परेशानी. लोगों को यही डर है कि अगर इस वायरस की वजह से बाजार इसी तरह बंद रहे आगे का रास्ता और कठिन हो जाएगा. लोग डरे हुए हैं कि ऐसा ना हो जाए कि भूख और गरीबी एक महामारी का रूप ले ले. बेरोजगारी विकराल ना हो जाए.
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आज इस वायरस ने पूरी दुनिया को कई साल पीछे ढकेल दिया है. डर तो इस बात का है कि यही हाल रहा तो हालात सुधरने में भी काफी वक्त लग जाएंगे. जो गलियां, चौक-चौराहों पर कभी रौनक रहती थी, आज सब जगह सन्नाटा पसरा है. कपड़े और दूसरे की वस्तुओं के बिना मनुष्य रह सकता है. भोजन के बिना काफी दिनों तक रहना मुश्किल है. प्रशासन द्वारा राशन और सब्जियों को घर तक पहुंचाने की बात कही गई थी, पर उसकी आपूर्ति नहीं हो पा रही है. अब तो ये गलियां, ये चौबारा, सभी बाजार और मुहल्ला सूना सूना सा है. कब आएगी बहारें, बस सभी को है इसका इंतजार.