रांची : 25 सालों तक भारतीय एथलेटिक्स के राष्ट्रीय मुख्य कोच रहे पद्मश्री बहादुर सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. 11 जुलाई को एथलेटिक्स फ़ेडरेशन ऑफ इंडिया के द्वारा ऑनलाइन विदाई समारोह का आयोजन किया गया.
इस अवसर पर खेल एवम् युवा मामले मंत्री भारत सरकार किरन रिजूजू,भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरेन्द्र ध्रुव बत्रा, ओलिंपिक संघ महासचिव राजीव मेहता, राजा रणधीर सिंह, साउथ एशियाई एथलेटिक्स फ़ेडरेशन के अध्यक्ष डॉ ललित भनोट,भारतीय एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष आदिल सुमरिवाला,डी जी साई संदीप प्रधान,अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता एथलीट पी टी उषा,अंजू बॉबी जार्ज,हिमा दास, पुनम्मा,राष्ट्रीय कोच राधा कृष्णन नायर, मी उजन्नन, झारखंड एथलेटिक्स संघ के अध्यक्ष मधुकांत पाठक,सचिव सी डी सिंह,कोषाध्यक्ष आशीष झा,एस के पाण्डेय, साई कोच विनोद सिंह,अशोक महतो,योगेश प्रसाद यादव,अरविन्द कुमार,प्रभात रंजन तिवारी,संजेश मोहन ठाकुर,अजय नायक,शशांक भूषण सिंह,शैलेश कुमार ने उन्हें विदाई दी.
इस समारोह के आरंभ में सबसे पहले बहादुर सिंह के जीवनी पर एक प्रस्तुतीकरण दिया गया जिसमें बताया गया कि अपने करियर में गोला फेंक एथलीट रहे बहादुर सिंह ने बैंकॉक में 1978 में हुए एशियाई खेलों और 1982 में नई दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में लगातार स्वर्ण पदक जीते. उन्हें 1974 में तेहरान एशियाई खेलों में रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। उन्होंने चार एशियाई ट्रैक एंड फील्ड मीट में प्रत्येक में पदक जीता, जिसमें 1973 में मेरीकिना में कांस्य, 1975 में सोल में स्वर्ण, 1979 में टोक्यो में कांस्य और 1981 में टोक्यो में रजत पदक शामिल है। बहादुर सिंह ने 1980 में मास्को ओलंपिक में भी भाग लिया था। उन्हें 1976 में अर्जुन पुरस्कार और 1998 में द्रोणाचार्य पुरस्कार दिया गया था। बहादुर सिंह को 1983 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
बहादुर सिंह के मार्गदर्शन में भारत ने दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों 2010 में शानदार प्रदर्शन किया था। इसमें टीम ने दो स्वर्ण सहित एक दर्जन एथलेटिक्स पदक जीते। बहादुर सिंह का जन्म 1946 में हुआ था और मुख्य कोच के रूप में उनके हिस्से सबसे गौरवपूर्ण पल वर्ष 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में आया था जब भारत ने ट्रैक और फील्ड प्रतियोगिता में 20 पदक जीते, जिसमें आठ स्वर्ण और नौ रजत शामिल थे.
इस समारोह के स्वागत भाषण में एएफआई के अध्यक्ष आदिल सुमारिवाला ने कहा, जब हम वैश्विक मंच पर अपनी यात्रा देखते है तो हम भारतीय एथलेटिक्स में बहादुर सिंह के अपार योगदान को हमेशा याद करेंगे। उन्होंने 70 और 80 के दशक के शुरूआती दौर में गोला फेंक खिलाड़ी के रूप में और फिर फरवरी 1995 से मुख्य कोच के रूप में योगदान दिया है।
उन्होंने कहा, हम ओलंपिक खेलों में टीम के साथ उन्हें देखना चाहते थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण टोक्यो ओलंपिक स्थगित करने पड़े। हम प्रशिक्षण और कोचिंग की योजना बनाने उनके अनुभव का फायदा उठाने जारी रखेंगे।
इस अवसर पर केंद्रीय खेल मंत्री श्री किरन रीजजू ने बताया कि खेल जगत में बहादुर सिंह के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है चाहे वह एक एथलीट के रूप में हो चाहे वहां एक कोच के रूप में हो। उन्होंने बताया कि बहादुर सिंह बचपन से ही मेरे मार्गदर्शक रहे है क्योंकि में बचपन मे स्कूल में था तो शॉटपुट फेका करता था और उस टाइम हम पेपर उनका फ़ोटो देखते थे। जब में साई पटियाला में जब उनसे मिला तब पता चला कि बहादुर सिंह कोच के अलावे एक अनुशाशित ओर सभी का ध्यान रखने वाले व्यक्ति हैं.
भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र ध्रूव बत्रा ने बताया कि मैं बहादुर सिंह से कई बार मिला हूं। बहादुर सिंह अपने जमाने में एक अच्छे एथलीट रहे हैं। उसके पश्चात कोचिंग जगत में भी उन्होंने अच्छे प्रदर्शन किए हैं जिनके कई एथलीट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त किए हैं। वे सरल स्वभाव के मेहनती कोच है।
एएफआई योजना और कोचिंग समिति के अध्यक्ष श्री ललित भनोट ने कहा, एशियाई खेलों में देश के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ने खेल समुदाय में यह विश्वास पैदा किया कि थोड़ी अधिक योजना और प्रयास के साथ भारत अपने स्तर को ऊंचा उठा सकता है और वैश्विक मंच पर अपनी छाप छोड़ सकता है। बहादुर जी ने इस उत्थान में योगदान दिया। बहादुर सिंह एथलेटिक्स में एक विशेष इवेंट के अलावे सभी इवेंट में निपुर्ण कोच थे जिसका उन्होंने चीफ कोच के रूप में हमेशा दर्शाया ।
एएफआई के संयुक्त सचिव सह झारखण्ड एथलेटिक्स एसोसिएशन अध्यक्ष मधुकांत पाठक ने बताया कि अर्जुन पुरस्कार, द्रोणाचार्य पुरस्कार व पद्मश्री से सम्मानित भारतीय टीम के पूर्व कोच बहादुर सिंह की जड़ें झारखंड के जमशेदपुर से जुड़ी हैं। उन्होंने ने बताया कि 1966 से 2003 तक वे टेल्को से जुड़े थे और अपने खेल की सारी उपलब्धि यहां रहते हुए हासिल की। उन्होंने कहा कि हम बहादुर सिंह जी के कार्यों को या तो एक खिलाड़ी और या कोच रूप में हो हम कभी भूला नही सकते.