पटना: चुनाव के पहले चरण का प्रचार थम गया. पहले चरण में 16 जिलों की 71 सीटों पर बुधवार को मतदान होगा. पहली बार इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने चुनाव तारीखों के एलान के बाद एक भी सभा नहीं की, वहीं इस बार लालू प्रसाद, शरद यादव जैसे कद्दावर नेताओं की कमी खली. चुनाव तारीखों की घोषणा के साथ ही रामविलास पासवान और रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन से उनकी कमी भी खली.
पहले चरण में 1066 प्रत्याशी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. इस चरण में कुल दो करोड़ 14 लाख छह हजार 96 मतदाता हैं. कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव के लिए मतदान केंद्रों पर खास एहतियात बरती गई है. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की खास तैनाती है. आखिरी दिन कई बड़ी चुनावी रैलियां हुईं. पहले चरण के लिए प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुल तीन रैलियां कीं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दो रैलियां कीं. प्रचार के आखिरी दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सकरा, महुआ और महनार में रैलियां कीं. भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने औरंगाबाद और पूर्णिया में जनसभाएं कीं. राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी एक ही दिन में कई रैलियों को संबोधित किया.
पहले चरण में 35 सीटों पर जदयू जबकि राजद 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पहले चरण में कांग्रेस 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, पर जेडीयू के साथ उसका सीधा मुकाबला सिर्फ सात सीटों पर है. इनमें से कई सीटों पर लोजपा ने भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं. ऐसे में महागठबंधन की रणनीति लोजपा उम्मीदवार के प्रदर्शन पर टिकी है. कांग्रेस का भाजपा के साथ 11 सीटों पर सीधा मुकाबला है.
भाजपा के इश्तहार से नीतीश गायब
चुनाव के दौरान चल रहे चुनाव प्रचार में ही कई कहानियां छिपी हैं. एक तरफ भाजपा के पोस्टर से प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चेहरा गायब है, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के पोस्टरों से लालू यादव और राबड़ी देवी का चेहरा नदारद है.
भाजपा ने स्थानीय मीडिया में दिए विज्ञापन के जरिए अपना संदेश जन जन तक पहुंचा दिया. पार्टी ने पूरे पेज के विज्ञापनों में सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाई और मोटे अक्षरों में लिखा – भाजपा है तो भरोसा है. भाजपा के अलावा जदयू, हम और वीआईपी जैसे सहयोगी दलों का चुनाव चिन्ह तो विज्ञापन में था लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चेहरा कहीं नहीं था, वहीं दूसरी ओर जदयू द्वारा जारी पोस्टरों और विज्ञापनों में नीतीश कुमार के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो का भी इस्तेमाल प्रमुखता से किया गया.
यूपीए के मुख्य घटक दल राष्ट्रीय जनता दल के विज्ञापनों में सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है. लालू प्रसाद और राबड़ी देवी गायब हैं. भाजपा के पोस्टर से नीतीश की तस्वीर गायब होने पर कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा कि भाजपा ने मान लिया है नीतीश में चुनाव जिताने का माद्दा नहीं है. लोजपा के चिराग ने भी तंज किया और कहा, नीतीश को और प्रमाण की जरूरत नहीं है.
मुकाबला सुशासन और रोजगार के बीच
इस बार लोगों को सुशासन और रोजगार के बीच चुनना है. जहां नीतीश कुमार 15 वर्ष के सुशासन की बात कर रहे हैं वही तेजस्वी यादव 10 लाख नौकरियों का वादा कर चुके हैं. यदि 2015 से 2016 के अंत तक डेढ़ वर्षो का समय खंड छोड़ दें तो पिछले 15 वर्षों के दौरान नीतीश कुमार के नेतृत्व में जदयू और भाजपा का शासन ही रहा है.
इस दौरान गांव-गांव तक बिजली और सड़क पहुंचाने से लेकर पानी की व्यवस्था करने तक विकास के अनेक काम हुए हैं. सीएम नीतीश कुमार अपनी हर जनसभा में पिछले 15 वर्षों के विकास कार्यों को गिना रहे हैं. तेजस्वी यादव ने दस लाख सरकारी नौकरियों का वादा कर युवाओं और नौजवानों में मानों आशा का संचार कर दिया है. उनकी जनसभाओं में नित बढ़ती भीड़ नौकरी पाने के आकांक्षी युवाओं की ही है. यही वजह है कि भाजपा को भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में 19 लाख नौकरियों का वादा करना पड़ा.
तेजस्वी के बयान पर बवाल
पहले चरण के मतदान से ठीक पहले तेजस्वी यादव के एक बयान पर बवाल मच गया है. उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और करनी सेना ने तेजस्वी से माफी मांगने को कहा है. जेडीयू और भाजपा ने भी इस बयान पर आपत्ति जताई है. जदयू का कहना है कि राजद ध्रुवीकरण की कोशिश में हैच. तेजस्वी ने एक चुनावी रैली में लालू-राबड़ी शासन की चर्चा करते हुए कहा था कि उस दौर में गरीब लोग सीना तान कर चलते थे. रोहतास में दिए गए इस बयान को बाबू साहेब से जोड़ कर देखा जा रहा है.