-रथयात्रा के समय आडवाणी को गिरफ्तार करने वाला IPS आरके सिंह आज केन्द्र में मंत्री हैं
रांची: अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के शिलान्यास के साथ सभी के जेहन में लालकृष्ण आडवाणी के रथ यात्रा की तस्वीर ताजा हो जाती है. लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से रथ यात्रा लेकर अयोध्या के लिए निकले थे. हालांकि, यह रथ यात्रा पूरी नहीं हो पाई.
बिहार में लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया था. इस गिरफ्तारी के बाद देश में राजनैतिक हालात बदल चुके थे और केंद्र की सरकार गिर गई थी.
25 सितंबर 1990 स्थान गुजरात के सोमनाथ मंदिर में पूजा कर आडवाणी ने अपनी रथयात्रा की शुरुआत की थी. इस रथयात्रा का मकसद राम मंदिर निर्माण के लिए समर्थन जुटाना था जो सोमनाथ मंदिर से राम जन्मभूमि तक जाना था. यह रथ यात्रा 8 राज्यों के साथ-साथ उस समय की केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से गुजरने वाली थी.
तय योजना के मुताबिक 25 सितंबर को सोमनाथ से शुरू होकर यात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या में खत्म होनी थी. आडवाणी की रथयात्रा ने देश के सियासी माहौल को बदल कर रख दिया था.
इसकी धमक दिल्ली तक सुनी जा रही थी. उस समय जिन्होंने इस रथ यात्रा की रिपोर्टिंग की थी उनके मुताबिक रथयात्रा को जन समर्थन भरपूर मिल रहा था. पत्रकार अरुण पाण्डेय के मुताबिक आडवाणी उन दिनों अपने राजनीति के उत्कर्ष पर थे. अखबार के पूरे पन्ने पर सिर्फ रथ यात्रा की ही खबर छपती थी.
कई राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच आडवाणी 19 अक्टूबर को बिहार के धनबाद के लिए रवाना हो गए जहां से उन्होंने रथयात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत कर दी. वो अयोध्या पहुंचकर राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का काम 30 अक्टूबर को शुरू करना चाहते थे. उधर आडवाणी की रथ यात्रा के दौरान लालू प्रसाद यादव के दिमाग में कुछ औऱ ही चल रहा था. वो आडवाणी की रथ यात्रा के खिलाफ अभियान में लग गए थे.
इसी मकसद से लालू प्रसाद ने 21 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में सांप्रदायिकता विरोधी रैली की थी, जिसमें उन्होंने कहा कि कृष्ण के इतिहास को दबाने के लिए ही आडवाणी राम को सामने ला रहे हैं.
लालू प्रसाद यादव ने रैली में आडवाणी को चेतावनी तक दे डाली. जानकारों के मुताबिक, आडवाणी की राम रथ यात्रा के विरोध के बहाने लालू प्रसाद अल्पसंख्यक के साथ-साथ अपने यादव वोट बैंक को भी मजबूत बना रहे थे.
भले देश की सरकार लालू यादव ने गंवाई, लेकिन उसके बाद मुसलमान और यादव का मजबूत गठजोड़ लालू यादव ने बना लिया. जिसका फायदा 15 सालों तक मिला. उसी का परिणाम है कि आरजेडी में एमवाई समीकरण मजबूत है.
सुबह तड़के ही वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया गया. हवाई पट्टी तैयार की गई और बिहार से देश के बाकी हिस्सों के लिए फोन लाइनों का संपर्क कुछ देर के लिए तोड़ दिया गया.
सुबह 09 बजे आरके सिंह (आरा से भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री) ने आडवाणी के कमरे का दरवाजा खटखटाया और उन्हें अरेस्ट वॉरंट दिखाया और आडवाणी को गिरफ्तार करके चुपके से उन्हें हेलिकॉप्टर ले जाया गया.
और आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया…
लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचनी थी. लेकिन इससे पहले 23 अक्टूबर को आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया.
आडवाणी के साथ प्रमोद महाजन को भी गिरफ्तार किया गया. प्रशासन ने उनके रथ को भी जब्त कर लिया. आडवाणी को सरकार के हेलिकाप्टर से प्रमोद महाजन के साथ मसान जोर स्थित मयूराक्षी सिंचाई परियोजना के निरीक्षण भवन में भेज दिया गया.
बंगाल के सीमा पर दुमका जिले के मसानजोर में स्थित इस निरीक्षण भवन के कमरा नंबर तीन में आडवाणी और कमरा नंबर चार में महाजन को रखा गया. इस निरीक्षण भवन के आसपास के 15 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को सील कर दिया गया था. किसी को इन बंदियों से मिलने की इजाजत नहीं थी.
आडवाणी की रथयात्रा रोकने के मकसद से बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त अफजल अमानुल्लाह को निर्देश दिया कि वो आडवाणी को वहीं गिरफ्तार कर लें.
प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तारी का वारंट तैयार करके संबंधित अधिकारियों को दे दिया था, लेकिन अमानुल्लाह ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. अमानुल्लाह बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक सैयद शहाबुद्दीन के दामाद थे. उन्हें लगा कि उनके इस कदम से गलत संदेश जा सकता है और समाज में तनाव बढ़ेगा.
22 अक्टूबर की शाम आडवाणी पटना पहुंचे. 23 अक्टूबर 1990 को आडवाणी ने पटना के गांधी मैदान में एक विशाल रैली को सम्बोधित किया. वरिष्ठ फोटोग्राफर राजीवकान्त बताते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी के गांधी मैदान के मंच पर भाजपा के सभी वरिष्ठ नेता मौजूद थे. उस समय आडवाणी से बड़ा भाजपा में कोई चेहरा नही दिखता था.
पटना में रैली के बाद आडवाणी ने हाजीपुर और ताजपुर में बैठकों में हिस्सा लिया और देर रात समस्तीपुर के सर्किट हाउस पहुंचे. लालू यादव उन्हें यहां हर हाल में गिरफ्तार करना चाहते थे. लालकृष्ण आडवाणी समस्तीपुर के सर्किट हाउस में रुके थे और लालू यादव ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि उन्हें कहीं न जाने दिया जाए. हालांकि, उस शाम आडवाणी के साथ काफी समर्थक भी थे.
ऐसे में उस दौरान गिरफ्तारी के बाद बवाल होने की आशंका भी थी. लिहाजा लालू यादव ने इंतजार करना ठीक समझा. इसके बाद देर रात करीब दो बजे लालू यादव ने खुद पत्रकार बनकर सर्किट हाउस में फोन किया जिससे पता लगाया जा सके कि आडवाणी के साथ सर्किट हाउस में कौन-कौन हैं. लालू यादव का फोन आडवाणी के एक सहयोगी ने उठाया और बताया कि वो सो रहे हैं और सारे समर्थक जा चुके हैं. आडवाणी को गिरफ्तार करने का यह सबसे बेहतरीन मौका था.
दूसरी तरफ आडवाणी की गिरफ्तारी से देश की सियासत में मानो भूचाल आ गया था और केंद्र में वीपी सिंह की सरकार गिर गई थी. आडवाणी की गिरफ्तारी की घटना ने सियासत में लालू यादव का कद काफी ऊंचा कर दिया था लेकिन जानकार तो यह भी मानते हैं कि लालू भले ही दावा करें कि उन्होंने आडवाणी का रथ रोका लेकिन हकीकत यह भी थी कि सीधे वीपी सिंह तक इस रथयात्रा को रोकने में शामिल थे. हालांकि उस समय पटना में रथ यात्रा के विरोध में भी प्रदर्शन हुए थे खुद लालू यादव मुख्यमंत्री होते हुए भी सीएम हाउस पर एक दिन के अनशन पर बैठे थे.
उनकी ये तस्वीर लेने वाले वरिष्ठ फोटो ग्राफर राजीवकांत बताते हैं कि उस समय दो धाराएं काम कर रही थी एक समर्थन तो दूसरी विरोध में. वहीं कारसेवक कामेश्वर चौपाल बताते हैं कि लाख विरोध के बावजूद आडवाणी अपने मकसद में सफल हुए थे. आडवाणी देशभक्ति और रामभक्ति के लिए ही जाने जाते हैं.
हालांकि 5 अगस्त को पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करेंगे. इसके साक्षी लालकृष्ण आडवाणी बनेंगे. मंदिर के निर्माण के साथ ही आडवाणी ने जो तीस साल पहले शुरू की थी उस रथ यात्रा को भी अपनी मंजिल मिल जाएगी. हालांकि विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी के लिए ये एक विजय का दिन दिन होगा.
वहीं 1990 में रथ यात्रा को रोक कर हीरो बने लालू यादव रांची के होटवार जेल में है. शायद वो जेल से बाहर होते तो उनकी इस राममंदिर निर्माण राजनीति अलग होती.
उस गेस्ट हाउस के इंचार्ज एक्सयूटिव इंजीनियर प्रकाशचन्द्र चौधरी थे जिन्हें 23 अक्टूबर को ही गेस्ट हाउस ठीक करने का निर्देश दिया गया था. प्रकाश चन्द्र चौधरी ने बताया कि किस तरह से आडवाणी को गेस्ट हाऊस में रखा गया था.
उन्होंने बताया कि 24 अक्टूबर की सुबह जब वह गेस्ट हाउस के ऊपरी तल पर थे. आरके सिंह उस समय गृह विभाग के अधिकारी थे और अभी आरा के सांसद और केंद्र में ऊर्जा मंत्री हैं. वह लाल कृष्ण आडवाणी को लेकर गेस्ट हाउस की सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे.
उसके बाद आरके सिंह ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी को किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. मसानजोर गेस्ट हाउस में महज चार कमरे ही थे.
जिसमें एक में लालकृष्ण आडवाणी दूसरे में प्रमोद महाजन और नीचे वाले दोनों कमरे में आरके सिंह और वहां के तत्कालीन एसपी रुके थे. लालकृष्ण आडवाणी को मसानजोर में करीब 12 दिन रखा गया था. इस दौरान उनके सुख सुविधा का पूरा ख्याल रखा गया.