बिजबिहाड़ा (अनंतनाग): कश्मीर में बहुत से ऐसे मुस्लिम परिवार हैं जो कश्मीरियत की सच्ची मिसाल पेश करते हैं. दक्षिण कश्मीर को आतंकियों का गढ़ कहा जाता है. यहां मई-जून में सुरक्षा बलों ने इसी इलाके में सबसे ज्यादा आतंकी मौत के घाट उतारे हैं. इन सबके बीच यहां के अस्तित्व में कुछ ऐसा भी है, जो कश्मीरियत के जिंदा होने की मिसाल है. हिन्दु मुस्लिम एकता की मिसाल देखने को इस तरह मिला. इस इलाके में स्थित मां जोया देवी मंदिर की देखभल तीन दशक से एक मुस्लिम परिवार ने संभाल रखी है. परिवार के सदस्य प्रतिदिन मंदिर की साफ-सफाई करते हैं.
मान्यता है कि कई सदियों से मंदिर अस्तित्व में है. जब कश्मीरी पंडित यहां रहते थे तो वहीं मंदिर की पूजा-अर्चना और देखभाल करते थे. उस समय यहां मेला भी लगता था. 1990 में ऐसी स्थितियां बनीं कि पंडित घाटी छोड़कर चले गए और मंदिर में वीरानी छा गई. यहां सुबह-शाम बजने वाले घंटे की आवाज सुनाई देना बंद हो गई.
चूंकि हमें इसकी आदत हो चुकी थी तो अच्छा नहीं लगा. हम चाहते थे कि कुछ करें, परंतु माहौल ऐसा था कि डर लगता था. एक बार मेरी पत्नी गंभीर रूप से बीमार हो गई. कहीं कोई रास्ता नहीं दिख रहा था परंतु मां जोया के आशीर्वाद से वह कुछ दिनों बाद स्वस्थ हो गई. कुछ दिन गुजरने के उसके बाद हमें लगा कि ऊपर वाले के भरोसे हम कदम बढ़ाते हैं. इसी विश्वास के साथ उन्होंने, पत्नी और बेटे बिलाल अहमद शेख ने मंदिर की साफ-सफाई शुरू की. अब यह आस्था हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गई है.
कुछ भी हो जाए मंदिर की सेवा बंद नहीं करेंगे.
गुलाम नबी शेख ने कहा कि चाहे जो विपदा आ जाए लेकिन हम मंदिर की देखरेख और सेवा बंद नहीं करेंगे. शेख की पत्नी की मौत हो चुकी है. अब मंदिर की देखरेख वह और उनका बेटा बिलाल करता है. वह कहते हैं कि मंदिर में साफ-सफाई और सेवा से मन को बहुत शांति मिलती है. हमारी ऊपर वाले से दुआ है कि वह अपनी इनायत फरमाए, यहां का माहौल बेहतर हो ताकि कश्मीरी पंडित यहां फिर से आकर रहें और दुनिया को पता चले कि असली कश्मीरियत वह नहीं, जो आजकल सुर्खियों में है. असली कश्मीरियत तो यहां की मिट्टी की खुशबू में है.
मुस्लिम परिवार अमरनाथ यात्रा में भी सहयोग करते हैं
बहुत से परिवार अमरनाथ यात्रा के दौरान लंगर लगाते हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को यात्रा के लिए घोड़े और पिट्ठू उपलब्ध कराने वाले मुस्लिम समाज के लोग हैं.