झांसी (उप्र) : बुंदेलों की धरती के रमेश चंद्र वर्मा ‘महाभारत’ के श्लोकों को छंदरूप देने में जुटे हुए हैं. उन्होंने अब तक 10 हजार से अधिक छंदों की रचना भी कर दी है. चित्रकला में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त इस शख्स ने ‘महाभारत’ के प्रसंगों पर आधारित नाटकों में अभिनय भी किया है. डॉ. वर्मा ने बताया कि महाभारत में एक लाख श्लोक हैं, उन सभी को विभिन्न छंदों का उपयोग करते हुए काव्यबद्ध करने में आगे बढ़ रहे हैं. सन् 1982 से शुरू हुए इस सफर को अब लगभग 25 साल हो गए हैं, अभी लगभग वह आधा सफर ही तय कर पाएं हैं. इसे करीब 2021 में पूरा कर दुनिया के सामने रखा जाएगा.
उन्होंने बताया, “लिखने की प्रवृत्ति बचपन से ही थी और गांव में होने वाले नाटक में भाग लिया करता था. नाटक के हम निर्देशक होते थे, लोगों को नाटक पसंद आने लगा तो धीरे-धीरे हम टीम लेकर बारातों में ले जाने लगे. नाटक का मुख्य किरदार भी मैं ही निभाता था.”
डॉ. वर्मा ने बताया, “नौकरी में आने के बाद मैंने इसे लिखने की शुरुआत की इसमें आधे से ज्यादा काम हो चुका है, लगभग एक हजार से अधिक पेज मैं टाइप कर चुका हूं. अनुमान है, कि यह 20 से 25 हजार पेज तक जाना चाहिए.
मूल रूप से कानपुर जिले के घाटमपुर के रहने वाले डॉ वर्मा ने झांसी को अपनी कर्मभूमि बनाया है. उन्होंने कहा, “जयसंहिता से लेकर आधुनिक महाभारत तक के बारे में मैंने शोध किया है, इसके बाद लेखन कार्य में आया हूं. इसका पूरा अध्ययन करने से पता चला, कि इसमें कई जगह श्लोकों का दोहराव भी है, उसे भी ठीक करते हुए आगे बढ़ रहा हूं.
केंद्रीय विद्यालय से शिक्षक के रूप में साल 2017 में सेवानिवृत्ति हुए डॉ. वर्मा काव्य अनुवाद के काम को इन दिनों अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं. श्लोकों के हिंदी अनुवाद की मदद से इन्हें विभिन्न तरह के छंदों में बदलकर और काव्य का रूप देने के बाद प्रकाशित कराने का लक्ष्य है.
उन्होंने बताया, “नौकरी के दौरान इस पर कम समय दे पाता था. सेवानिवृत्ति होने के बाद इस पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे पा रहा हूं, उम्मीद है कि करीब डेढ़ साल में इसे पूरा कर समाज के सामने ला पाऊंगा.”
डॉ. वर्मा ने कहा, “मोबाइल टेबलेट द्वारा खुद ही श्लोकों को टाइप कर रहा हूं. इसे पूरा लिखने के बाद छपने को दिया जाएगा. मेरा प्रयास है कि यह अनूठी रचना दुनिया के सामने आए, जिससे लोग महाभारत के विशाल ग्रंथ को काव्य संग्रह के रूप में देख सकें.”
वाजिद अली शाह के समय की अवध की चित्रकला पर शोध करने वाले वर्मा बचपन से लिखने का शौक रखते थे. चित्रकला बच्चों को पढ़ाते समय ‘महाभारत’ को छंद का रूप देने की सोची और इस कार्य में लग गए. विभिन्न कवि सम्मेलनों और कविताओं में रुचि होने के कारण इस बड़े कार्य को करने की सोची. इनका दावा है, कि हिंदुस्तान में अभी तक महाभारत को किसी ने छंद के रूप में प्रस्तुत नहीं किया है, लगभग डेढ़ वर्ष में यह पूरा होने के बाद अपने आप में यह अनोखा कार्य होगा.
लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रोफेसर कालीचरण स्नेही ने कहा, “डॉ. रमेश चंद्र का दावा सही हो सकता है और गलत भी हो सकता है. देश बहुत बड़ा है… हो सकता है कि कुछ लोग इसका अनुवाद कर रहें हो या कर चुके हो, लेकिन किन्हीं कारणों से वे सामने न आ पाए हो. इसलिए पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है, कि डॉ. रमेशचंद्र वर्मा महाभारत को छंद का रूप देने वाले पहले लेखक हैं.”