आज कमाल अमरोही के जन्मदिन पर जानते है उनकी प्रेम कहानी .
कमाल अमरोही जो भी करते थे पूरी तबियत और इत्मीनान करते. न उन्हें वक्त की चिंता थी और न खर्चे की परवाह. काम उनका जूनुन था. कमाल ने 16 साल की मधुबाला अपनी फिल्म महल में ना केवल मौका दिया बल्कि पहली ही फिल्म से उन्हें सुपर स्टार बना दिया. कमाल अमरोही ने ‘महल’ का एक गाना ‘मुश्किल है बहुत मुश्किल है…’ महज एक सिंगल शॉट में फिल्माया था. इस फिल्म के हिट होने के बाद कमाल हर जगह छा गए थे.
बॉलीवुड में जब भी शीर्ष निर्देशकों की गिनती होगी कमाल अमरोहा का नाम उस लिस्ट में जरूर होगा. कहने को उन्होंने सिर्फ 5 फिल्मों का ही निर्देशन किया. लेकिन महल, पाकीजा, दायरा जैसी फिल्में देकर वो हिंदी सिनेमा में अमर हो गए. बेहतरीन गीतकार, पठकथा, संवाद लेखक और निर्माता-निर्देशक के रूप में कमाल सुपरहिट रहे. एक और खास वजह से कमाल अमरोही जाने जाते हैं वो वजह थीं मीना कुमारी.
कमाल अमरोही ने फिल्म अनारकली के लिए मीना कुमारी को साइन किया. हालांकि ये फिल्म पूरी नहीं हो पाई क्योंकि प्रोड्यूसर इस फिल्म का बजट कम रखना चाहते थे, जो कमाल को पसंद नहीं आया. इस दौरान एक हादसे में मीना कुमारी के चोट लग गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. कमाल अमरोही घायल मीना कुमारी को देखने पहली बार अस्पताल पहुंचे. तब मीना कुमारी की छोटी बहन ने उन्हें बताया कि आपा तो मौसम्बी का जूस नहीं पी रहीं है. लेकिन कमाल के सामने मीना कुमारी ने एक झटके में जूस पी लिया. कमाल हर हफ्ते मीना कुमारी को देखने मुंबई से पूना आने लगे.
यहीं से दोनों के बीच नजदीकियां शुरू हुईं. दोनों ने रोजाना एक दूसरे को खत लिखने का फैसला लिया. इधर मीना कुमारी के पिता को दोनों का इस तरह करीब आना रास नहीं आ रहा था. कमाल पहले ही दो शादियां कर चुके थे और उनके तीन बच्चे भी थे. लेकिन मीना कुमारी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था. एक्सीडेंट के बाद मीना कुमारी अपनी बहन के साथ वॉर्डन रोड पर स्थित एक मसाज क्लिनिक पर रोज जातीं थीं. उनके पिता कार से दो घंटे के लिए उन्हें छोड़ जाया करते. 14 फरवरी, 1952 को दोनों बहनें पिता के छोड़ने के बाद कमाल अमरोही के पास पहुंचीं. काजी पहले तैयार थे, उन्होंने पहले सुन्नी रवायत से और फिर शिया रवायत से निकाह करवाया.
1964 में मीना कुमारी और कमाल अमरोही अलग हो गए. इस बीच 1960 में मुगले आजम फिल्म के डॉयलॉग लिख कर भी कमाल अमरोही ने अपने लेखन का जलवा बनाए रखा, इस फ़िल्म के लिए उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला था. 11 फरवरी 1993 में कमाल अमरोही ने मुंबई में अंतिम सांस ली.