बैजनाथ आनंद,
प्राचीन काल में एक बड़ी मनोरम झील के किनारे चन्दन की लकड़ी का एक बड़ा व्यापारी व्यापार करता था. व्यापारी का राजा से बड़ा मधुर संबंध था. राजा झील के किनारे प्रायः जब भी घूमने जाता, वह व्यापारी से अवश्य मिलता था. व्यापारी भी राजा का बड़ा स्वागत करता था.
एक समय व्यापारी बहुत चिंतित और परेशान था, क्योंकि व्यापार बहुत मंदा चल रहा था. कोई खरीदार आ नहीं रहा था. उसके एक मित्र ने राय दिया कि भगवान से प्रार्थना करो कि राजा मर जाए, तब तुम्हारे चन्दन की लकड़ी का विक्रय हो जाएगा. मरता क्या न करता, व्यापारी राजा के मरने की भगवान से प्रार्थना करने लगा.
इधर राजा भी झील के किनारे दो बार घूमने के लिए आया और व्यापारी को घूरता रहा, लेकिन कुछ बोला नहीं. राजा जब तीसरी बार उधर घूमने आया, उसने व्यापारी से बोला – तुम्हें देख कर न जाने क्यों मेरे मन में आजकल बहुत क्रोध आता है, जी चाहता है कि तुम्हें फांसी पर लटका दूं. यह सुन कर व्यापारी तो मारे भय के एक क्षण के लिए एकदम तिलमिला गया, भीतर से पूरी तरह हिल गया, लेकिन तुरंत संभलते हुए, वह बोला- महाराज अब आपको कोई शिकायत नहीं होगी.
व्यापारी समझ गया कि वह राजा के मरने की भगवान से प्रार्थना कर रहा है इसीलिए राजा के मन में उसे फांसी पर लटकाने का विचार आ रहा है. वह अब राजा के मंगल के लिए प्रार्थना करने लगा. उसने राजा और राज्य की समृद्धि के लिए “मंगल कामना यज्ञ” का अनुष्ठान प्रारम्भ किया. यज्ञ में बहुत दूर-दूर से लोग आने लगे. एक दिन राजा भी आया.
यज्ञ के अनुष्ठान से राजा बहुत प्रसन्न हुआ. वह व्यापारी के लकड़ियों के भण्डारण को देखने लगा. चन्दन की लकड़ी के भण्डार को देख कर राजा ने कहा – चन्दन की लकड़ी का मैं एक मन्दिर बनाना चाहता हूं. इसके लिए तुम्हें चन्दन की लकड़ी की आपूर्ति करना है.
यह सुन कर व्यापारी तो एकदम गदगद हो गया कि उसकी “मंगल कामना यज्ञ” से उसके मन की दुर्भावना भी दूर हो गयी, राजा भी प्रसन्न हो गया और उसके चन्दन के लकड़ी की भी बिक्री हो गयी. इस प्रकार सारा कार्य सिद्ध हो गया.