खास बातें:-
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बच्चों की किताब, ड्रेस और बस फीस के नाम पर हर साल होता है 200 करोड़ का वारा न्यारा
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ब्यूरोक्रेट्स से लेकर बड़े डीलर भी हैं शामिल, रैकेट में शामिल लोग 50 फीसदी कमीशन पर करते हैं काम
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हेल्पबुक के नाम पर एनसीईआरटी की डुप्लीकेट किताब बाजार में उपलब्ध, डुप्लीकेट बुक में एनसीईआरटी का लोगो भी नहीं
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नर्सरी से 5वीं तक की किताबों पर 30 फीसदी और 5वीं से 10वीं तक की किताब पर मिलता है 40 फीसदी कमिशन
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स्कूल प्रबंधन को ड्रेस के एवज में मिलता है 30 फीसदी कमीशन
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बस फीस के नाम पर अभिभावकों के पांच माह में डूबते हैं लगभग 40 करोड़ रुपये
रांची : निजी स्कूलों पर सरकार की नकेल नहीं है. लॉकडाउन की अवधि में ट्यूशन और बस फीस में छूट को लेकर सरकार अभी तक कोई निर्णय नहीं ले पाई है. कमेटी का गठन कर औपचारिकता निभा दी गई है. इसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है. स्कूल प्रबंधन अभिभावकों पर लगातार ट्यूशन और बस फीस देने का दबाव डाल रहे हैं.
200 करोड़ का होता है वारा न्यारा
निजी स्कूलों के बच्चों की किताबों, ड्रेस और बस फीस पर कमीशन का खेल जारी है. बच्चों की किताबों पर हर साल 200 करोड़ का वारा न्यारा होता है. इस खेल में ब्यूरोक्रेट्स भी शामिल हैं. इन अधिकारियों का धंधा बोकारो से लेकर रांची तक फैला हुआ है.
50 फीसदी कमीशन पर काम
झारखंड की राजधानी रांची के सर्कुलर रोड स्थित दुकान से पूरी व्यवस्था की डीलिंग होती है. फिलहाल ये अफसर बड़े ओहदे पर काबिज हैं. वहीं एक अफसर पर जांच जारी है. इन्होंने सरकारी स्कूलों में किताब छपाई के टेंडर में अनियमितता बरती थी. जांच जारी है. इसी अनियमितता के कारण ये केंद्र में सेक्रेट्री रैंक में इंपैनल नहीं हो पाये थे. इस रैकेट में शामिल लोग 50 फीसदी कमीशन पर काम करते हैं.
किताब तय करने के लिये कमेटी नहीं
बच्चे कौन-कौन सी किताबें पढ़ेंगे, इसके लिये कोई कमेटी ही नहीं बनी है. नियमत: सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों से पढ़ाने का प्रावधान है. स्कूल प्रबंधनों ने इस नियम को भी ताक में रख दिया. वहीं हेल्पबुक के नाम पर एनसीईआरटी की डुप्लीकेट किताब बाजार में उपलब्ध हैं. इन किताबों में एनसीईआरटी के तर्ज पर टेक्स्ट और जवाब छपे हुए हैं. डुप्लीकेट बुक में एनसीईआरटी का लोगो भी नहीं है.
शुरू से आखिरी तक तय है कमीशन
किताब दुकानदार, प्रकाशक और लेखक स्कूल मैनेजमेंट को मोटी रकम देते हैं. नर्सरी से 5वीं तक की किताबों पर 30 फीसदी और 5वीं से 10वीं तक की किताब लेने पर 40 फीसदी कमीशन मिलता है. नर्सरी से पांचवीं तक के बच्चे पर औसतन 3000 (स्टेशनरी सहित) रुपये और छठे से 10वीं तक के बच्चों पर स्टेशनरी सहित औसतन 5000 रुपये खर्च आता है.
स्कूल पोशाक में 30 फीसदी कमीशन
स्कूल प्रबंधन को पोशाक के एवज में 30 फीसदी कमीशन मिलती है. स्कूल प्रबंधन एक ही ड्रेस की दुकान के साथ टाइ-अप करता है. औसतन पोशाक की कीमत 700 से 800 रुपये होती है. अगर दो लाख बच्चों के ड्रेस पर विभिन्न स्कूल प्रबंधन को लगभग 4 करोड़ का फायदा होता है.
अभिभावकों के डूबते हैं 40 करोड़ से अधिक रुपये
बस फीस के नाम पर अभिभावकों के पांच माह में लगभग 40 करोड़ रुपये डूब जाते हैं. बस फीस के एवज में सालाना 80 करोड़ रुपये आते हैं. स्कूल प्रबंधनों ने 570 से 950 रुपये बस फीस निर्धारित की है. राज्यभर में लगभग 2000 स्कूल बसों का संचालन होता है.
वहीं साल में सात महीने ही पढ़ाई होती है. केंद्र के निर्देशानुसार साल में 210 दिन की पढ़ाई जरूरी है. शेष चार महीने पढ़ाई नहीं होती है. जबकि स्कूल प्रबंधन 11 महीने का बस फीस वसूल करता है.
ऐसा है बस फीस का गणित-
• 1.25 लाख बच्चे बस से स्कूल जाते हैं.
• 53 सीटर बस में 75 और 45 सीटर बस में 66 बच्चों को बैठाने की अनुमति है.
• औसतन बस फीस में हर माह लगभग 6.50 करोड़ रुपये की प्राप्ति होती है.
• बस ऑनर को प्रति माह 35 से 40 हजार रुपये मिलता है.
• एक बस से हर माह 43000 रुपये की प्राप्ति होती है.
• 13000 रुपये स्कूल प्रबंधन को बचता है.
ऐसा है किताबों का गणित-
• किताबों पर हर साल 200 करोड़ रुपये का होता है वारा-न्यारा.
• कमिशन पर जाते हैं 30 करोड़ रुपये.
• दुकानदारों को मिलता हैं 40 फीसदी कमीशन.
• स्कूलों का बनता है 20 फीसदी हिस्सा.
• एजेंट का बनता है 10 फीसदी कमिशन.
कैसे बढ़ता है अभिभावकों पर बोझ
• सीबीएसई से संबद्धता प्राप्त 620 स्कूल झारखंड में हैं.
• वर्ग 1 से 12वीं तक दो लाख बच्चे अध्ययन करते हैं.
• नर्सरी से पांचवीं तक के बच्चे पर औसतन स्टेशनरी सहित 3000 रुपये और पांचवीं से 10वीं तक के बच्चों पर औसतन 5000 रुपये खर्च होता है.
• बीच में और प्रोजेक्ट सहित अन्य किताबों की भी मांग की जाती है.