चतरा: विस्थापित एवं प्रभावित ट्रक ऑनरों ने आधुनिक कंपनी के द्वारा खर्च के अनुरूप भाड़ा का भुगतान नहीं करने, तय भाड़ा में भी अवैध पैसों की कटौती करने, कोल क़्वालिटी, जेसीबी कटौती सहित और भी कई कारण बता कर ट्रांसपोर्टरों का मनमाना पैसा काटने की शिकायत उपभोक्ता फोरम और मुख्यमंत्री से करने का मन बनाया है.
क्या है इस अवैध पैसों के कटौती का पूरा खेल ? जानिए इसकी पूरी पड़ताल
आज जहां पूरे भारत वर्ष में सभी ट्रांसपोर्ट कंपनियां सहित सभी कॉमर्सियल ट्रक हाइवा मालिक आर्थिक मंदी और बाजार में सामानों का आयात निर्यात कम हो जाने के कारण अपने बैंक की महीने की किश्ती भी नहीं चुका पा रहे हैं. वहीं कुछ तथाकथित कंपनियां उनकी इस मजबूरी का भरपूर फायदा भी उठा रही हैं या यूं कहें कि कुछ तथाकथित कंपनियां ट्रांसपोर्ट और कॉमर्सियल जगत को लंगड़ा करने के पीछे पड़ी हुई है.
आपको बताते चलें कि एशिया की सबसे वृहद कोल परियोजना मगध एवं आम्रपाली कोल परियोजना के विस्थापित प्रभावित ट्रक हाइवा मालिकों ने आधुनिक कंपनी के तानाशाही फरमान को मानने से इनकार कर दिया है.
विस्थापित प्रभावित ऑनर ने कहा है कि जब तक आधुनिक कंपनी पुराने रेट से प्रति टन 1575 रुपये का भाड़ा भुगतान कोयला ढ़ोने में नहीं देगी तब तक उसका एक छटाक कोयला भी मगध आम्रपाली परियोजना से उठने नहीं दिया जाएगा.
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उसके साथ साथ ट्रक हाइवा मालिकों का कहना है कि अगस्त 2019 से अभी तक आधुनिक कंपनी ने प्रत्येक नए डीओ में ट्रांसपोर्टर और लिफ्टर बदल – बदल कर जो भी कोयला अपने कंपनी में विस्थापित प्रभावित ट्रक – हाइवा से ढुलाई करवाया है उसका भाड़ा अभी तक ट्रांसपोर्टरों और ट्रक हाइवा मालिकों को कंपनी ने नहीं दिया है. यदि दिया भी है तो उसमें तय भाड़ा से या टेंडरिंग रेट से 20% की कटौती नाजायज तरीके से की है. जिसके परिणामस्वरूप आधुनिक कंपनी का काम कर चुके या कर रहे ट्रांसपोर्टर दांतो तले पत्थल दबाने पर मजबूर हो गए हैं.
ट्रांसपोर्टरों पर ट्रक हाइवा का भाड़ा भुगतान करने का दबाब बढ़ता जा रहा है. वहीं आधुनिक कंपनी अपने इस तानाशाही रवैये को अपनी कंपनी की पॉलिसी बता कर मनमानी करती जा रही है. इतना ही नही कंपनी प्रत्येक डीओ में कोयला का काम करने के लिए नए नए चेहरे तलाश करके उन्हें कोयला उठाने की जिम्मेवारी दे रही है और पुराने लोगों का भाड़ा एवं कमीशन बकाया रखते जा रही है.
बहरहाल जब उसका काम कर चुके ट्रांसपोर्टर, लिफ्टर, ट्रक- हाइवा मालिक अपने भाड़ा का मांग करते हैं तो उपरोक्त कंपनी उन्हें ब्लैकमेल करके एक ईमेल भेजती है. जिसमें कंपनी के फाइनेंस सहायक कर्मचारी ट्रांसपोर्टरों को यह लिखते हैं कि आपके द्वारा अभी तक किये गए कोयला के ट्रांसपोर्ट में 70 लाख रुपया, जला हुआ कोयला, शार्ट जेसीबी और भींगा हुआ कोयला के कारण काटा जा रहा है. आप इसको एक्सेप्ट कीजिये तभी आपको आपके बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा. जिससे छुब्ध होकर मगध – आम्रपाली कोल परियोजना के तमाम विस्थापित प्रभावित ट्रक हाइवा मालिकों ने इस बार कंपनी द्वारा लगाए गए लाखों टन कोयला को उठाव नहीं होने देने का संकल्प लिया है.
क्या मांग है विस्थापित प्रभावित ट्रक हाइवा मालिकों की ?
1. कंपनी अगस्त 2019 से अब तक जिन भी ट्रांसपोर्टर, ट्रक हाइवा मालिक का पैसा काटी है या भाड़ा नहीं दी है उसका शीघ्र भुगतान करे.
2. कंपनी रोड सेल का कोयला का 100% ढुलाई रोड ट्रांसपोर्ट यानी ट्रक और हाइवा से ही सिर्फ करे.
3. कंपनी वर्तमान के बाजार की स्थिति और पार्ट्स, डीजल, यूरिया के बढ़ते कीमतों के मुताबिक प्रति टन पुराने रेट 1575 रुपये के हिसाब से भाड़ा का भुगतान करे.
4. कंपनी किन्ही भी राजनैतिक पार्टी के नेता या विधायक मंत्री, ऊंची पहुंच का धौंस ट्रक हाइवा मालिक को दिखाए बगैर बाजार के नियमों के मुताबिक अपना व्यापार करे.
5. कंपनी कोयला फैक्ट्री में खाली होते ही तय भाड़ा का भुगतान करे.
उपरोक्त आशय की जानकारी देते हुए मगध – आम्रपाली के विस्थापित प्रभावित ऑनरों ने आधुनिक कंपनी को ही भाड़ा घटाने और ट्रक मालिकों के तत्कालीन स्थिति का जिम्मेवार ठहराया है. जिसके फलस्वरूप इस बार विस्थापित प्रभावित ऑनर आरपार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.
जबकि सूत्रों की माने तो इस बार आधुनिक कंपनी ने लगभग 2 लाख टन कोयला सीसीएल से खरीदा है. साथ ही ट्रक हाइवा मालिकों के लिए चौंकाने वाली खबर यह भी है कि इस बार कंपनी खरीदे हुए कोयला को रोड से नहीं बल्कि ट्रेन से ले जाने के लिए सीसीएल प्रबंधन और कई बड़े अफसर महकमे से गुफ्तगू करने में भी जुटा हुआ है.
आखिर रोड के जगह ट्रेन से कोयला क्यों ले जाना चाहती है ये कंपनी ?
आपको पहले ही हमने बताया कि आधुनिक कंपनी अपने प्रत्येक नए डीओ में कोयला ढुलाई के लिए नए नए ट्रांसपोर्टरों को काम देती है ताकि उसे पुराने ट्रांसपोर्टर को तुरंत पैसों का भुगतान नहीं करना पड़े.
ऐसे करते करते कंपनी का करोड़ों करोड़ रुपया मगध आम्रपाली में अनगिनत ट्रांसपोर्टरों और लिफ्टरों सहित ट्रक- हाइवा के ऑनर का पैसा बकाया हो गया है. जिसका भुगतान कंपनी फिलहाल करने के मूड में नहीं है और वही मुख्य कारण है कि इस बार कंपनी ने ट्रक और हाइवा के बजाय शिवपुर साइडिंग से रेल मार्ग द्वारा कोयला ढुलाई का मन बनाया है.
ऐसे में यदि कंपनी वाकई में रेल मार्ग से कोयला का ढुलाई करवाती है तो मगध – आम्रपाली कोल परियोजना से विस्थापित प्रभावित लगभग 5 हजार परिवार पर रोजी रोटी की भी बात बिगड़ सकती है.
साथ ही साथ झारखंड सरकार के गाईडलाईन पर भी सवालिया निशान खड़ा हो सकता है. जहां सरकार आम जनमानस को यह कहती है कि आप झारखंड और राष्ट्र के विकास में सहायक बनिये उसके बाद सभी प्रकार के रोजगार में विस्थापित और प्रभावितों को ही प्राथमिकता दी जाएगी और इसका उलंघन करने वाले कंपनी पर सरकार सख्त कदम उठाएगी.
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बहरहाल यह तो तय है कि इस बार मगध- आम्रपाली कोल परियोजना से अपने द्वारा खरीदे गए कोयला का उठाव करने में आधुनिक कंपनी को भी दांतो तले चना चबाना होगा क्योंकि विस्थापित और प्रभावित ऑनर अपने बकाया भाड़ा और भाड़ा में वृद्धि करवाने को लेकर आर पार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.
सूत्रों के हवाले से यह भी खबर आ रही है कि टंडवा के स्थानीय विधायक के कुछ निजी सहायक को इस बार आधुनिक कंपनी कोयला उठाने की जिम्मेवारी दी है या दे सकती है. ऐसे में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि स्थानीय विधायक द्वारा पहले से ही ट्रक हाइवा एसोसिएशन की लगातार बैठक करके जो विधायक द्वारा विस्थापित ट्रक हाइवा मालिकों के उबरते जख्मों को भरने का संकल्प लिया गया है. अब वे खुद ही अपने सहायकों को कंपनी से काम दिलवाकर ट्रक हाइवा मालिकों के जख्म को भरने का काम करते हैं या उसमें और अपनी पावर और पहुंच का नमक रगड़ते हैं.