नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सीएए के खिलाफ प्रदर्शनकारियों के पोस्टर्स लगाए जाने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 16 मार्च तक इन पोस्टर्स को हटाने का आदेश दिया था. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला बड़ी बेंच को भेजने का फैसला किया है. अब इस मामले की सुनवाई अगले सप्ताह होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि किस कानून के तरह उत्तर प्रदेश की सरकार ने प्रदर्शनकारियों के पोस्टर राजधानी लखनऊ के चौक-चौराहे पर लगाए हैं.
पिछले दिनों लखनऊ के कई अहम चौराहों पर बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स में उन 57 प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें, उनके नाम और पते लिखकर टांग दी गईं थी, जिन्हें पुलिस और प्रशासन प्रदर्शन के दौरान हिंसा के लिए ज़िम्मेदार मान रहा है.
हाईकोर्ट ने इस मामले में बेहद सख्त रुख अपनाते हुए कहा था कि ये नागरिकों की निजता का हनन है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए पोस्टर्स लगाए जाने पर सवाल उठाए. जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि सरकार को कानून के मुताबिक चलना चाहिए और फ़िलहाल कोई भी कानून उत्तर प्रदेश सरकार का समर्थन नहीं कर रहा है.
यूपी सरकार की पैरवी कर रहे हैं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चेतावनी और सूचना देने के बाद ये पोस्टर्स लगाए गए हैं. उन्होंने कहा कि पोस्टर्स हटाना बड़ी बात नहीं, लेकिन सवाल बड़ा है.
जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा कि जनता और सरकार में फर्क है. कोर्ट ने ये भी कहा है कि सार्वजनिक तौर पर हिंसा को मंजूरी नहीं दे सकते.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया था कि लखनऊ में प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों और उनके पते लगे हुए पोस्टर्स और होर्डिंग्स को 16 मार्च तक हटा लिया जाए. मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने ये निर्देश देते हुए 17 मार्च तक कार्रवाई रिपोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के दफ्तर में जमा कराने का निर्देश दिया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में खुद संज्ञान लेते हुए लखनऊ के ज़िलाधिकारी और पुलिस आयुक्त को अदालत में तलब किया था.
पिछले दिनों लखनऊ के हज़रतगंज समेत शहर के कई अहम चौराहों पर बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स में उन 57 प्रदर्शनकारियों की तस्वीरें, उनके नाम और पते लिखकर टांग दी गईं जिन्हें पुलिस और प्रशासन प्रदर्शन के दौरान हिंसा के लिए ज़िम्मेदार मान रहा है.
इन होर्डिंग्स में इन लोगों से सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने के लिए हर्जाना भरने को कहा गया है. यह भी लिखा गया है कि अगर ये लोग हर्जाना नहीं देते हैं तो इनकी सपंत्ति ज़ब्त कर ली जाएगी.
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