रांची: समान नागरिक संहिता अथवा समान आचार संहिता का अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है. दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ की मूल भावना है. समान नागरिक कानून से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों (चाहे वह किसी धर्म या क्षेत्र से संबंधित हों) पर लागू होता है. यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है. विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं.
समान नागरिकता कानून के अंतर्गत
- व्यक्तिगत स्तर
- संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार
- विवाह, तलाक और गोद लेना
समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहां भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है. हालांकि इस तरह का कानून अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है. गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है जहां यह लागू है.
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा. यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है.
समान नागरिक संहिता है एक पंथनिरपेक्ष कानून
समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से लागू होता है. यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा. यानी मुस्लिमों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी. वर्तमान में देश हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के अधीन करते हैं. फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिन्दू सिविल लॉ के तहत हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं.
संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया. इसे लेकर एक बड़ी बहस चलती रही है.
क्या है हिन्दू पर्सनल लॉ
भारत में हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाया गया. देश में इसके विरोध के बाद इस बिल को चार हिस्सों में बांट दिया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे हिन्दू मैरिज एक्ट, हिन्दू सक्सेशन एक्ट, हिन्दू एडॉप्शन एंड मैंटेनेंस एक्ट और हिन्दू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट में बांट दिया था. इस कानून ने महिलाओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया. इनके तहत महिलाओं को पैतृक और पति की संपत्ति में अधिकार मिलता है. इसके अलावा अलग-अलग जातियों के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार है लेकिन कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड है. इसके लॉ के अंतर्गत शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है. हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में तलाक के और भी तरीके दिए गए हैं, लेकिन उनमें से तीन बार तलाक भी एक प्रकार का तलाक माना गया है, जिसे कुछ मुस्लिम विद्वान शरीयत के खिलाफ भी बताते हैं.
तलाक के बाद अगर दोनों फिर से शादी करना चाहते हैं तो महिला को पहले किसी और पुरुष के साथ शादी रचानी होगी, उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने होंगे. इसे हलाला कहा जाता है. उससे तलाक लेने के बाद ही वो पहले पति से फिर शादी कर सकती है. इस लॉ में महिलाओं को तलाक के बाद पति से किसी तरह के गुजारे भत्ते या संपत्ति पर अधिकार नहीं दिया गया है बल्कि मेहर अदायगी का नियम है. तलाक लेने के बाद मुस्लिम पुरुष तुरंत शादी कर सकता है जबकि महिला को इद्दत के निश्चित दिन गुज़ारने पड़ते हैं.
क्यों है देश में इस कानून की आवश्यकता
अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है समान नागरिक संहिता लागू होने से इस परेशानी से निजात मिलेगी और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे. शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो. वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं.
सभी के लिए कानून में एक समानता से देश में एकता बढ़ेगी और जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा. देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा और राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे और वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा.
महिलाओं की स्थिति में होगा सुधार
समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा. कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं. इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे.
क्यों हो रहा है विरोध
यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून को लागू करने जैसा है.
इन देशों में लागू है यूनिफॉर्म सिविल कोड
एक तरफ भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर बड़ी बहस चल रही है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश इस कानून को अपने यहां लागू कर चुके हैं.