प्रमोद कुमार उपाध्याय
हजारीबाग: हजारीबाग झील छठ तलाब सहित शहर के कई छठ घाट के तट पर आस्था का महापर्व छठ पूरे जिले भर में श्रद्धा, उल्लास एवं पवित्रता के साथ मनाया गया. नहाय खाय, खरना के बाद व्रतियों ने मंगलवार को अस्ताचलगामी सूर्य को दूध एवं जल से अर्घ्य दिया. रविवार की सुबह में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की आराधना की गई. पूजन-हवन व आरती के पश्चात प्रसाद का वितरण किया गया. इधर शहर के मुख्य छठ तलाव घाट एवं शहर के विभिन्न तालाबों के तट पर संध्याकालीन एवं प्रात:कालीन अर्घ्य के दौरान हजारों की संख्या में व्रती, श्रद्धालु एवं आम लोग पहुंचे.
इधर ठंड के वजूद भी लोग 4 बजे सुबह शहर के कई घाटों पे बड़ी संख्या में लोग पहुंचे. इस दौरान घाट परिसर में मेला सा नजारा बना रहा. लोगों की सुविधा के लिए स्थानीय समितियां एवं प्रशासन के द्वारा यातायात, पार्किंग, सफाई, सुरक्षा समेत प्रकाश की उत्तम व्यवस्था की गई थी. नगर परिषद् के द्वारा भी प्रकाश का प्रबंध में सहयोग किया गया था. वहीं आकर्षक विद्युत सज्जा की गई थी.
सुबह में व्रतियों ने नदी के पावन जल में घंटो खड़े होकर भगवान सूर्य के उदय होने तक प्रतीक्षा की. जैसे ही लालिमा के साथ भगवान सूर्य प्रकट हुए व्रतियों ने अर्घ्य देना शुरू कर दिया. लोगों ने अर्घ्य देने के बाद सूर्य देव की पूजा अर्चना की.
यह चार दिवसीय अनुष्ठान गुरुवार को नहाय-खाय के साथ आरंभ हुआ था. दूसरे दिन शुक्रवार को खरना के बाद शनिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया. रविवार को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महापर्व का समापन हो गया. इस पूरे व्रत में दो बार अर्घ्य दिया जाता है. पहला अर्घ्य षष्ठी तिथि के दिन अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है. दूसरा अर्घ्य सूर्य उदय होने पर दिया जाता है.
इस बार छठ को लेकर प्रशासन के स्तर से काफी पहले से तैयारी आरंभ कर दी गई थी. छठ घाटों को साफ करने से लेकर व्रतियों के आने-जाने के रास्तों को साफ सफाई किया गया था. इतना ही नहीं छठ तलाब झील सहित कई तालाबों में गहरे पानी होने के वजह से पानी में नहीं जाने की इजाजत दी गयी थी. शहर के सभी घाट पर रोशनी की पूरी व्यवस्था की गई थी.
होती है हर मन्नतें पूरी…
इस पर्व के विषय में मान्यता यह है कि जो भी षष्टी माता और सूर्य देव से इस दिन मांगा जाता है वह मुराद पूरी होती है. अथर्ववेद में भी इस पर्व का वर्णन है. ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से की गई इस पूजा से हर मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. माताएं अपने बच्चों व पूरे परिवार की सुख-समृद्धि, शांति व लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. इस अवसर पर मुराद पूरी होने पर बहुत से लोग सूर्य देव को दंडवत प्रणाम करते हैं.
सूर्य को दंडवत प्रणाम करने का व्रत बहुत ही कठिन होता है. लोग अपने घर में कुल देवी या देवता को प्रणाम कर नदी तट तक दंड करते हुए जाते हैं. पहले सीधे खड़े होकर सूर्य देव को प्रणाम किया जाता है फिर पेट की ओर से जमीन पर लेटकर दाहिने हाथ से जमीन पर एक रेखा खींची जाती है. यही प्रक्रिया नदी तट तक पहुंचने तक बार- बार दोहराई जाती है. यह ऐसा पूजा विधान है जिसे वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी माना गया है.
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है महापर्व छठ…
महापर्व छठ शुद्धि और आस्था का मिशाल है. यह पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता है. लोगों को समानता और सद्भाव का मार्ग दिखाता है. अमीर-गरीब सभी माथे पर डाला लेकर एक साथ घाट पहुंचते हैं. यह पर्व प्रकृति से प्रेम को दर्शाता है. सूर्य और जल की महत्ता का प्रतीक यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है.
इस पर्व को भगवान सूर्य और परब्रह्मा, प्रकृति और उन्हीं के प्रमुख अंश से उत्पन्न षष्ठी देवी का उपासना भी माना जाता है. सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं वे सर्वत्र व्याप्त हैं और रोज लोगों को दर्शन देते हैं. ऐसी मान्यता है कि सूर्योपासना व्रत कर जो भी मन्नतें मांगी जाती हैं वे पूरी होती हैं और सारे कष्ट दूर होते हैं. पर्व नहाय-खाय से शुरू होता है. दूसरे दिन खरना और इसके बाद अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य व सुबह में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इस पर्व को छोड़ा नहीं जाता यदि व्रती व्रत करने में असमर्थ हो जाती है तो इस व्रत को घर की बहू या बेटे करते हैं.
सृष्टि चक्र का प्रतीक भी है छठ पर्व…
महापर्व छठ सृष्टि चक्र का प्रतीक भी है. इस पर्व में पहले डूबते सूर्य की पूजा होती है फिर उगते सूर्य की. सूर्य ही हमारे जीवन का स्त्रोत हैं चाहे अपनी रोशनी से हमें जीवन देना हो या हमें भोजन देने वाले पौधों को भोजन देना। सूर्य का संपूर्ण जगत आभारी है. हम आजीवन उनके उपकारों से लदे रहते हैं. सूर्य अंधकार को दूर कर चराचर जगत को प्रकाशमान करते हैं.
जगत में उगते सूर्य को पूजने की प्रथा है. डूबते सूर्य को कौन पूछता है…पर इस पर्व में प्रथम अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य यानि डूबते सूर्य को ही अर्ध्य पड़ता है. उदय और अस्त दोनों अनिवार्य है. जन्म को उत्सव के रूप में लेते हो तो मृत्यु को भी उसी रूप में गले लगाना सिखाता है यह पर्व. यह बताता है कि हर अस्त में उदय छिपा है. हर मृत्यु में नवजीवन का रहस्य है.
सूर्य की बहन हैं छठी मईया…
छठी मईया (षष्ठी) सूर्य की बहन हैं. इन्हीं को खुश करने के लिए महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्हीं को साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना करते हुए नदी तालाब के किनारे छठ पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था.
प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न षष्ठी माता बालकों की रक्षा करने वाले विष्णु भगवान द्वारा रची माया है. बालक के जन्म के छठे दिन छठी मैया की पूजा-अर्चना की जाती है. ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं और जिंदगी में किसी प्रकार का कष्ट नहीं हो.
सेवा में जुटे रहे सदस्य…
शंख छठ घाट पर श्रद्धालुओं को सुविधा प्रदान करने के लिए शहर के कई समितियां, समाजसेवी, प्रशासन, एंबुलेंस सेवा के लिए तैयार रखा गया था वहीं कई संस्था और समाजसेवी दूध से लेकर गंगाजल तक श्रद्धा एवं तन्मयता पूर्वक सेवा में जुटे रहे. इनमें मनोज गोयल गुरुकुल कोचिंग के डायरेक्टर जेपी जैन सहित बीएसएनल एनटीपीसी की एवं कई समाजसेवी डीएसपी कमल किशोर सहित कई पदाधिकारी घाट पर पहुंचकर व्यवस्था का जायजा लिया.