नीता शेखर,
कहते हैं जिंदगी जिंदादिली का नाम है, असली इंसान वही होता है जो लाखों गम अपने अंदर छुपा कर दुनिया के सामने हंसता रहता है.
हमारे कॉलोनी में एक ब्रिगेडियर अंकल रहते थे. हमेशा उनके घर से शोर-शराबे और पार्टियों की आवाज आती रहती थी. कभी भी कहीं भी किसी से मिलते जोर से हाथ मिलाया करते थे. इतना गर्माहट के साथ सबका स्वागत करते कि सभी का मन खुश हो जाता था.
सभी कहा करते थे कितने अच्छे हैं ब्रिगेडियर जी… हमेशा हंसते रहते हैं. बच्चों से भी काफी लगाव था. अपने हर जन्मदिन पर सभी बच्चों को पार्टी दिया करते थे. बच्चे भी बिल्कुल खुश रहते थे और खूब मजे लिया करते थे.
सब कुछ था पर उनके घर में कोई दिखाई ही नहीं देता था. जब भी उनसे परिवार के बारे में पूछा जाता, वह टाल देते थे. बच्चों में मग्न हो जाते थे. एक दिन अचानक उनके घर पर एक कार आई उसमें दो औरत एक आदमी निकले. सभी ने देखा वह सीधे उनके घर में चले गए.
इससे पहले किसी ने भी किसी को वहां आते नहीं देखा, तो सब को बड़ा आश्चर्य हो रहा था. सबके मन में जानने की उत्सुकता थी कि वे लोग कौन थे, आखिर कौन आया है.. पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी.
लेकिन जब से यह लोग आए थे ब्रिगेडियर अंकल की हंसी के ठहाके पार्टी बंद हो गए थे वह काफी शांत दिखते थे.
हमारे कॉलोनी में एक शर्मा आंटी भी रहती थी. अगर किसी को कोई बात पता करनी होती तो सब उनसे जाकर कह देते थे और वह कहीं से भी किसी भी खबर को निकाल ही लिया करते थी. अब सारे लोग आंटी के पीछे पड़ गए थे. उन्होंने भी बड़े जोश से कहा ऐसा क्या है… मैं खबर ले आती हूं.
1 दिन उनके घर पहुंच गई और अपना परिचय देते हुए उनका भी परिचय मांग लिया, पता चला उनमें से एक उनकी बहन बहनोई थे और एक उनकी पत्नी थी. उन्होंने शर्मा आंटी को जो कुछ भी बताया उसे सुनकर ठहाकों के पीछे छिपे दर्द की कहानी समझ आ गई थी.
जब 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था. उस समय ब्रिगेडियर अंकल सीमा पर लड़ाई कर रहे थे. उनका परिवार चंडीगढ़ में रह रहा था उनकी पत्नी और दो बच्चे चंडीगढ़ में रहते थे.
अंकल को अपनी पत्नी और बच्चों से काफी लगाव था. इसी दौरान लड़ाई में उनकी एक पैर बुरी तरह जख्मी हो गया था. वह खुद ही जख्मी थे. पर पैर के जख्म ज्यादा गहरे थे.
उनका जीवन बचाने के लिए पैर को काटना बड़ा जरूरी था, नहीं तो सारे शरीर में जहर फैल जाता. तो उनको बचना मुश्किल था. उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ चली गई थी. जाते-जाते उन्होंने एक खत छोड़ दिया कि मैं अब इनके साथ नहीं रह सकती. इसलिए मैंने फैसला कर लिया अपने बच्चों के साथ सिंगापुर जा रही हूं सदा के लिए.
मैंने दूसरी शादी कर ली है. एक तो मुसीबत में उसकी पत्नी बच्चों को लेकर चली गई थी. उन्होंने शर्मा आंटी को जो कुछ भी बताया उसे सुनकर ठहाकों के पीछे छिपे दर्द का रहस्य समझ में आ गया था.
अचानक एक दिन उन्होंने कहा मैं अब ठीक हूं तुम सब चिंता मत करो. मैंने अपने दर्द को अपना लिया है. अब जब भी ठहाके आएगी वह मेरे दर्द की होगी. मैं कितना हंसता हूं पर वह मेरे अंदर की दर्द होगी. जिसे लोग ना समझ पाएंगे.
इतना सुनकर हम सब को भी रुलाई आ गई, फिर भैया ने उस घर को छोड़ दिया और नोएडा में बस गए. हम लोग 5 साल से शादी करने के लिए कह रहे थे पर वह शादी के लिए तैयार नहीं हो रहे थे.
शादी कर लिए तैयार नहीं हो रहे थे अब जब भी उनकी दर्द बढ़ता वह जोर जोर से ठहाके लगाते. वह कितना जिंदादिल पर हम सब उनके दर्द को जानते थे. इसी बीच हमारी मुलाकात वीणा से हुई. उसने भैया की कहानी सुनकर कहा कि मैं शादी के लिए तैयार हूं. अभी 2 महीने पहले उनकी शादी हुई है.
अब धीरे-धीरे ठहाको की आवाजें कम होने लगी और एक समय ऐसा आया जब वह नॉर्मल कर दिया था. जिसे उन्होंने अपना दर्द बना लिया था.
परवीना ने आकर उनकी जिंदगी को संभाल लिया था और उनके अंदर के दर्द को बाहर निकाल दिया था.