जगदम्बा प्रसाद शुक्ल,
प्रयागराज: शहर प्रयागराज के नामचीन साहित्यकार सिद्धार्थ अर्जुन जी ने आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते भारत की एक होनहार कलाकार निधि सिन्हा जी से बात की,निधि जी मूलतः छतीसगढ़ की निवासी हैं और इनके कार्य और प्रतिभा को देखकर कोई भी दंग रह जायेगा. निधि जी ने वार्ता के दौरान बताया कि वह कबाड़ी से अथवा इधर-उधर पड़े कचरे से प्लास्टिक की बोतल उठा लेती हैं फिर उन्हें घर ले जाकर साफ करके उन पर विभिन्न रंगों से अनेक प्रकार की चित्रकारियां करके उनकी खूबसूरती बढ़ा देती हैं, और कई बार तो वह इन बोतलों को गुड्डे गुड़िया अथवा अन्य खिलौने का रूप भी दे देती हैं.
सिद्धार्थ द्वारा जब यह पूछा गया कि राष्ट्र निर्माण में इस कृत्य का योगदान क्या है, तो निधि सिन्हा ने बड़े सहज भाव से उत्तर दिया कि यदि हम कचरे में जाने वाली प्लास्टिक की बोतलों को कचरे में जाने से रोंकते हैं तो इससे प्रकृति को प्लास्टिक से होने वाले नुकशान से कुछ राहत मिलती है, इसके अलावा जब हम इन्हें विभिन्न रंग रूप प्रदान करते हैं तो यह पुनः उपयोग हेतु तैयार हो जाती हैं.
इस बार इनका उपयोग बदल जाता है इन बोतलों को हम घर की सजावट,मनीप्लांट,तुलसी जैसे पौधे लगाने के लिये प्रयोग कर सकते हैं और गुड्डे गुड़िया के रूप में परिवर्तित बोतलों को बच्चों के खिलौने के तौर पर भी प्रयोग किया जा सकता है.
हम इन्हें बाजार में आराम से बेंच सकते हैं इस प्रकार यह कला हमारी जीविका का साधन भी है,निधि जी ने आगे बताया कि यह कार्य किसी भी उम्र के लोग कर सकते हैं और इस क्षेत्र में अच्छा मुक़ाम प्राप्त कर सकते हैं. वार्ता में पता चला कि अनेक लोगों ने इन रंजित बोतलों के लिये आर्डर किया हुवा है परंतु कोरोना की वजह से इनकी डिलीवरी नही हो पा रही है. अंत मे सिद्धार्थ जी के आग्रह पर निधि जी ने यह भी कहा कि वह इस कला को स्वयं तक ही सीमित न रखकर अपने आस-पास के छोटे बच्चों और इच्छुक तथा जरूरतमंद लोगों को भी सिखाएंगी ताकि वह भी आत्मनिर्भर बन सकें और भारत देश को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से बचा सकें.
कबाड़ में जीविका ढूंढने की यह कला वास्तव में प्रशंसनीय हैं.