नई दिल्ली: नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि मौजूदा बजट में सभी का ध्यान रखा गया है. इसके बावजूद शेयर बाजार गिरने पर वे हतप्रभ हैं, समझ नहीं पा रहे कि ऐसा क्यों हुआ? शायद निवेशकों को बड़े सुधारों की उम्मीद थी. वे लेहमन ब्रदर्स संकट के बाद और चुनाव के पहले आए 2008 जैसे बजट की आस लगाए थे, जो संभव नहीं है.
बजट के बाद शनिवार को सेंसेक्स ने दशक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की थी और निवेशकों का करीब 3.46 लाख करोड़ रु डूबा था. राजीव कुमार का कहना है कि बजट में निजी क्षेत्र या वृद्धि दर के खिलाफ कुछ भी नहीं है.
उन्होंने कहा कि शायद बाजार को लेहमन ब्रदर्स संकट के समय उपभोग को तेजी से बढ़ाने के लिए किए बजट के प्रावधानों जैसी उम्मीद थी. लेकिन वित्तीय नियमों की अनदेखी नहीं की जा सकती. यूपीए-1 सरकार ने 2008 में काफी रियायतें दी थीं, क्योंकि तब चुनाव भी होने थे. इसकी वजह से राजकोषीय घाटा 2.5 फीसदी से बढ़कर 2009 में 6 प्रतिशत पहुंच गया था. इसलिए बाजार को ऐसी उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट में वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) की सीमाओं का ख्याल रखने के लिए कहा था, जो रखा गया.
राजीव कुमार का कहना का कि बजट में कई घोषणाओं से घरेलू व विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा. 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य 2024-25 तक अब भी संभव है. यह मानने की कोई वजह नहीं है कि अगले पांच वर्ष में हम इसे हासिल नहीं कर पाएंगे. केवल रुपये का मूल्य अचानक गिरना ही इसकी राह में बाधा है. वित्तवर्ष 2020-21 में वृद्धि दर 6 से 6.5 प्रतिशत और अगले 4 वर्ष में यह 7 से 8 प्रतिशत रहती है तो यह लक्ष्य अव्यवहारिक नहीं है.
उन्होंने कहा कि कारोबारी प्रतिबंध कई बार बूमरैंग जैसे बन जाते हैं, इन्हें जितने कम समय के लिए रखें, उतना ही बेहतर है. कई उत्पादों पर बढ़ाए आयात कर के संदर्भ में राजीव कुमार ने कहा कि चीनी उत्पादों के आयात से संकटग्रस्त भारतीय उद्योगों को राहत देने के लिए किया गया यह उपाय तात्कालिक है. उम्मीद है कि उद्योग और सरकार उचित प्रयास करेंगे और घरेलू उद्योग अपने बल पर चीनी आयात का मुकाबला करने के काबिल हो जाएंगे.