रांचीः चुनाव की तपिश और इसके अनेक रंग. इस रंग में राजधानी के कवि भी पूरी तरह से रंग गए हैं. व्यंग वाण के तीर उनके तरकश से निकल रहे हैं. इस व्यंग वाण में गहरी सच्चाई भी छिपी हुई है. वर्तमान राजनीतिक हालातों के अपनी वाणी से सामने ला भी रहे हैं और एक स्वच्छ राजनीति का संदेश भी दे रहे हैं.
अब सुनिए हास्य कवि नरेश बंका की जुबानी
हास्य कवि नरेश बंका कहते हैं, इस बार के चुनाव कई चरणों में होंगे, पहले उम्मीदवार वोटर के चरण में होंगे, इसके बाद वोटर उम्मीदवार के चरण में होंगे……
अपनी एक क्षणिका में नरेश बंका प्रस्तुत करते हैं – पत्रकार ने नेता से पूछा- राजनीति का अर्थ बताइए, नेताजी बोले- राज कीजिए, नीति भूल जाइए.
कवि परिमल के तरकश के तीर
कवि प्रवीण परिमल फरमाते हैं कि सोच समझकर नेता चुनना, किस्म-किस्म के वादों में न तुम फंसना.
जाहिर है ये पंक्तियां सच्चाई बयां करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही.
कवियत्री मुनमुन का प्रहार
कवियत्री मुनमुन ढ़ाली अपने शब्दों को इस प्रकार रखती हैः अपना कीमती वोट जरूर डालें, वोट उसे देना जो देश को रखें सबसे आगे, वोट जरूर देना लेकिन सोच समझकर अपने गुप्त धन का प्रयोग करना….
युवा कवि शिवम की जुबानी
युवा कवि शिवम कहते हैं – एक कुर्सी के वास्ते यह क्या क्या कर दिया, जिनसे यह लड़ते थे, उनका हाथ पकड़ लिया, जब अपनी पार्टी में इनकी दाल ना गली, नेताजी ने फट से दल बदल लिया…..