रांची: टीबी सिर्फ शरीर को ही नहीं, यह एक सामाजिक बीमारी भी है, जो परिवार व काम-काज को भी प्रभावित करता है. कार्यस्थलों में सिलिकोसिस एवं अन्य व्यवसाय सम्बंधित बीमारियों कि पहचान एवं ससमय उनका इलाज बहुत महत्वपूर्ण है.
उक्त बातें झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी (आईएएस) ने आज होटल कैपिटल हिल में वर्कप्लेस पालिसी के निर्धारण हेतु आयोजित बैठक में कही. बैठक का आयोजन रीच एवं राज्य टीबी सेल, झारखंड के सहयोग से किया गया. इस अवसर पर राजीव अरुण एक्का, प्रमुख सचिव, श्रम विभाग, झारखंड सरकार ने कहा कि “ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) बीमारी की रोकथाम व टीबी मरीजों की देख-रेख के लिए विशेष रूप से उन कार्यस्थलों में, जहां वर्तमान में टीबी मरीजों की खोज, उपचार और उनकी सशक्तिकरण के लिए नीतियां नहीं हैं, वहां पर कार्यस्थल की नीतियों उपयोगी साबित होंगी.”
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निर्देशक, डॉ. शैलेश कुमार चौरसिया ने टीबी से जुड़े सामाजिक कलंक को समाप्त करने की आवश्यकता के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि, सम्मानजनक कार्यस्थल प्रत्येक कर्मी का अधिकार है और कर्मियों की स्वास्थ्य समस्याओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. राज्य टीबी अधिकारी डॉ. राकेश दयाल ने इस अवसर पर टीबी के साथ-साथ अन्य बीमारियों के बारे में बात की जो अक्सर टीबी के साथ-साथ पाए जाते हैं (कोमोर्बिडिटीज). उन्होंने कहा, “टीबी मरीजों का बस इलाज करना पर्याप्त नहीं है, हमें मधुमेह और एचआईवी जैसी कोमोर्बिडिटीज को भी संबोधित करने की आवश्यकता है.
यह नीति देश में टीबी व कोमोर्बिडिटीज, दोनों को सम्बोधित करती है और यह नीति उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक कदम है. इस अवसर पर रीच द्वारा सितंबर 2016 से झारखंड में लागू की गई टीबी कॉल टू एक्शन प्रोजेक्ट की राज्य इम्पैक्ट रिपोर्ट का विमोचन भी हुआ. रिपोर्ट प्रोजेक्ट के प्रमुख परिणामों और उपलब्धियों का सारांश प्रस्तुत करती है, जिसमें निम्न शामिल हैं – टीबी चौंपियंस के रूप में राज्य के 23 जिलों के 50 से अधिक टीबी के उत्तरजीवियों को प्रशिक्षित किया गया. 2100 से अधिक टीबी मरीजों को इन टीबी चौंपियंस द्वारा सहायता एवं सेवाएं मिलीय और चौंपियंस द्वारा समुदाय के 30,000 से अधिक लोगों को जागरूक किया. झारखंड के टीबी चौंपियंस के साहस और दृढ़ता की कहानियों का एक संकलन भी इस अवसर पर जारी किया गया. ‘श्फ्रॉम टीबी सर्वाइवर्स टू टीबी चौंपियंसरू स्टोरीज फ्रॉम झारखंड’ नामक पुस्तक में टीबी के उत्तरजीवियों के चौंपियंस के रूप में परिवर्तन और उनके इस सफर के बारे में लिखा गया है.
ये टीबी चौंपियंस बन अन्य टीबी मरीजों और उनके परिवार-वालों को सहारा दे रहे हैं. गुमला जिले के टीबी चौंपियन और तेज के सदस्य निर्मल केरकेट्टा ने बताया कैसे उनके टीबी ने उनके जीवन को प्रभावित किया. रीच प्रोजेक्ट डायरेक्टर स्मृति कुमार ने राज्य में विभिन्न भागीदारों और हितधारकों को धन्यवाद देते हुए कहा, “हम एक बहु-क्षेत्रीय, सामुदायिक-नेतृत्व और सहयोगात्मक प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करने के लिए राज्य के टीबी सेल और स्वास्थ्य व श्रम विभाग के साथ साझेदारी में काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
इस कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न औद्योगिक प्रथिस्तानो के प्रतिनिधि जैसे कि टाटा , जिंदल, गेल, आधुनिक, मेकॉन, सीसीएल, यू सी आईएल, उषा मार्टिन, इलेक्ट्रो स्टील, बालमुकुन्द जैसे अन्य उद्योगों से जुरे लोग भी उपस्तिथ थे. विभिन्न मजदूर संगठन के प्रनिधियों ने भी वर्क प्लेस पालिसी पर अपने विचार रखे. कार्यक्रम में मुक्य रूप से निर्देशक प्रमुख स्वस्थ्य सेवा डॉक्टर जे पी सांगा, चीफ फैक्ट्री इंस्पेक्टर झारखण्ड अरुण कुमार मिश्रा, एडिशनल कमिश्नर श्रम विभाग एस एस पाठक, निर्देशक एस टी डी सी डॉक्टर अनिंद्य मित्रा, डॉक्टर योले, डॉक्टर पंकज धींगरा, दिवाकर शर्मा एवं अन्य लोग उपस्थित थे.