हेल्थ डेस्क: रात और दिन में भरपूर सोने के बावजूद भी अक्सर कुछ लोगों की शिकायत होती है कि दिन भर झपकी आती है. अगर यह लम्बे समय से है तो यह आलस नहीं बल्कि बीमारी का संकेत है. पर्याप्त सोने के बाद भी हर वक्त नींद आना डिप्रेशन, इन्सोमेनिया, डायबिटीज, हार्ट डिजीज या अन्य बीमारी का लक्षण हो सकता है.
डिप्रेशन में होती है ऊर्जा की कमी
हमेशा नींद आना और शरीर में ऊर्जा की कमी होना डिप्रेशन का संकेत हो सकता है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति का किसी काम में मन नहीं लगता है और उसे दिन भर सोते रहने की इच्छा होती है. अगर यह समस्या ज्यादे दिनों तक रहती है तो परेशानी गंभीर हो सकती है.
हाइपरसोमनिया की बीमारी
रात में सोने के बाद भी दिन में लंबे समय के लिए सोना भी एक समस्या है. अगर इसके बाद भी उनींदापन महसूस करना भी हाइपरसोमनिया बीमारी की ओर संकेत कर रहा है. इसमें व्यक्ति १० घंटे से भी ज्यादा सोता है. लेकिन यह नींद व्यक्ति को रिलेक्स नहीं करती और दोबारा सोने की इच्छा होती है. इसी तरह रीकरेंट हाइपरसोमनिया में ज्यादा नींद आती है. इसमें 18 घंटे तक व्यक्ति सो सकता है.
अन्य बीमारियों का होना
एनीमिया, थायराइड, शुगर और कॉलेस्ट्रोल का बढ़ा हुआ स्तर. हाइपोथायरॉइड और डायबिटीज की स्थिति में शरीर में मेटाबॉलिज्म बिगड़ जाता है जिससे कोशिकाओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है. इससे शरीर की ऊर्जा तेजी से खत्म हो जाती है और थकान व नींद महूसस होती है. इससे बचाव के लिए एक उम्र के बाद रूटीन टेस्ट कराते रहें.
मिनरल्स की कमी भी कारण
शरीर को चलाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है और इसकी पूर्ति के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. शरीर को चलाने के करीब 40 प्रकार के पोषक तत्व जरूरी हैं. अगर इनमे से किसी की कमी होती है तो ज्यादा थकान और नींद आती है.
आयरन की कमी
इसकी कमी से मरीज को हर वक्त सोते रहने की इच्छा, थकान और चिड़चिड़ापन महसूस होता है. आयरन की कमी यानी मांसपेशियों और कोशिकाओं तक कम मात्रा में ऑक्सीजन का पहुंचना. ऐसे में जरूरी है कि आयरन युक्त डाइट जैसे राजमा, हरी सब्जियां, नट्स आदि का सेवन करें. इसके साथ ही कई और तत्व भी जरूरी होते हैं इसकी पूर्ति के लिए नियमित मौसमी फल और सब्जियों खूब खाएं.
समय से डाइट लें
शरीर के मेटाबॉलिज्म को शुरू करने के लिए डाइट बहुत जरूरी है. इसमें भी हर दिन सुबह का नाश्ता बहुत जरूरी होता है. नाश्ता न करने पर पूरे दिन थकान महसूस होती है. काब्र्स, प्रोटीन और गुड फैट के कॉम्बिनेशन वाला नाश्ता करना चाहिए. इसके साथ ही समय पर बाकी के मील्स भी लेते रहें.
फिजिकल एक्टिविटी न करना
नियमित रूटीन में वर्कआउट को शामिल करना भी इस समस्या से निजात दिलाता है. रोजाना वर्कआउट करने पर शरीर से हैप्पी हॉर्मोन्स का स्त्राव होता है जो ऊर्जावान बनाए रखते हैं. रोजाना कम से कम ३० मिनट समय अपने लिए निकालें.
पानी की कमी
शरीर में पानी की कमी होने पर भी थकान महसूस होती है. भरपूर मात्रा में पानी न पीने से रक्त का वॉल्यूम कम हो जाता है जिससे शरीर में ऑक्सीजन और आवश्यक पोषक तत्व के संचार की गति कम हो जाती है. हर मौसम में कम से कम 12 गिलास पानी जरुर पीना चाहिए.
ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स यूज़ करना
हमेशा मोबाइल फोन और कंप्यूटर या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स से चिपके रहना भी थकान का एक मुख्य कारण है. इन दिनों यह समस्या हर उम्र के लोगों में दिखाई दे रही है. दरअसल लंबे समय तक स्क्रीन पर देखते रहने से शरीर के पूरे सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है और नींद बाधित होती है. इससे आप सुस्ती महसूस करते हैं.
ऐसे ज्यादा नींद-थकान को करें दूर
- अपनी डाइट में केला, ग्रीन टी, सीताफल के बीज, ओटमील, दही, तरबूज, अखरोट, बींस, पालक आदि जरूर शामिल करें.
- खाने में हमेशा हाई फाइबर वाले फूड्स ही लें क्योंकि इसमें कंपलेक्स कार्बोहाइडे्रट की मात्रा ज्यादा होती है. इससे ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है और थकावट नहीं होती है.
- दो टाइम भरपेट खाना खाने की बजाय थोड़ी-थोड़ी देर पर कुछ हेल्दी खाते रहें. इससे ब्लड शुगर कंट्रोल में रहेगा. सुबह का नाश्ता टाइम पर जरूर लें.
- दिन में एक बार पालक जरूर खाएं. इसमें पोटेशियम के साथ आयरन और विटामिन बी गु्रप के कई विटामिन होते हैं जो शरीर को ऊर्जावान बनाए रखते हैं.
- ध्यान योग करें और हमेशा सकारात्मक सोचें. शवासन और भ्रामरी करना लाभकारी होता है.
- ज्यादा चाय कॉफी का सेवन न करें. अगर कोई नशा करते है तो उसको तत्काल छोड़ दें. दिन भर थोड़ा-थोड़ा पानी या कोई तरल पदार्थ लेते रहें. इससे शरीर से हानिकारक तत्व बाहर निकलते हैं और ऊर्जा मिलती है.
शोधकर्ताओं के द्वारा यह पाया गया कि जो लोग 7-8 घंटे से ज़्यादा की नींद लेते हैं उनका स्टेटिस्टिकल ग्राफ़ मृत्यु की ओर नॉर्मल लोगों की अपेक्षा ज़्यादा है. इसका मतलब है कि अत्यधिक नींद लेने वाले व्यक्ति नार्मल लोगों की अपेक्षा ज़िंदगी का लुत्फ़ कम ले पाते हैं. इस तरह इन आंकड़ों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हमें ना तो बहुत कम सोना चाहिए और न ही बहुत ज़्यादा.