चतरा: रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में गए प्रवासी मजदूरों की लॉक डाउन अवधि में आर्थिक सहयोग के दावे राज्य सरकार भले ही कर रही हो लेकिन हकीकत इससे परे है.
सरकार की आर्थिक सहयोग नीति का मजदूरों को समुचित लाभ नहीं मिल सका है. स्थिति यह है कि सरकार द्वारा जारी सहायता एप्प पर रजिस्ट्रेशन करने के बाद एक-एक हजार रुपये की सहायता राशि अबतक उनके खातों में नहीं पहुंची है. ऐसे में कोरोना के कहर के बाद लॉक डाउन में काम ठप होने से इन मजदूरों के समक्ष न सिर्फ आर्थिक तंगी की समस्या उत्पन्न हो गई है बल्कि खाने के भी लाले पड़ गए हैं.
ऐसे में कोरोना संकट की इस विकट घड़ी में अपने घर आने को आतुर बेबश मजदूरों को न तो तंत्र का साथ मिल पा रहा है और न ही सरकारी व्यवस्था का. लाख प्रयासों के बाद भी इनका ऑनलाइन ट्रैवल रजिस्ट्रेशन तक नहीं हो सका है. ऐसे में ये मजदूर अपने घर से दूर झारखंड से बाहर दूसरे प्रदेशों में भूख से जिंदगी की जंग लड़ने को विवश हैं.
चतरा जिले के घोर नक्सल प्रभावित कुंदा और प्रतापपुर थाना क्षेत्र के आधा दर्जन पंचायतों के सैंकड़ों प्रवासी दिहाड़ी मजदूर अभी भी हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में फंसे हुए हैं. जहां न तो इन्हें काम मिल रहा है और न ही भूख मिटाने के लिए राशन और पानी. आर्थिक तंगी से जूझ रहे इन मजदूरों को खाद्यान सामग्री तक मयस्सर नहीं हो रहा है.
रोजगार के तलाश में दूसरे प्रदेशों में गए ये बेबश मजदूर आज कोरोना संक्रमण के खतरों के साथ-साथ भूख से भी जंग लड़ रहे हैं. ऐसे में इन मजदूरों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता के नाम वीडियो जारी कर मदद का गुहार लगाई है. तीन राज्यों में फंसे मजदूरों ने वीडियो में कहा है कि वे सैंकड़ों की संख्या में वहां फंसे हैं और आर्थिक संकट की घड़ी में घर भी जाना चाहते हैं. मजदूरों ने संबंधित राज्य सरकारों से वार्ता कर उन्हें झारखंड लाने की अपील सीएम और मंत्री से की है.