रांचीः झारखंड ब्यूरोक्रेसी में एक्शन, ड्रामा, इमोशन, क्लाइमेक्स के साथ सब कुछ है. यूं कहें कि कैडर का आईएएस महकमा भी विवादों से अछूता नहीं रहा है. कभी अपनों में उलझे तो कभी सरकार से भी ठनी. वहीं सरकार ने कई मामलों पर ब्यूरोक्रेसी पर शिकंजा भी कसा. राज्य गठन से लेकर अब तक कई सरकारों में मंत्रियों की भी शिकायत रही कि सचिव उनकी बातों को नहीं सुनते. कभी मंत्री और सचिव आमने-सामने हुए तो कभी विभागीय कार्यवाही के दायरे में आ गए. कई को जांच के बाद क्लीन चीट मिली. अब बात करते हैं झारखंड कैडर में एक ऐसे आईएएस अफसर की, जो मंत्री ही नहीं अफसरों से भी उलझते रहे हैं.
केस नंबर एकः
कभी प्रमंडलीय आयुक्त के पद पर रहे इस अफसर की वहां के एक जिले की कमान संभाल रहे डीसी से नहीं बनी. मामले ने काफी तूल पकड़ा. दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ खूब आरोप लगाए. मामला राजभवन तक पहुंच गया.
केस नंबर दोः
जब इस आईएएस अफसर को कृषि विभाग की जिम्मेवारी मिली तो तत्कालीन कृषि मंत्री की आपत्ति रही कि सचिव उनकी बातों को नहीं सुनते हैं. दोनों के बीच में ठन गई. मीडिया में भी इसे प्रमुखता से लिया गया. बात इतनी बढ़ गई कि उन्हें कृषि विभाग से बदल दिया गया. इसके बाद उन्हें झारखंड में अंधेरा दूर करने वाले विभाग की जिम्मेवारी दी गई. वहां भी वे कम समय के लिए ही रहे.
केस नंबर तीन:
जब इस अफसर के पास राज्य के स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेवारी थी, तो वहां भी राज्य के डॉक्टरों के खिलाफ बयान देना भी भारी पड़ गया. राज्य के डॉक्टरों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. फिर अफसर को खेद भी व्यक्त करना पड़ा. इसके बाद अफसर का तबादला भी कर दिया गया.
केस नंबर चारः
कृषि विभाग में सचिव रहते हुए वे उसी विभाग में राज्य प्रतिनियुक्ति में तैनात आईएफएस अफसर से उलझ गए. इसके बाद उस आईएफएस अफसर ने मीडिया को बुलाकर प्रेस कांफ्रेंस तक किया. यह मामला भी काफी सुर्खियों में रहा.