संतोष सिन्हा,
रामगढ़: हम चले थे अकेले लोग मिलते गये और कारवां बन गया, इस उक्ति की सत्यता को बखूबी धरातल पर उतार के दिखाया है रामगढ़ वासियों ने. जी हां… हम बात कर रहें है रामगढ़ के उन तमाम समाजिक संगठन के लोगों का जिन्होंने लॉकडाउन के दरम्यान जरूरतमंद , असहाय व गरीब लोगों के लिए मसीहा बनकर उभरा.
ये लोग दिन रात मेहनत कर रहें हैं और लगभग सभी जरूरतमंदों तक कच्चा राशन व खाना पहुंचा रहें हैं. हालांकि, इस कार्य में कई राजनीतिक संगठन के लोग भी सामने आकर अपना दायित्व निभा रहें हैं.
वहीं सरकारी स्तर पर भी हर सम्भव जरूरतमंदों, गरीबों की मदद की जा रही है. यूं कहा जाए जिससे जो बन पड़ा, वो पीछे नहीं रहा. किसी ने मास्क तो किसी ने सैनिटाइजर बांटा, लेकिन समाजिक संगठन ने अदभुत उदाहरण प्रस्तुत किया है.
जब प्रथम लॉकडाउन को घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा की गई तो उसके दूसरे ही दिन से केवल एक समाजिक संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा निर्णय लिया गया कि इस अवधी में गरीब लोगों के घरों तक खाना मुहैया कराया जाएगा.
इसके बाद कई संगठन के लोग जुटते गयें और आज एक दर्जन से भी अधिक समाजिक संगठन के कार्यकर्ता निरंतर जुटे हुए हैं, ताकि रामगढ़ में कोई भी गरीब भूखा ना सोये. उनके इस कार्य के लिए प्रशासनिक स्तर से लेकर बुद्धिजीवियों द्वारा सराहना भी की जा रही है.
लॉकडाउन की विकट स्थिति में रामगढ़ के समाजिक संगठन के लोगों ने जैसा योगदान दिया है, वह लंबे समय तक उल्लेखनीय रहेगा. रामगढ़ ने एकबार फिर अपने नाम की सार्थकता पर खरा उतरने में पूरी तरह कामयाबी हासिल की है.