शिवहर: हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ से उत्तर बिहार बेहाल है. फुलदेव साहनी पिछले 40-50 साल से पशुओं के लिए चारा लाने और खेती के काम के लिए रोजाना तीन बार नाव से नदी पार करते हैं. यह उनकी मजबूरी है, क्योंकि खेतों में जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है.
शिवहर जिले में फुलदेव साहनी के गांव नकरटिया से गुजरते ही यहां बाढ़ की बदहाली साफ दिखती है. ऊबड़-खाबड़ सड़क और धूल की चादर. इस गांव के हर सदस्य के लिए दिन में दो-तीन बार नाव से नदी पार करना मजबूरी है. कई सालों से पुल और सड़क की मांग हो रही है. आज तक पूरी नहीं हुई. इस बार नाराज ग्रामीणों ने गांव में मतदान बहिष्कार का बैनर टांग दिया है.
आशा की निराशा, पता नहीं जिएंगे या मरेंगे
उत्तर बिहार में बाढ़ प्रलय लेकर आती है. मानसून आते ही नदियां उफान पर आती हैं और नेपाल के तराई और जल संग्रह वाले इलाके उत्तर बिहार, मिथिलांचल में बाढ़ से हर साल लाखों लोगों की जिंदगी पानी से तबाह हो जाती है. नदी से दूसरी ओर जाने के लिए रस्सी से नाव खोलते नरकटिया गांव की आशा देवी बताती हैं, नाव से जाने में डर लगता है, पता ही नहीं जिएंगे कि मरेंगे. बच्चे नाव लेकर जाते हैं, हमें तो तैरना भी नहीं आता. बाढ़ का पानी घर में घुसने से घर भी गिर जाता है. हमें रोड चाहिए, बांध चाहिए.
चालीस-पचास साल से समस्या
नदी के किनारे करीब 30-35 साल पहले एक पुल बनना शुरू हुआ थ. उसके खंभे अधूरे पड़े हैं. नदी की धारा मुड़ने से वो अधूरा रह गया. उड़ती धूल के बीच मोटरसाइकिल से घर जा रहे एक परिवार के गिरने को दिखाते हुए स्थानीय निवासी सिकंदर साहनी कहते हैं, इस समस्या के हल के लिए बांध बनवाना ही पड़ेगा. यह बदहाल पड़ी पांच किलोमीटर रोड दो, तीन जिलों को जोड़ती है. समस्या चालीस-पचास साल से ऐसे ही चली आ रही है. कोई सुनने वाला नहीं.
उत्तर बिहार में 73 फीसदी हिस्सा बाढ़ प्रभावित
उत्तर बिहार का 73 फीसदी हिस्सा बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित है. करीब 68.8 लाख हेक्टेयर रकबा बाढ़ से प्रभावित है. बाढ़ ग्रस्त इलाकों में जब पानी भरता है, तो फसलें चौपट हो जाती हैं. दूसरी ओर खेतों में पानी भरा होने से आगे की फसलों की बुआई में भी देरी होती है. खेतों में बाढ़ से चौपट हुई गन्ना की फसल, धान की फसल यहां के लोगों को मजबूर करती है कि वो दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करें। दूसरे राज्यों के किसान एक साल में तीन-तीन फसलें पैदा करते हैं, वहीं उत्तर बिहार के बाढ़ प्रभावित किसानों को एक भी फसल पैदा करने में दिक्कत आती है.
कर्ज का बोझ
नरकटिया गांव के पास ही इनरवा गांव के रहने वाले मुन्ना पर 12 लाख का कर्ज है। उसे 2.5 फीसदी का ब्याज देना पड़ रहा है. मुन्ना बताते हैं, पिछली बार सारी सब्जी की खेती बाढ़ में डूब गई. इस बार कोरोना में चली गई. हम पूरे साल में छह माह ही सब्जी की खेती कर पाते हैं. बहुत परेशान हैं. कर्ज कैसे चुकाएंगे इसी की चिंता रहती है. शिवहर जिले के इनरवा गांव के रामजीवन कहते हैं, “बाढ़ से खत्म हुआ रास्ता पूरे साल वैसे ही रहता है. इन गांवों की हालत करीब 30 साल से ऐसी ही है. नदी की धारा बदलने से पुल नहीं बन पाया. नेता केवल चुनाव के समय वोट मांगने आते हैं, बाकी दिनों झांकने तक नहीं आते. हमारी सबसे बड़ी समस्या आवागमन की है.
इसी तरह, मोतिहारी के धनगड़हा गांव के श्याम बाबू यादव बताते हैं, खेतों में अभी भी पानी भरा है, जब सूखेगा तो गेहूं की बुआई जनवरी तक कर पाएंगे. अब देर से गेहूं की बुआई होने से फसल कैसी होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
स्कूली बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बच्चों की पढ़ाई कितने दिन प्रभवित रहेगी, स्कूल कितने दिन बंद रहेंगे, यह गांवों में भरे पानी पर निर्भर करता है. स्कूलों में न शिक्षक पहुंच पाते हैं न ही बच्चे आते हैं. कक्षा 11 में पढ़ने वाले इनरवा निवासी आशुतोष कुमार धूल में सनी अपनी पैंट झाड़ते हुए बोलते हैं, जब ज्यादा पानी होता है तो हम लोग स्कूल नहीं जा पाते. अब बाढ़ के ऊपर है कि साल में कितने महीने पढाई छूटेगी.”