रांची: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष पंडित चंद्रमौली उपाध्याय ने कहा कि भारतीय जीवन दर्शन में सोलह संस्कारों का महत्व है. यह सोलह संस्कार यूं ही नहीं बने हैं. बल्कि हमारे जीवन में इनका महत्व है. हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि संस्कार रहित जीवन हमेशा निरर्थक होता है. उस जीवन का कोई अर्थ नहीं होता. उक्त बातें उन्होंने झारखण्ड चैतन्य परिषद (प्रज्ञा प्रवाह) के फेसबुक लाइव कार्यक्रम में कहीं.
उन्होंने कहा कि संस्कार जीवन को शुद्ध बनाते है. शुद्ध आचरण, एक अच्छा स्वरूप, तेजस्वी और धार्मिक,उदार चित यानि कि सर्वगुण संपन्नता देने के लिए ही जीवन में संस्कार का महत्व है. हिंदू जीवन दर्शन में सोलह संस्कार कहे जाते हैं. भारत में संस्कारों का अर्थ बहुत विस्तृत है. संस्कार को हम ऐसे समझ सकते हैं कि खेत से कपास लाकर उसे हमारे शरीर में धारण करने योग्य वस्त्र बनाने में जो प्रक्रिया होती है. बस हमारे जीवन में संस्कार हमें उसी तरह योग्य बनाते हैं.
भारत में संस्कारों का वैज्ञानिक महत्व है. यह सिर्फ आध्यात्मिक नहीं है. गर्भाधान संस्कार से लेकर मृत्यु संस्कार तक कुल 16 संस्कार हमारे जीवन में हैं. गर्भाधान संस्कार जीवन की उत्पत्ति का पहला संस्कार है.
विज्ञान भी मानता है कि तीसरे महीने में हमें यह मालूम हो जाता है कि गर्भ में पल रहा भ्रूण कन्या है या बालक ? सोलह संस्कारों में एक संस्कार यह भी है कि गर्भ के तीसरे माह में सन्तान की रक्षा के लिए पुंसवन संस्कार किया जाता है.
यह गर्भ में पल रहे भ्रूण के स्वास्थ्य,आरोग्य व समृद्ध जीवन के लिए किया जाता है. इसमें बरगद के कोपल, गूलर के फूल व अन्य पर्यावरण प्रदत वस्तुओं का मंत्रों के साथ उपयोग किया जाता है. इस समय अपने संतान की रक्षा की कामना करते हैं. आठवें महीने में श्रीवन्त संस्कार किया जाता है.
जन्म के बाद नामकरण संस्कार होता है. जिस का वैज्ञानिक महत्व है कि संतान के जन्म के समय राशि और ग्रहों की स्थिति को देखकर उसका नामकरण किया जाता है. इसी तरह से अन्नप्रासन संस्कार, उपनयन संस्कार, विवाह संस्कार, वानप्रस्थ संस्कार सहित कई प्रकार के संस्कार होते हैं, जिसका हमारे दैनिक जीवन में, पारिवारिक जीवन में और सामाजिक जीवन में बड़ा महत्व है.
संस्कारों से कटने और टूटने के कारण ही हमें कई बार पारिवारिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. यह संस्कार हमें सिर्फ आध्यात्मिकता की ओर नहीं ले जाते बल्कि हमारी जड़ों की ओर ले जाते हैं. हमें परिवार समाज और राष्ट्र का भी महत्व बताते हैं.