रांची: ” शहीद मरते नहीं, दफनाए जाते हैं ,कब्र खोद के देख लो जिंदा पाए जाते हैं”
सिद्धू ,कानू ,चांद ,भैरव , झानो व फूलो के हूल के महानायको को श्रद्धा के फूल अर्पित
पुष्कर महतो,झारखंड आंदोलनकारीयों को नमन.
देश और दुनिया में आदिवासी संस्कृति स्वतंत्र अस्तित्व की रही है. अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आदिवासी समाज में समय-समय पर महानायक वीर सपूत के रूप में तथा बुद्धिजीवी वर्ग के रूप में अपने हूल और उलगुलान के बल पर इतिहास गढ़ने का काम किया है. आज भी आदिवासी समाज अपने वसूल के लिए जीते हैं और अपने आन-बान-शान के साथ वीरगति को प्राप्त करते हैं. अपने सीने पर गोली खाकर इतिहास गढ़ते हैं जिसे दुनिया सलाम करती है.
अपने परंपरागत प्राकृतिक स्रोतों की रक्षा प्रत्येक स्थिति व परिस्थितियों में करते हैं. दुनिया से इसकी रक्षा की वकालत भी करते हैं. शोषण,जुल्म ,अत्याचार, सितम व अन्याय करने वालों के खिलाफ किसी भी स्थिति में नहीं झुकते बल्कि दुनिया को जल ,जंगल जमीन से जीवन के अस्तित्व का बोध कराते हैं. जिसे लोग आज भी नजरअंदाज कर देते हैं. वह इसलिए कि आदिवासी समाज को बेवकूफ ,मूर्ख ,अनपढ़, जाहिल वगैरह समझने की ल़ोग भूल करते है. उनके महान दर्शन को हेय की दृष्टि से देखा जाता है , उनकी उपेक्षा की जाती है. ” सेन गे सुसुन काजी गे दुरंग “तथा “जिंदगी रे चिकन परवाह “सार्थक, सफल ,स्वास्थ्य एवं सरल जीवन का दर्शन है.
इस दर्शन के मर्म को गहराइयों तक सोचना होगा. यह दर्शन संपूर्ण प्रकृति की रक्षा एवं जीव जगत के सार्थक जीवन का संपूर्ण प्राकृतिक अर्थ है.
आदिवासियों के भाव और भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाना ,उनके आस्था के स्रोतों का चौतरफा दोहन किया जाना हूल व उलगुलान एक गूंज है. इस गूंज के मर्म में सिर्फ बलिदान ही नहीं. त्याग ही नहीं , समर्पण ही नहीं बल्कि, एक परिवार की विद्रोह की अनुगूंज आज विश्व पटल पर क्रांति व संघर्ष का प्रतीक मात्र भी नहीं अनंत काल के लिए प्रेरणा स्रोत के हूल है. जिसे हम संथाल हूल भी कहते हैं. संथाल हूल का 165 वर्ष बाद भी स्वर्णिम इतिहास जीवंत अध्ययन व अध्याय हैं.
राजमहल के भोगनाडीह की वीर माटी आज 30 जून 18 55 ब्रिटिश हुकूमत के अधीन महाजनी प्रथा व सरकार की बंदोबस्ती नीति के खिलाफ एक गौरवशाली विद्रोह के गवाह की तिथि है. इस तिथि को एक ही परिवार के चार भाई- सिद्धू, कानू ,चांद ,भैरव और दो बहने- फूलो व झानू माय- माटी के लिए, देशज अस्तित्व की रक्षा के लिए ,दिसुम सेवा के लिए, स्वाभिमान की रक्षा के लिए, पुरखों के जल, जंगल व जमीन को बचाने के लिए,अपने अमूल्य प्राणों की आहुति देकर इतिहास के पन्नों पर वीरता का अमिट छाप छोड़ दी है.
प्रकृति के कण- कण और झारखंड के जन-जन इस हूल को आत्मसात कर पल-पल जीते हैं, वीरगति के लिए हरदम तैयार रहते हैं. अपने परंपरागत स्रोतों की रक्षा के लिए आज भी तीर धनुष लेकर संघर्ष का एलान करते हैं, हूल का दम भरते हुए जीते- मरते हैं. पल-पल प्रेरणा के स्रोत परिवार को नतमस्तक करते हैं और हूल पर अपने श्रद्धा के फूल अर्पण करते हैं. झारखंड की जनता इस वीर परिवार के भाइयों और बहनों को चंदन व वंदन करती हैं. नित- नित नमन करती है. गौरव से भोगनाडीह की माटी को तिलक करती है. संपूर्ण दुनिया को दशा-दिशा दिखाते हुए हूल जोहार करती है.