नीता शेखर,
वक्त एक ऐसी चीज है कब कहां किस का वक्त बदल जाए कोई नहीं जानता.
वक्त ही तो नहीं था रेनू के पास जो जिंदगी भर दूसरों के लिए करती रही. वहीं जब वक्त आया तो डॉक्टर ने कह दिया आपके पास वक्त नहीं है. उसने फिर भी डरते डरते डॉक्टर से पूछा अच्छा कितना वक्त है कुछ तो बता सकते हैं. डॉक्टर ने कहा देखे वक्त का क्या है वक्त कभी भी बदल सकता है. फिर रेनू वापस अपने घर आ गई. आज रेणु अपने आपको बहुत थका थका महसूस कर रही थी.
वह कॉलेज में प्रिंसिपल थी. उसने अपने दोनों बेटों को मात्र जब वह 10 साल के थे तब से जीवन से संघर्ष करते-करते आज डॉक्टर बना चुकी थी. हालांकि दोनों बेटे हमेशा रेनू को कहते कि मां तुम यहां आ जाओ. सब कुछ पटरी पर आ गया था पर रेणू कॉलेज छोड़कर जाना नहीं चाहती थी.
रेणु की शादी एक बहुत ही अमीर खानदान में हुई थी. रेनू एक साधारण परिवार की लड़की थी. उसने बहुत सी डिग्री हासिल कर ली थी. इसी बीच किसी शादी में सुशील से मुलाकात हुई. सुशील रेणु पर फिदा हो गया. उसने जिद पकड़ ली थी. शादी करूंगा तो रेणु से नहीं तो शादी ही नहीं करूंगा. मां बाप को उसके आगे झुकना ही पड़ा. फिर क्या था दोनों परिवार की. आपस में बातचीत हुई. दोनों की शादी हो गई.
रेणु के परिवार और सुशील के परिवार में काफी अंतर था. रेणु सामंजस्य बैठाने की कोशिश करती रही. वहां कोई काम नहीं था तो करना ही नहीं था. सभी अपने काम में व्यस्त थे. उसने अपने पति से कहा मैं घर में बोर हो जाती हूं. मैं भी नौकरी ज्वाइन कर लेती हुं. उसको इजाजत मिल गई थी. रेनू ने पास के सेंट्रल कॉलेज को जॉइन कर लिया था. उसका वक्त अच्छा बीतने लगा. सब कुछ तो अच्छे से चल रहा था कि अचानक उसके जीवन में तूफान आ गया.
उसके पति घर छोड़ कर चले गए थे. काफी कोशिश की पर भी वह कहीं नहीं मिले. पता ही नहीं चला उनका. धीरे-धीरे रेनू भी अपने कामों में व्यस्त हो गए. वक्त अपने रास्ते से चल रहा था. देखते देखते रेनू भी उसी स्कूल में प्रिंसिपल बन गई. उसके दोनों बेटे आज डॉक्टर बन गए थे. दोनों ही दिल्ली में सेटल हो गए थे. वह बार-बार रेनू को अपने यहां बुलाते थे पर वह अपनी नौकरी की वजह से जा नहीं पा रही थी. आज डॉक्टर की बातों को सुनकर उसे ऐसा लगा जैसे चार कदम भी नहीं चल पा रही है. वह सोच नहीं पा रही थी कि बच्चों को कैसे बताएं. उन्हें यहां बुला ले या खुद ही वहां चली जाए. फिर उसने निश्चय किया खुद ही चली जाती हुं. फिर वह अपने बेटों के पास दिल्ली चली गई. उसके बेटे जिस अस्पताल में काम करते थे वह किसी व्यापारी का था. उसने अपने बेटे से बात की. बेटे ने कहा अच्छा मां, तुम घबराओ नहीं. कल हम तुमको अस्पताल लेकर चलेंगे. अगले दिन वह अपनी मां को लेकर अस्पताल गए. वहां उसको भर्ती करके दोनों बेटे हम अभी 1 घंटे में आते हैं. तुम आराम करो हम सिस्टर को भेज देते हैं. इतना कर वह चले गए. अचानक अस्पताल में काफी शोर शराबा सुन कर उसने सिस्टर से पूछा कि यह शोर कैसा है.
सिस्टर ने बतलाया इस अस्पताल के ट्रस्टी आए हैं. वह कभी-कभी आते हैं तो सब में भगदड़ मच जाती है. उसने पूछा उनका नाम क्या है. सुशील अग्रवाल. नाम सुनते ही उसको थोड़ी उत्सुकता हुई फिर उसने सिस्टर को कहा कृपया आप मुझे एक बार वहां ले चलेंगी. जरूर. जैसे ही उसने सुशील को देखा उसे एक झटका सा लगा. फिर उसने सोचा नहीं ऐसा कैसे हो सकता.
आप..! जिस व्यक्ति को 30 साल हो गया वह अचानक सामने आया. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. फिर भी उसने बड़ी हिम्मत करके पूछा. आपने मुझे पहचाना. सुशील ने बड़े ध्यान से देखा और अपनी नजरें झुका ली. फिर धीरे से कहा तुम रेनू. शुक्र है आपने मुझे पहचान तो लिया. मैंने आपको कहां-कहां नहीं ढूंढा पर आज आपको यहां देख कर मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा. सुशील ने हाथ जोड़कर माफी मांगते हुए कहा मुझे माफ कर दो. इसी बीच दोनों बेटे भी आ गए उन्होंने अपनी मां का हाथ पकड़कर कहा चलो मां हम सब कमरे में चलते हैं. फिर वह वापस मां के कमरे में आ गए. सोच रही थी वह जिंदा थे और मैं सारी उम्र उनका इंतजार करती रही. वो यहां दिल्ली में थे.
तभी उसे सुनाई दिया कोई कह रहा था कृपया मुझे मिलने दिया जाए. जैसे ही वह सामने आए सुशील ने रेनू से कहा- रेनू थोड़ा वक्त दे दो. मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं. रेनू ने कहा वक्त ही तो नहीं है मेरे पास. इतना सोचते सोचते उसने आंखें बंद कर ली और सदा के लिए चिर निद्रा में चली गई. अब उसके पास वक्त ही तो नहीं था.